मंदी की मार: लक्षणों पर नहीं समस्या पर ध्यान देने की जरूरत

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RGA न्यूज़

उपभोग भारतीय अर्थव्यवस्था का करीब करीब 60 प्रतिशत हिस्सा है। अगर पिछले पांच वित्तीय वर्षों (अप्रैल 2014-मार्च 2019) की बात करें तो काफी उपभोग को कर्ज की बिनाह पर किया गया।...

आर्थिक मंदी। हर किसी के जुबान पर आजकल यही दो शब्द हैं। आखिर हो भी क्यों न, इसी के इर्द-गिर्द उनका पूरा जीवन, परिवार, समाज और राष्ट्र की तरक्की केंद्रित है। इन सबके बीच अर्थशास्त्री ये पता करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं कि ये एक संरचनात्मक मंदी है या फिर चक्रीय।

संरचनात्मक मंदी है या फिर चक्रीय

अगर ये मंदी चक्रीय है तो फिर ज्यादा चिंता करने की बात नहीं है, चार-छह महीनों में अर्थव्यवस्था अपने आप ठीक हो जाएगी। लेकिन अगर ये मंदी संरचनात्मक है, तो फिर चिंता करने की वजहें काफी बढ़ जाती है। संरचनात्मक मंदी इतनी आसानी से जाती नहीं है और कुछ सालों तक अर्थव्यवस्था को अपनी जकड़ में रख सकती है। इसलिए ये समझना कि ये मंदी चक्रीय है या फिर संरचनात्मक, काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।

उपभोग भारतीय अर्थव्यवस्था का करीब करीब 60 प्रतिशत हिस्सा है। अगर पिछले पांच वित्तीय वर्षों (अप्रैल 2014-मार्च 2019) की बात करें, तो काफी उपभोग को कर्ज की बिनाह पर किया गया। इस वक्त के दौरान बैंकों के खुदरा ऋण में 120 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अगर अप्रैल 2009 और मार्च 2014 के बीच के समय को देखें तो बैंकों के खुदरा ऋण में 80 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, वो भी बहुत कम आधार पर। अप्रैल 2014 और मार्च 2019 के बीच, क्रेडिट कार्ड बकाया 204 प्रतिशत बढ़ा जबकि व्यक्तिगत ऋण 255 प्रतिशत बढ़ा।

पांच साल प्रति व्यक्ति की आय 59 फीसद बढ़ी

अब प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों हुआ? अप्रैल 2014 और मार्च 2019 के बीच प्रति व्यक्ति आय 59 प्रतिशत बढ़ी। अगर ग्रामीण भारत की बात करें तो इसी समय के दौरान मर्दों की आय औसतन 33 फीसद बढ़ी। ग्रामीण महिलाओं की औसत आय में 41.3 फीसद इजाफा हुआ। इसका अर्थ यह निकलता है कि शहरी लोगों की तुलना में ग्रामीण लोगों की हालत काफी खस्ता रही।

अब इस समय से पहले के पांच साल के समय को देखते हैं। अप्रैल 2009 और मार्च 2014 के बीच के समय में, प्रति व्यक्ति आय 88 फीसद बढ़ी थी। इस समय के दौरान ग्रामीण भारत में आय में काफी इजाफा हुआ। पुरुषों की आय 148.6 फीसद तक औसतन बढ़ी। जबकि महिलाओं की आय में यह वृद्धि 155.4 फीसद रही। इस पूरे डाटा का हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि पिछले पांच सालों में आय वृद्धि की दर में, खासकर ग्रामीण भारत में, काफी ज्यादा गिरावट हुई है।

ये बात तो बिल्कुल सही है कि जब आय अच्छे दरों पर साल दर साल बढ़ती रहती है तो खपत भी बढ़ती है। इससे व्यापारियों का फायदा होता है और अर्थव्यवस्था भी तेजी से ऊपर जाती है। जब आय की दर तेजी से नहीं बढ़ती है तो खपत में भी धीमी वृद्धि होना बिल्कुल लाजमी है। पिछले पांच सालों में ये नहीं हुआ क्योंकि लोगों ने कर्ज लेकर खपत जारी रखा। पिछले कुछ महीनों से खेल बदल गया है और अब वैसा नहीं हो रहा है।

आय और खपत तेजी से कब बढ़ते हैें?

अब प्रश्न ये उठता है कि आय और खपत तेजी से कब बढ़ते रहते हैं? वो तेजी से तभी बढ़ते हैं जब व्यापारी लोग अर्थव्यवस्था निवेश करते रहते हैं। इस निवेश से नयी फैक्टरियां बनती हैं, नया रियल एस्टेट बनता है और किसान भी खेती छोड़ उद्योग का हिस्सा बन जाते हैं। इससे लोगों को नौकरियां मिलती है। वो पहले से ज्यादा पैसा बनाते हैं और उसको खर्च भी करते हैं। इस खर्चे से व्यापारियों का फायदा बढ़ता है और वो और भी निवेश करते हैं। मोटा-मोटी कहानी कुछ ऐसे ही चलती है या फिर चलनी चाहिए।

अप्रैल-जून में सबसे कम थी अर्थव्यवस्था

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी भारत में हो रही नई निवेश परियोजनाओं की घोषणाओं का हिसाब रखता है। अप्रैल से जून 2019 के बीच हुई घोषणाएं, 15 साल में सबसे कम थी। अगर हम उन निवेश परियोजनाओं जिनको पूरा किया गया है, पर ध्यान डालें, वो भी करीब पांच सालों में सबसे कम रही।

इसके मायने यह हुआ कि अर्थव्यवस्था में निवेश के बगैर, आर्थिक विकास मार खाता है और कुछ वैसा ही हो रहा है। किसी भी प्रवृत्ति को पूरी तरह सामने आने में थोड़ा वक्त लगता है। पिछले कुछ महीनों में वैसा ही हुआ है। आर्थिक मंदी धीरे धीरे सामने आयी है।

नए वाहन खरीदने का प्रतिबंध हटा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार की शाम को इस बढ़ती हुई मंदी को रोकने के लिए कई घोषणाएं की। एक घोषणा ये थी कि सरकार ने खुद पर नए वाहनों को खरीदने का प्रतिबंध हटाया है। इस वित्तीय वर्ष में बैंकों में सरकार ने पुनर्पूंजीकरण करने के लिए 70,000 करोड़ का आवंटन किया था। सरकार ये पैसा बैंकों में जल्द से जल्द लगाएगी। इससे उम्मीद है कि बैंक ज्यादा से ज्यादा ऋण देंगे।

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