RGA न्यूज़ संवाददाता वाराणसी
प्रकरण के मुताबिक, वर्ष 1987-88 में तत्कालीन बलिया जिले के विकास खंड रतनपुरा (अब जनपद मऊ में) के नगवा गांव में खंड विकास अधिकारी विजय प्रताप सिंह, सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) रामअग्रे सिंह और ग्रामीण अभियंत्रण सेवा, प्रखंड बलिया के अवर अभियंता दयाराम यादव ने लोकसेवक के पद पर रहते हुए ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत 18 हजार रुपये का व्यय तालाब खुदाई के लिए किया।
विशेष न्यायाधीश अवनीश गौतम की अदालत ने 35 साल पुराने प्रकरण में मऊ जिले के रतनपुरा विकास खंड के तत्कालीन सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) रामअग्रे सिंह को तालाब की खुदाई कराए बगैर श्रमिकों का फर्जी मस्टररोल तैयार कर भुगतान के मामले में दोषी पाया है। अदालत ने दोषी को सात वर्ष की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। अभियुक्त रामअग्रे सिंह गाजीपुर जिले के नंदगंज का रहने वाला है और अब सेवानिवृत्त हो चुका है।
प्रकरण के मुताबिक, वर्ष 1987-88 में तत्कालीन बलिया जिले के विकास खंड रतनपुरा (अब जनपद मऊ में) के नगवा गांव में खंड विकास अधिकारी विजय प्रताप सिंह, सहायक विकास अधिकारी (पंचायत) रामअग्रे सिंह और ग्रामीण अभियंत्रण सेवा, प्रखंड बलिया के अवर अभियंता दयाराम यादव ने लोकसेवक के पद पर रहते हुए ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी योजना के अंतर्गत 18 हजार रुपये का व्यय तालाब खुदाई के लिए किया। इसके लिए 114-115 श्रमिकों से कार्य कराना दिखाकर, फर्जी मस्टररोल बनाया। खाद्यान्न और मजदूरी वितरण का कूटरचित अभिलेख तैयार किया। सरकारी धन का गबन करने का मामला जांच के बाद 24 मार्च 1995 को सतर्कता अधिष्ठान की गोरखपुर इकाई द्वारा दर्ज कराया गया था। मुकदमे की पैरवी विशेष लोक अभियोजक आलोक कुमार श्रीवास्तव ने की। सतर्कता अधिष्ठान के सीओ राधे सिंह समेत 13 गवाहों का बयान दर्ज किया गया। मुकदमे के ट्रायल के दौरान खंड विकास अधिकारी विजय प्रताप सिंह की मौत हो गई थी। एक अन्य आरोपी अवर अभियंता दयाराम यादव के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं होने पर बरी कर दिया गया।