RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश लखनऊ
After Ayodhya Verdict जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या फैसले को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने का मन बनाया है।...
लखनऊ:- अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने अनुचित बताते हुए नामंजूर कर दिया है। लखनऊ में रविवार को बोर्ड की कार्यकारिणी ने अहम बैठक कर निर्णय लिया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मुस्लिम पक्ष पुनर्विचार याचिका दायर करेगा। बोर्ड ने मस्जिद के लिए पांच एकड़ भूमि अन्यत्र लेने से भी यह कहते हुए इन्कार कर दिया कि यह शरीयत के खिलाफ है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की रविवार को डालीगंज स्थित मुमताज पीजी कॉलेज में करीब तीन घंटा की बैठक के बाद सदस्यों ने अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने पर सहमति जताई है। इसके साथ ही इन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भी उंगली उठाई है। बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोर्ड के सदस्यों ने मीडिया को संबोधित किया। सैयद कासिम रसूल इलियास के साथ बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने मीडिया को संबोधित किया। इन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड पुर्नविचार याचिका दाखिल करेगा। अयोध्या मामले को लेकर ऑल इंडिया पर्सनल मुस्लिम लॉ बोर्ड रिव्यू फाइल करेगा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आज करीब तीन घंटा चली बैठक में 45 सदस्य मौजूद थे। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट से फैसले बोर्ड संतुष्ट नहीं है।
बाबरी मस्जिद की ऐवज में पांच एकड़ जमीन नहीं
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक रविवार को मुमताज पीजी कॉलेज, डालीगंज में हुई। बैठक के बाद प्रेसवार्ता में बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने बताया कि मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर नहीं है। इसमें हमारे साथ इंसाफ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि हम अयोध्या में नई मस्जिद के लिए नहीं गए थे। वहां पहले से 27 मस्जिद हैं। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद पर अपने हक के लिए मुकदमा दायर किया था। जीलानी ने कहा कि बाबरी मस्जिद की ऐवज में पांच एकड़ जमीन हम नहीं ले सकते। इस्लामी शरीयत भी हमें इजाजत नहीं देती कि हम मस्जिद के बदले में जमीन या कुछ भी लें। उन्होंने कहा कि अधिवक्ता राजीव धवन के मुताबिक हम 30 दिन के अंदर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं। इस मामले के सभी पक्षकारों के पास यह अधिकार है
बैठक के बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि हम अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे। मस्जिद की जमीन के बदले में मुसलमान कोई अन्य जमीन कबूल नहीं कर सकते। पर्सनल लॉ बोर्ड को मस्जिद के लिए किसी दूसरी जगह पर जमीन मंजूर नहीं है। जमीयतुल उलमा ए हिन्द अध्यक्ष अरशद मदनी कहते है कि मस्जिद शिफ्ट नही हो सकती। दूसरी जगह लेने का सवाल नहीं है। फैसले में कई अंतर्विरोध हैं। बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोर्ड के सदस्यों ने मीडिया को संबोधित किया। इन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि माना है वहां पर नमाज पढ़ी जाती थी। इसके साथ ही वहां पर गुम्बद के नीचे जन्मस्थान का प्रमाण नहीं मिला है। पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों ने कहा कि जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि वहां पर मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई।
जिलानी ने कहा कि शरीयत के हिसाब से जहां एक बार मस्जिद बन जाती है, वहां मस्जिद ही रहती है। मस्जिद के बदले हम रुपया पैसा वा दूसरी जमीन नहीं ले सकते हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 5 एकड़ जमीन की पेशकश को लेने से इनकार करता है। इसके साथ ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कोई ऐसा काम नही करेगा जो कोर्ट के खिलाफ हो। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जफरयाब जिलानी, महफूज उमरेन, इरशाद अहमद व इलियास ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि माना है वहां पर नमाज पढ़ी जाती थी। इसके साथ ही वहां पर गुम्बद के नीचे जन्मस्थान का प्रमाण नहीं मिला है। पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों ने कहा कि जन्मस्थान को न्यायिक व्यक्ति नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि वहां पर मंदिर तोड़कर मस्जिद न
वहीं, पक्षकार इकबाल अंसारी द्वारा इस मामले पर राजनीति न करने के बयान पर जीलानी ने कहा कि यह राजनीति नहीं, हक की लड़ाई है। हमें पता चला है कि अयोध्या में पुलिस प्रशासन इस फैसले के खिलाफ कुछ बोलने नहीं दे रहा। हो सकता है कि इकबाल अंसारी भी दबाव में हों।
नदवा कॉलेज के स्थान पर मुमताज पीजी कॉलेज में आयोजित बैठक में जमीअत उलमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी बैठक में देर से पहुंचे और कुछ ही देर में वापस भी हो गए। इस दौरान मीडिया ने जब उनको रोका तो उन्होंने मीडिया से बातचीत नहीं की। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक के दौरान बाहर आने वाले जमीयत उलमा-ए-हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि हमने सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या फैसले को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने का मन बनाया है। जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमको पुर्नविचार याचिका पर सुनवाई के बाद कुछ बदलाव होने की संभावना नहीं है। बैठक के बाद मौलाना मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमको मालूम है पिटिशन का हाल क्या होना है। इसके बाद भी हम रिव्यू पिटिशन दाखिल करेंगे। फिर भी यह हमारा हक है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में हैदराबाद सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक आरिफ़ मसूद, आरिफ अकील, एआईएमपीएलबी बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना जलालुद्दीन उमरी, सदस्य आसमां ज़हरा, उमरैन महफूज, महासचिव वली रहमानी, राबे हसन समेत कई बड़े मुस्लिम धर्मगुरू और नेता मौजूद थे। सुन्नी वक्फ बोर्ड का कोई भी प्रतिनिधि बैठक में मौजूद नहीं था। इस बैठक में बोर्ड के कार्यकारी सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली के साथ बोर्ड उपाध्यक्ष मौलाना जलालुद्दीन उमरी, महिला विंग की संयोजक डॉ आसमा जहरा, बोर्ड के महासचिव मौलाना वाली रहमानी, ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख तथा हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी तथा अध्यक्ष, जमीअत उलमा हिन्द मौलाना अरशद मदनी भी मुमताज कॉलेज पहुंचे। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की मीटिंग में चारों महिला मेंबरान डॉ आसमा ज़हरा, निगहत परवीन खान, देहली की ममदुहा माजिद, आमना रिजवाना, मौलाना वाली रहमानी, जलालुद्दीन उमरी, मौलाना अतीक बस्तवी, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, असदुद्दीन ओवैसी, मौलाना अरशद मदनी जमीयत उलेमा ए हिंद, जफरयाब जिलानी, फजलुर रहीम मुजद्दीदी, ईटी मोहम्मद रशीद सांसद मुस्लिम लीग केरला, यासीन अली उस्मानी, सआदत उल्लाह हुसैनी जमात ए इस्लामी हिंद समेत अन्य मेंबरान मौजूद मौलाना राबे हसनी नदवी भी मुमताज डिग्री कॉलेज पहुंचे ।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की जारी की हुई विज्ञप्ति में शामिल बिंदू
1- बाबरी मस्जिद बाबर के कमांडर मीर बाकी के द्वारा 1528 में तैयार हुई थी जैसा कि मुकदमा नं 5 के बादीगण ने अपने वाद पत्र में स्वयं माना है और उच्चतम न्यायलय ने इसे स्वीकार किया है।
2- मुसलमानों द्वारा दिए गए साक्ष्य में ये साबित है कि 1857 से 1949 तक बाबरी मस्जिद का तीन गुम्बद वाला भवन और मस्जिद का अंदरुनी सहन मुसलमानों के कब्जे और प्रयोग में रहा है इसे उच्चतम न्यायलय ने भी स्वीकार किया है।
3- बाबरी मस्जिद में अंतिम नमाज 16 दिसंबर 1949 में पढ़ी गई थी, इसे उच्चतम न्यायालय ने भी स्वीकार किया है।
4- 22/23 दिसंबर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे अवैधानिक रूप से रामचंद्रजी की मूर्ति रख दी गई, इसे उच्चतम न्यायलय ने भी स्वीकार किया है।
5- बाबरी मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के नीचे भूमि को जन्म स्थान के रूप में पूजा जाना साबित नहीं है। अत सूट 5 के वादी संख्या 2 (जन्मस्थान) को Diety नहीं माना जा सकता है।
6- मुसलमानों के द्वारा दायर किया गया वाद संख्या 4 मियाद (Limitation) के अंदर है तथा आंशिक रूप से डिक्री किए जाने योग्य है।
7- उच्चतम न्यायालय ने भी माना है कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराये जाने का कार्य भी भारत के सेकुलर संविधान के विरुद्ध था।
8- विवादित भवन में हिंदू भी सैंकड़ों साल से पूजा करते रहे हैं इसलिए पूरे विवादित भवन की भूमि संख्या 5 के वादी संख्या 1 (भगवाना श्री राम लला) को दी जाती है।
9 - चूंकि विवादित भूमि वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को दी गई हे अत मुसलमानों को 5 एकड़ भूमि केंद्र सरकार द्वारा या तो एक्वायर्ड लैंड या राज्या सरकार द्वारा अयोध्या में किसी अन्य प्रमुख स्थान पर दी जाये जिस पर वह मस्जिद बना सकें। यह आदेश माननीय उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 की शक्तियों का प्रयोग करके पारित किया है। जिसके अनुसार उपरोक्त 5 एकड़ भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिए जाने का निर्देश दिया गया है।
10- माननीय उच्चतम न्यायलय ने एएसआई की रिपोर्ट की बुनियाद पर यह बात स्वीकार किया है कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्ज्दि नहीं बनाई गई है।
मीटिंग में इस बात पर भी चर्चा हुई कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात में बाबरी मस्जिद के गुम्बद के नीचे मूर्तियां रखे जाने के संबंध में दर्ज एफआईआर और उत्तर प्रदेश डीएम, फैजाबादा डीएम व एसपी फैजाबाद के द्वारा वाद संख्या 1 व 2 में दाखिल जवाब दावे में यह स्वीकार किया जा चुका है कि उपरोक्त मूर्तियां चोरी से और जबरदस्ती रखी गई थीं और माननीय उच्चतम न्यायालय लखनऊ बेंच में 30 सितंबर 2010 के निर्णय में भी उपरोक्त मूर्तियों को Diety नहीं माना था।
कार्यकारिणी ने मुख्यत निम्न आधारों पर उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त निर्ण को न्याय के अनुकूल नहीं पाया
1- जब 22/23 दिसंबर 1949 की रात में बलपूर्वक रखी गई रामचंद्र जी की मूर्ति तथा अन्य मूर्तियों का रखा जाना अवैधानिक था तो इस प्रकार अवैधानिक रूप से रखी गई मूर्तियों को Diety कैसे मान लिया गया है, जो हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार भी Diety नहीं हो सकती है।
2- जब बाबरी मस्जिद में 1857 से 1949 तक मुसलमानों का कब्जा तथा नमाज पढ़ा जाना साबित माना गया है तो मस्जिद की जमीन को वाद संख्या 5 के वादी संख्या 1 को किस आधार पर दे दिया गया।
3- संविधान की अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए माननीय न्यायमूर्ति ने इस बात पर विचार नहीं किया है कि वक्फ एक्ट 1995 की धारा 104-A तथा 51(1) के अंतर्गत मस्जिद की जमीने के Exchange या Transfer को पूर्णता बाधित किया गया है तो Statute के विरुद्ध तथा उपरोक्त वैधानिक रोक/ पाबंदी को अनुच्छेद 142 के तहत मस्जिद की जमीन के बदले में दूसरी जमीन कैसे दी जा सकती है। जबकि स्वयं माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने दूसरे निर्णयों में स्पष्ट कर रखा है कि अनुच्छेद 142 के अधिकार का प्रयोग करने की माननीय न्यायमूर्तियों के लिए कोई सीमा निश्चित नहीं है।
कार्यकारिणी ने उपरोक्त तथ्यों पर विचार करने तथा उच्चतम न्यायालय के निर्णय में उपरोक्त तथा अन्य apparent errors होने के कारण पुर्नविचार याचिका दायर करने का निर्णय लिया जिसमें कोई अन्य भूमि स्वीकार नहीं कर सकते हैं तथा न्याय हित में मुसलमानों को बाबरी मस्जिद की भूमि देने की कृपा की जाए, मुसलमान किसी दूसरे स्थान पर अपना अधिकार लेने के लिए उच्चतम न्यायालय नहीं गए थे बल्कि मस्जिद की भूमि हेतु न्याय के लिए उच्चतम न्यायालय गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले पर नौ नवंबर को अपना फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित जमीन रामलला विराजमान को राम मंदिर बनाने के लिए दे दी है। मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन देने का निर्देश केंद्र सरकार को दिया गया है। साथ ही यह भी निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार एक ट्रस्ट बनाए और उसमें निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व दिया जाए।