BHU में बोले गृह मंत्री अमित शाह - अंग्रेज इतिहासकारों और वामपंथियों को दोष देना बंद करें, सत्य पर आधारित इतिहास लिखें

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RGA न्यूज़ बनारस उत्तर प्रदेश

अमित शाह ने गुरुवार को बीएचयू आयोजित में एक गोष्ठी में कहा कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को इतिहास में बहुत प्रसिद्धि मिली लेकिन उनके साथ इतिहास में बहुत अन्याय भी हुआ।...

वाराणसी:- गृह मंत्री अमित शाह ने देश के इतिहासकारों से अपील की है कि भारत का गलत इतिहास लिखने के लिए अंग्रेज इतिहासकारों और वामपंथियों को कोसना और गाली देना बंद करें। अब जरूरत है कि देश के गौरवशाली उस इतिहास को सत्य के आधार पर लिखें जिनके साथ अन्याय हुआ। इतिहास में विस्मृत किए गए ऐसे 200 महापुरुषों और 25 साम्राज्यों पर विस्तार से लिखें। पहले क्या इतिहास लिखा गया उसके विवाद में न पड़ें, उसे भूल नए सिरे से इतिहास लिखें। बीएचयू में भारत अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी "गुप्तवंशैक वीरः स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य का ऐतिहासिक पुनः स्मरण एवं भारत राष्ट्र का राजनीतिक भविष्य" को गृह मंत्री अमित शाह ने बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को बीएचयू आयोजित में एक गोष्ठी में कहा कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य को इतिहास में बहुत प्रसिद्धि मिली, लेकिन उनके साथ इतिहास में बहुत अन्याय भी हुआ। उनके पराक्रम की जितनी प्रशंसा होनी चाहिए थी, उतनी शायद नहीं हुई। गृह मंत्री अमित शाह ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में आयोजित 'गुप्त वंश के वीर : स्कंदगुप्त विक्रमादित्य का ऐतिहासिक पुन: स्मरण एवं भारत राष्ट्र का राजनीतिक भविष्य' विषय पर आयोजित गोष्ठी में कहा कि महाभारत काल के 2000 वर्ष बाद 800 वर्ष का कालखंड दो प्रमुख शासन व्यवस्थाओं के कारण जाना गया। मौर्य वंश और गुप्त वंश। दोनों वंशों ने भारतीय संस्कृति को तब के विश्व के अंदर सर्वोच्च स्थान पर प्रस्थापित किया।

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि स्‍कंदगुप्‍त के समय भारत में अफगानिस्‍तान से लेकर संपूर्ण भारत में स्‍वर्णकाल रहा। सैन्‍य, साहित्‍य, कला आदि के क्षेत्र में विश्‍वस्‍तरीय सुविधाएं मयस्‍सर हुईं। सेना को समृद्ध करने के साथ ही अखंड भारत का निर्माण किया और एकता के सूत्र में पराक्रम से पिरोया था। चीन की दीवार का निर्माण हूणों के आक्रमण को रोकने के लिए बनी थी, ताकि सभ्‍यता और संस्‍कृति बनी रहे। मगर देश में उस काल में सैन्‍य ताकत के बल पर भारतीय संस्‍कृति सुरक्षित रही। उस काल में कई ज्‍योतिषाचार्य मिले और साहित्‍य का सृजन हुआ और हूणों का सामना भी उस काल में भारत ने किया। कश्‍मीर से कंधार तक हूणों के आतंक से देश को मुक्‍त कराया। विश्‍व में पहली बार स्‍कंदगुप्‍त से हूणों को पराजय मिली और बर्बर आक्रमण को खत्‍म करने के साथ सुखी और समृद्ध भारत का निर्माण किया। उस समय दुनिया के कई विद्वानाें ने यशगान किया। उस वजह से भारत के राजदूत को हूणों को स्‍कंदगुप्‍त द्वारा खत्‍म करने के लिए प्रशस्तिपत्र दिया था। सम्राट स्‍कंदगुप्‍त के पराक्रम और उनके शासन चलाने की कला पर चर्चा की जरूरत है। स्‍कंदगुप्‍त के इतिहास को पन्‍नों पर स्‍थापित कराने की जरूरत है। इतनी ऊंचाई पर रहने के दौरान शासन व्‍यवस्‍था के लिए शिलालेख बनाए। स्‍कंदगुप्‍त ने रेवेन्‍यू निय‍म भी बनाए जो आज की जरूरत है। लंबे गुलामी के दौर के बाद भी उनके बारे में कम ही जानकारी उपलब्‍ध है। सभागार में इतिहासकार बैठे हुए हैं, सबसे आग्रह है कि भारतीय इतिहास का भारतीय दृष्टिकोण से लेखन की जरूरत है। 

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