इनसे सीखें इन्‍सानियत, बुजुर्गों ने कहा-हमारा श्राद्ध कर्म आदि कर्मकांडों की जगह गरीबों की सेवा कीजिएगा

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RGA न्यूज़ उत्तराखंड हल्द्वानी

श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितरों की याद में तर्पण श्राद्ध आदि कर्म करते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जो अपने उत्‍तराध्‍िाकारियों से इसकी जगह गरीबों की सेवा का वचन ले रहे हैं।...

हल्द्वानी- : श्राद्ध पक्ष में लोग अपने पितरों की याद में तर्पण, श्राद्ध आदि कर्म करते हैं। वहीं कुछ बुजुर्ग ऐसे भी हैं जो अपने उत्तराधिकारियों से एक अनोखा वचन ले रहे हैं। वे नहीं चाहते हैं कि मरणोपरांत उनका श्राद्ध कर्म आदि कर्मकांड किया जाए, बल्कि वे अपने उत्‍तराधिकारियों से गरीबों की सेवा का वचन ले रहे हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि वे कर्मकांड या रीति-रिवाज में उनका भरोसा नहीं। इसको लेकर उनका अपना धार्मिक तर्क है। श्राद्ध पक्ष में पितरों की पुण्यतिथि पर पतित पावनी नदियों के किनारे, मंदिरों के तटों या घर पर श्राद्ध कर्मकांड आयोजित किए जा रहे हैं। कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने मरणोपरांत देहदान की घोषणा करने के साथ अपने उत्तराधिकारियों से वचन लिया है कि उनके मरणोपरांत किसी प्रकार का श्राद्ध, कर्मकांड आदि न किए जाए। 

श्रीकृष्ण के उपदेश से मिली प्रेरणा : श्रीनिवास

मरणोपरांत देहदान का संकल्प लेने वाले हल्द्वानी के कुंतीपुरम निवासी मिश्रा दंपती श्रीनिवास मिश्रा व कमला मिश्रा का कहना है कि वह किसी प्रकार के कर्मकांड या रीति-रिवाज के विरोधी नहीं हैं। कर्मकांड में विधान है कि जब तक चावल, बालू आदि का पिंड बनाकर श्राद्ध कर्म न किया जाए पितरों की आत्मा भटकती, प्यासी व अशांत रहती है। जबकि विश्व को कर्म के प्रति प्रेरित करने वाली श्रीमद भागवत गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं आत्मा अजर-अमर है। शस्त्र, वायु, पानी, आग आदि उसे प्रभावित नहीं कर सकते। श्रीनिवास कहते हैं भगवान के उपदेश व कर्मकांड की परंपरा में विरोधाभास को देखते हुए उन्होंने भगवान के उपदेश को चुना और बच्चों से मरणोपरांत किसी तरह का श्राद्ध कर्म नहीं करने का वचन लिया।

बीमार, असहाय की मदद करना श्रेष्ठ : सुगड़ा

बिठोरिया गोविंदपुरम निवासी जीएस सुगड़ा एसबीआइ से एजीएम पद से रिटायर्ड हैं। देहदान का संकल्प लेने वाले सुगड़ा कहते हैं कि आत्मा आदि को लेकर समाज में तमाम तरह के घालमेल हैं। कई तरह की भ्रांतियां, रूढि़वादिता फैलाई जाती हैं। उन्होंने अपनी पत्नी, बेटी और दामाद को अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा है कि उनके मरणोपरांत श्राद्ध, तर्पण आदि में होने वाली धनराशि को अस्पताल में भर्ती गरीब व असहाय लोगों को दिया जाए। 

जरूरतमंद की सेवा से बड़ा कोई कर्म नहीं : सामंत

जज फार्म निवासी जेएस सामंत सेवानिवृत्त इंजीनियर हैं। अपनी पत्नी की मौत के बाद सामंत ने मृत शरीर मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया था। सामंत ने पत्नी का क्रियाक्रम करने बजाय मेधावी गरीब बच्चों की सेवा करना बेहतर समझा। सामंत ने अपने गांव देवलथल जाकर बच्चों को बाल कहानी, मोटिवेशनल, इतिहास, समाजशास्त्र आदि की किताबें भेंट की। मेधावी तीन बच्चों को 5100 रुपये पुरस्कार दिया। सामंत कहते हैं श्राद्धकर्म अंधविश्वास है।

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