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हेपेटाइटिस एक ऐसी बीमारी है जिससे बचाव के लिए लिवर को स्वस्थ रखना बहुत ज़रूरी है। क्यों होती है ऐसी समस्या जानने के लिए पढ़ें यह लेख।..
शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में लिवर का बड़ा योगदान होता है। यह भोजन में मौज़ूद पोषक तत्वों को छांट कर अलग करके उन्हें अपने पास सुरक्षित रखता है और ज़रूरत के अनुसार शरीर के विभिन्न हिस्सों में उनकी आपूर्ति करता है। इतना ही नहीं, यह ब्लड में मौज़ूद विषैले तत्वों को पहचान कर उन्हें भी शरीर में फैलने से रोकता है। अगर शरीर का यह महत्वपूर्ण अंग बीमार पड़ जाए तो इसकी वजह से व्यक्ति को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
क्या है हेपेटाइटिस
जब किसी व्यक्ति के लिवर में सूजन आ जाती है तो उस शारीरिक अवस्था को हेपेटाइटिस कहा जाता है। जागरूकता के अभाव में भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा इस बीमारी से जूझ रहा है। मुख्यत: इसके लिए वायरस को जि़म्मेदार माना जाता है। कई बार शरीर में अपने आप ही इसके लक्षण प्रकट होने लगते हैं, इसी वजह से इसे ऑटो इम्यून डिज़ीज़ भी कहा जाता है। एल्कोहॉल या घी-तेल और मिर्च-मसाले से युक्त भोजन और कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट को भी इसके लिए जि़म्मेदार माना जाता है।
हेपेटाइटिस के प्रकार
हेपटाइटिस को फैलाने के लिए मुख्यत: पांच प्रकार के वायरस ए, बी, सी, डी और ई को जि़म्मेदार माना जाता है। हेपेटाइटिस बी और सी के मरीज़ों में लिवर कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। हेपेटाइटिस ए और ई का संक्रमण दूषित पानी और खाने से फैलता है। हेपेटाइटिस बी का वायरस इंजेक्शन, संक्रमित खून चढ़ाने या असुरक्षित यौन संबंध के कारण फैलता है। हेपेटाइटिस बी, सी और डी संक्रमित व्यक्ति के ब्लड या अन्य प्रकार के तरल पदार्थों के संपर्क में आने से फैलता है। यह संक्रमित रक्त, सूई या ऐसे ही अन्य मेडिकल उपकरणों के प्रयोग से भी होता है। हेपेटाइटिस बी का वायरस संक्रमित स्त्री के गर्भस्थ शिशु में भी फैल सकता है। सहवास के ज़रिये पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को हेपेटाइटिस बी और सी होने की आशंका अधिक रहती है। गर्भवती स्त्रियों और बच्चों का इम्यून कमज़ोर होता है, अत: उनका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
प्रमुख लक्षण
बुखार, भोजन में अरुचि, पेट में दर्द, जी मिचलाना, मांसपेशियों में दर्द, आंखों और त्वचा की रंगत में पीलापन, पैरों में सूजन एवं अनावश्यक थकान महसूस होना आदि इसके प्रमुख लक्ष्ण हैं।
क्या है उपचार
ब्लड टेस्ट से इसकी पहचान की जा सकती है। इसके अलावा लिवर फंक्शन टेस्ट और अल्ट्रासाउंड के माध्यम से भी हेपेटाइटिस के सभी प्रकारों की जांच की जाती है। टेस्ट की रिपोर्ट पॉजि़टिव आने के बाद डॉक्टर की सलाह पर तुरंत इलाज शुरू करना चाहिए। प्रेग्नेंसी के दौरान इसकी जांच अवश्य करवानी चाहिए। कोई भी लक्षण नज़र आए तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
कैसे करें बचाव
1. अपने आसपास सफाई का ध्यान रखें और गर्भवती स्त्रियों को इस मामले में विशेष सजगता बरतनी चाहिए। 2. बच्चों का टीकाकरण कराएं। अब वयस्कों के लिए भी इसके टीके उपलब्ध हैं।
3. अधिक घी-तेल और मिर्च-मसाले वाले भोजन से बचें।
4. सिगरेट और एल्कोहॉल से दूर रहें।
5. लक्षण देखकर अनुमान के आधार पर अपने आप दवा लेने की आदत छोड़ दें।
6. जन्म के बाद से डॉक्टर की देखरेख में शिशु को हेपेटाइटिस का टीका ज़रूर लगवाएं।
डॉ. महेश गुप्ता (कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशेलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली)