शराब निर्माताओं पर सरकार की मेहरबानी गन्ना किसानों पर भारी, चीनी मिलें भी उठा रहीं नुकसान

Praveen Upadhayay's picture

 RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश लखनऊ

शराब निर्माताओं को राहत देने से अधिक जरूरी चीनी उद्योग को बचाना है। यह 32 लाख गन्ना किसान परिवारों के हितों से जुड़ा मसला है।...

लखनऊ:- यूपी में शीरा नीति विरोधाभासों में घिरी नजर आती है। शीरा बनाता कोई और है, नियंत्रण किसी और विभाग का है। किसानों का इससे सीधा कोई संबंध नहीं, लेकिन बकाया गन्ना मूल्य का भुगतान न होने से सबसे अधिक असर उन्हीं पर है। बीमार होते चीनी उद्योग को भी इससे संजीवनी मिलने की उम्मीद नहीं क्योंकि शराब निर्माताओं के केंद्र में रखकर ही नीतियां तैयार की गईं। शीरा आरक्षण चीनी मिलों के लिए कोढ़ अलग से बना हुआ है, क्योंकि इससे उन्हें लगातार नुकसान ही उठाना पड़ा है।

मदिरा निर्माताओं के लिए सरकार ने शीरे का आरक्षण कोटा 12 से बढ़ाकर 16.50 प्रतिशत किया है। यानि मिल मालिकों को कुल उत्पादित शीरे का 16.50 प्रतिशत हिस्सा बाजार से बेहद कम दर पर बेचना अनिवार्य है। जो शीरा बाजार में 450 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकता है, उसे देशी शराब बनाने के लिए मात्र 75 से 80 रुपये प्रति क्विंटल दर से बेचना पड़ता है। मिल संचालकों के अनुसार इससे मिलों को 350 से 400 करोड़ रुपये की हानि होती है, जिसमें से लगभग सौ करोड़ रुपये का नुकसान सहकारी चीनी मिलों के हिस्से आता है। अधिकतर सहकारी मिलों की दयनीय दशा किसी से छिपी नहीं है। इनको चलाए रखने के लिए सरकार को प्रतिवर्ष मदद करनी पड़ती है। ऐसे में शीरा आरक्षण से होने वाला सौ करोड़ रुपये का नुकसान सहकारी क्षेत्र की मिलों के लिए कंगाली में आटा गीला होने जैसा है।

गन्ना सहकारी समिति अध्यक्ष महासंघ के महामंत्री अरविंद कुमार सिंह कहते है कि नया पेराई सत्र 30 अक्टूबर से आरंभ करने का दावा किया जा रहा है, परंतु अभी किसानों के पिछले सत्र के 4611 करोड़ रुपये मिलों पर अटके हैं। सरकार चाहे तो देशी शराब निर्माताओं को अलग से मदद दे, परंतु मिलों की आत्मनिर्भरता बनाए रखी जानी चाहिए। वह कहते हैं कि शराब निर्माताओं को राहत देने से अधिक जरूरी चीनी उद्योग को बचाना है। यह 32 लाख गन्ना किसान परिवारों के हितों से जुड़ा मसला है। चीनी मिलें घाटे में रहेंगी तो गन्ना मूल्य भुगतान की समस्या प्रतिवर्ष बनी ही रहेगी। 

स्थायी होती बकाया भुगतान समस्या

पिछले कई वर्षो से मिलों द्वारा समय से भुगतान नहीं कर पाने की समस्या बनी है। केवल चीनी बिक्री के भरोसे मिलों को चलाना मुश्किल हो रहा है। गन्ने की उपज बढ़ने से प्रदेश में चीनी का रिकार्ड उत्पादन हो रहा है। इसके अलावा चीनी की मांग में ठहराव और मूल्य नियंत्रित नीति के चलते प्रदेश में पर्याप्त स्टाक मौजूद है। यूपी इस्मा (उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन) के अनुसार प्रदेश में करीब 50 लाख मीट्रिक टन चीनी अब भी गोदामों में पड़ी है। इतना ही नहीं चीनी बिक्री का कोटा भी सरकार तय करती है। मिल मालिक अपनी मर्जी से चीनी नहीं बेच सकते। औसतन प्रतिमाह सात लाख टन चीनी बेचने की अनुमति है। जाहिर है चीनी बिक्री पर कंट्रोल का असर गन्ने के भुगतान पर भी होता है।

विभागीय समन्वय का टोटा

शीरे को लेकर दो विभागों में आपसी तालमेल बेहतर न होना भी आड़े आता है। शीरे का उत्पादन गन्ना विकास व चीनी उद्योग विभाग के अधीन है परंतु इसका नियंत्रण आबकारी विभाग ही करता है। इस कारण भी किसानों को लाभ से वंचित रहना पड़ता है। शीरे का उत्पादन व नियंत्रण किसी एक विभाग के हाथ में होना बेहतर रहेगा। एथनॉल उत्पादन में प्रदेश अव्वल है। गत पेराई सत्र में चार लाख 43 हजार लीटर एथनॉल का उत्पादन हुआ। यूपी इस्मा के सचिव दीपक गुप्तारा कहते है कि प्रदेश में एथनॉल उत्पादन की अपार संभावना है। अभी कुल 121 चीनी मिलों में से 48 में ही एथनॉल उत्पादन हो रहा है।

शीरा निर्यात की भी संभावना

उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) लगातार शीरा आरक्षण का विरोध करता रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में भी उसने बार-बार कोटा बढ़ाने पर सवाल उठाए हैैं। इस्मा का कहना है कि शराब निर्माण के लिए अन्य माध्यम जैसे खराब अनाज आदि का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। भारतीय शीरे की यूरोप में मांग बढ़ी है। निर्यात की संभावना को देखते हुए ही शीरा नीति तैयार हो तो बेहतर होगा। 

लक्ष्य                             2019-20

आबकारी राजस्व             31600 करोड़ रुपये।

देशी शराब से राजस्व        14500 करोड़ रुपये।

देशी शराब उत्पादन         43.64 करोड़ लीटर।

शीरा उत्पादन                 500 क्विंटल।

एथनॉल उत्पादन              61 करोड़ लीटर।

किसानों का बकाया गन्ना मूल्य

मिलें                कुल गन्ना मूल्य          बकाया

निगम 3             181.50                 33.86

सहकारी 24       2892.54               335.17

निजी-92            29974.00            4242.09

कुल मिलें-119    33048                 4611.12

News Category: 
Place: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.