वायुसेना देगी दुश्‍मन को मुंहतोड़ जवाब, जांबाजों की टोली हो रही आगरा में तैयार

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RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश आगरा

वायुसेना का इकलौता पैरा ट्रेनिंग स्कूल है आगरा एयरबेस में धौनी भी ले चुके हैं ट्रेनिंग। बांग्लादेश श्रीलंका समेत अन्य मित्र देशों के सैन्य अफसर भी यहां ले रहे हैं ट्रेनिंग। ..

आगरा:- भारतीय वायुसेना, पड़ोसी मुल्‍क को हवा में ही पटखनी देने में सक्षम है। देश को हर वर्ष आगरा एयरबेस 13 हजार जांबाजों की टोली मुहैया करा रहा है। एयर रिफ्यूलिंग के लिए महत्वपूर्ण इस एयरबेस की पहचान यहां के पैरा ट्रेनिंग स्कूल (पीटीएस) से भी है। इस स्कूल से ट्रेनिंग लेकर हर वर्ष देश विदेश के 13 हजार से अधिक पैराट्रूूपर तैयार होते हैं। यहां जो फेल हो जाता है, वो हमेशा के लिए पैरा जंपिंग का मौका खो देता है। सोमवार को एयरफोर्स अधिकारियों ने जागरण टीम को यहां के बारे में जानकारी दी।

आगरा एयरबेस में देश का इकलौता पीटीएस है। आगरा में तीनों सेना की पैरा ट्रेनिंग होती है। सालभर में 50 हजार पैराजंपर मलपुरा ड्रॉपिंग जोन में छलांग लगाते हैं जिसमें भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका सहित अन्य के जवान शामिल हैं। मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी ने यहीं पर पैराट्रूूपर बनने की ट्रेनिंग ली थी। पीटीएस के चीफ इंस्ट्रक्टर केवीएस समाया ने बताया कि भारतीय थल सेना के पैरा कमांडो, वायु सेना के गरुड़ कमांडो और नौ सेना मरीन कमांडो को यहां 12 दिन की बेसिक पैरा ट्रेनिंग दी जाती है। तीन चरण में दी जाने वाली ग्राउंड ट्रेनिंग में पैरा पैराट्रूूपर को विमान से बाहर निकलने से लेकर लैंडिंग तक को तैयार किया जाता है। इसके बाद फील्ड जंपिंग से पहले उसे एक टेस्ट से गुजरना पड़ता है। फेल होने वालों को उनकी मूल यूनिट में भेज दिया जाता है और कभी दोबारा उन्हें पैरा ट्रेनिंग का मौका भी नहीं मिलता। पास होने वालों को ड्रॉप जोन में ले जाकर विमान से पांच जंपिंग कराई जाती हैैं। जिसमें चार जंप दिन और एक रात में होती है। इसमें पास होने के बाद ही पैराट्रूूपर का तमगा मिलता है। शुरुआत में विमान से 240 किमी प्रति घंटा की स्पीड से पैराट्रूूपर को 1250 फीट की ऊंचाई से जंप कराई जाती है। एक पैराट्रूूपर से दूसरे के उतरने का अंतर केवल सात सेकंड का रहता है। बेसिक ट्रेनिंग के अलावा समय-समय पर यहां एडवांस ट्रेनिंग भी दी जाती है। 40 हजार फीट की ऊंचाई से कूद सकते हैं।

ये है इतिहास

  • इस एयरबेस को सबसे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका के लिए तैयार किया गया था। साल 1942 में जापान से लडऩे के लिए अमेरिकी जंगी विमान इस एयरपोर्ट का इस्तेमाल सप्लाई और मेंटेनेंस के लिए करते थे।
  • तब इसका नाम आगरा एयर ड्रॉप था। विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद रॉयल इंडियन एयर फोर्स ने इसका इस्तेमाल बदल दिया था।

फैक्ट फाइल

  • 15 अगस्त 1947 को आगरा एयरफोर्स स्टेशन की स्थापना हुई थी। तब यहां विंग कमांडर शिवदेव सिंह को तैनात किया गया था। 12 स्क्वाड्रन से शुरुआत हुई थी।
  • जुलाई 1971 में आगरा वायु सेना मध्य कमांड में आ गया।
  • आगरा में एएन-32, आइएल-78 के अलावा पिचौरा मिसाइल भी है।
  • आइएल-78 विमान का 78 स्क्वाड्रन आगरा में है। इसका गठन मार्च 2003 में हुआ था। निक नेम बैटल क्राई है। एक विमान में 118 टन फ्यूल आ सकता है। आइएल-78 किसी भी विमान को 500 से 600 लीटर प्रति मिनट के हिसाब से ईंधन दे सकता है। आइएल-78 विमान एक साथ तीन फाइटर प्लेन को ईंधन देने की क्षमता रखता है। यह कई अन्य कार्यों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

एएन-32 विमान

इसका इस्तेमाल युद्ध या रेस्क्यू के समय मेन पावर, राहत सामग्री पहुंचाने में किया जाता है। सेना के लिए हथियार और गोला बारूद भी इससे पहुंचाए जाते हैं। 

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