कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी पर अन्नपूर्णेश्वरी ने लुटाया खजाना, धन्वंतरि ने बरसाया आरोग्य अमृत

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RGA न्यूज़ बनारस

काशीपुराधिपति महादेव को भी अन्नदान देने वाली स्‍वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के दर्शन के लिए धनतेरस पर शुक्रवार की सुबह से ही भक्‍तों की लंबी कतार रही।...

वाराणसी:-!मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के 14 वर्षों का वनवास खत्म कर अयोध्या लौटने की खुशी महादेव की नगरी में छलकती नजर आई। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी पर धनतेरस के पूजन विधान संग पांच दिवसीय दीप ज्योति पर्व का श्रीगणेश हुआ। शुभ-लाभ की कामना से घरों-प्रतिष्ठानों में धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी-प्रथम पूज्य गणेश और संपत्ति के कोषाध्यक्ष भगवान कुबेर पूजे गए। मां स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी के पट खुले और मइया ने खुले हाथों श्रीसमृद्धि का खजाना लुटाया और आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि ने आरोग्य का आशीष अमृत बरसाया। बाजारों में रौनक देखते बनी और लोगों ने भय-बाधाओं से मुक्ति को यमराज के नाम पहला दीप जलाया।

सवा लाख श्रद्धालुओं ने पाया दर्शन का सौभाग्य

बाबा विश्वनाथ के आंगन में विराजमान मां अन्नपूर्णा मंदिर के प्रथम तल स्थित स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी दरबार के पट सुबह मंगला आरती के बाद खोल दिए गए। साल भर इंतजार के बाद भगवती ने भक्तों को दर्शन दिया और धन-धान्य के खजाने से झोली भर दिया। दर्शन और धन-धान्य का खजाना पाने को गुरुवार शाम से श्रद्धालुओं की कतार लगी जो भोर तक दो किलोमीटर का दायरा पार कर गई। महंत रामेश्वर पुरी ने पूजन-अनुष्ठान कर आरती उतारी और दर्शन का क्रम शुरू हुआ। दोपहर में भोग आरती के लिए थोड़ा विश्राम हुआ और रात 11 बजे तक लगभग सवा लाख लोगों ने दर्शन और खजाना सौभाग्य प्राप्त किया। इसके बाद भी कतार बरकरार थी और लोगों को दूसरे दिन दर्शन के लिए पट खुलने का इंतजार था। बाबा विश्वनाथ को काशी के भरण-पोषण के लिए भिक्षादान करतीं स्वर्णमयी अन्नपूर्णा का मंदिर वर्ष में सिर्फ चार दिन, धनतेरस से अन्नकूट तक खुलता है। इसमें अठन्नी-धान का लावा व बताशा धन-धान्य का खजाना स्वरूप में वितरित किया जाता है। गंगा तट पर शीतला मंदिर व दुर्ग विनायक मंदिर दुर्गाकुंड में भी खजाना वितरण किया गया।

अमृत रस की फुहार

सुडिय़ा स्थित धन्वंतरि निवास में आरोग्य के देवता भगवान धनवंतरि दरबार के पट शाम पांच बजे आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। इससे पहले औषधीय वनस्पतियों से श्रृंगार किया गया। विशिष्ट औषधियों का भोग समर्पित किया गया। पं. समीर शास्त्री के निर्देशन में पांच ब्राह्मïणों ने वैदिक मंत्रों के बीच पूजन-अर्चन किया। दुनिया के अनूठे मंदिर में रजत सिंहासन पर विराजमान ढाई फुट ऊंची रत्न जडि़त देव मूर्ति का श्रद्धालुओं ने आरोग्य कामना से दर्शन किया। राजवैद्य स्व. शिवकुमार शास्त्री का परिवार नौ पीढिय़ों से प्रभु की सेवकाई में रत है। मंदिर के पट वर्ष में एक बार धनतेरस पर आमजनों के लिए खोले जाते हैं।

लक्ष्मी की स्थिरता को पूजन-अनुष्ठान

श्रीसमृद्धि के विधान को समर्पित कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि तो शाम 4.32 बजे लगी मगर इससे पहले ही धर्मनगरी श्रद्धा भक्ति के रंगों में रंगी। पूरा दिन तैयारियों में बीता और लोगों ने सायंकाल यम के नाम घर द्वार पर प्रथम दीप जलाया। शुभ मुहूर्त में शाम 6.50 से 8.40 बजे तक लक्ष्मी गणेश व कुबेर की विधि विधान से पूजा आराधना की। समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि के पूर्वाह्न में प्रकट होने की मान्यता के तहत उनकी जयंती शनिवार को मनाई जाएगी लेकिन कुछ लोगों ने धनतेरस से नाता जोड़ते हुए पहले ही दिन पूजन विधान पूरे कर लिए।

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