RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश मेरठ
मेरठ में खास किस्म की कैंची को जन्म देने वाले आखुन का नाम उत्तर प्रदेश के गजेटियर में दर्ज है। मंदी की जंग से 350 साल पुरानी कैंची इंडस्ट्री की धार कुंद पड़ने लगी है।...
मेरठ:- देश-दुनिया में अपनी धार के लिए मशहूर मेरठ की कैंची मंदी को काटने में नाकामयाब साबित हो रही है। मंदी की जंग से 350 साल पुरानी कैंची इंडस्ट्री की धार कुंद पड़ने लगी है। पहले नोटबंदी और पिछले साल जीएसटी का झटका लगा। चीनी ड्रैगन ने भी बाजार को निगलने में कसर नहीं छोड़ी। नतीजा, कैंची कारोबार 50 फीसद तक सिमट चुका है। कई कारोबारियों ने धंधा तक तब्दील कर लिया। हालांकि, कॉमन ब्रांड के नाम पर इस कारोबार को बचाने की योजना तो है लेकिन वक्त ही बताएगा कि हुनर की यह बादशाहत कायम रह पाती है या नहीं।
मेरठ में खास किस्म की कैंची को जन्म देने वाले आखुन का नाम उत्तर प्रदेश के गजेटियर में दर्ज है। उद्यमियों की मानें तो देश में पहली बार किसी उत्पाद को जीआई टैग (जियोलाजिकल इंडिकेशन टैग) मिला। इसके चलते कैंची को मेरठ की धरोहर माना गया है, लिहाजा कोई दूसरा इसे नहीं बना सकता। यहां की कैंची खाड़ी, अफ्रीकी देशों व श्रीलंका तक भेजी जाती रही हैं। सैलून, घरेलू प्रयोग व टेक्सटाइल्स कारोबार में बड़ी मात्र में कैंची की खपत है। वस्त्र उद्योग में कैंची की खपत 60 फीसद तक घट गई।
क्लस्टर भी मंदी का मारा
कैंची उद्योग को चीन की तर्ज पर विकसित करने और बेहतरीन डिजाइन की कैंची बनाने के लिए एमएसएमई ने पांच वर्ष पहले करीब चार करोड़ रुपये की लागत से लोहियानगर में क्लस्टर बनाया, किंतु मंदी से केंद्र सूना पड़ गया। यहां अब फोर्जिग टेंपरिंग, मार्किंग भी नहीं हो रही है। जिला उद्योग केंद्र की अगुआई में इस केंद्र को इसलिए बनाया गया, ताकि यहां की कैंची चीनी हुनर का मुकाबला कर सके। कारोबारियों की मानें तो चीन से बड़ी मात्र में अंडर बिलिंग की कैंची मंगाई जा रही हैं। मशीन निर्मित होने से इन कैंचियों का डिजाइन सटीक है, जबकि मेरठ में अब भी हाथ से कैंची बनाई जाती है।
इन्होंने बताया
सरकार की ढुलमुल नीतियों के चलते चीनी कैंची ने बाजार पर कब्जा कर लिया। रही सही कसर 18 फीसद जीएसटी ने पूरी कर दी। मंदी के चलते कारोबार 50 फीसद गिर गया। कई लोगों ने दूसरा व्यवसाय अपना लिया। क्लस्टर बनाकर भी कैंची उद्योग को खास फायदा नहीं मिला।
- शरीफ अहमद, उपाध्यक्ष, कैंची क्लस्टर मेरठ
कैंची उद्योग को बचाने के लिए मेरठ में कॉमन मॉडल का प्रयास किया जा रहा है। इससे सभी व्यवसायी लाभान्वित होंगे। कैंची बनाने वाले मोहल्लों में सर्वे कराया जा रहा है। चीनी कैंचियों ने इंडस्ट्री को नुकसान पहुंचाया है।
- वीके कौशल, उपायुक्त, उद्योग
भारी पड़ी टैक्स की मार
कैंचियान मोहल्ले में कारोबारी बताते हैं कि पहले कैंची पर पांच प्रतिशत वैट था। अब 18 फीसद जीएसटी लागू करने से कैंचियां महंगी हो गईं। उधर, मंदी की वजह से टेक्सटाइल इकाइयों ने भी खरीद बंद कर दी, जिससे लागत भी निकालना मुश्किल हो गया। जीएसटी से बचने के लिए दुकानदारों ने कैंचियों का भंडारण भी घटा दिया। वल्र्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन द्वारा जीआई टैग का दर्जा मिलने के बावजूद कैंची कारोबार की धार भोथरी होती जा रही है। उद्यमी कच्चे माल के रूप में स्क्रैप और पुरानी कमानी का प्रयोग करते हैं, किंतु मंदी के कारण खपत लगातार गिर रही है।
कैंची कारोबार-करीब 350 वर्ष पुराना
सालाना टर्नओवर-30 करोड़
विशेषता-जीआई टैग मिला-कोई अन्य मेरठ के नाम से नहीं बेच सकता
कुल इकाइयां-200, करीब 75 बंद पड़ी
प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार-50, 000