RGA न्यूज़ उत्तर प्रदेश आगरा ब्यूरो चीफ सोनू शर्मा
एडीआरडीई विकसित कर रहा है नया पैराशूट पहला चरण हुआ पूरा। सैन्य मूवमेंट में दुर्गम क्षेत्रों में उतरने में रहेगी आसानी। ...
आगरा:- देश में वायु सैनिकों को जल्द एक और तोहफा मिलने जा रहा है। पैराशूट के क्षेत्र में हवाई वितरण अनुसंधान एवं विकास संस्थापना (एडीआरडीई) एक और कीर्तिमान बनाने जा रहा है। उन्नत किस्म के छोटे पैराशूट के ट्रायल की तैयारी शुरू हो गई है। पहले चरण के ट्रायल में कामयाबी मिल चुकी है। छोटे किस्म के पैराशूट विकसित होने से दुर्गम क्षेत्रों में आसानी से उतरने में मदद मिलेगी, जबकि सैन्य मूवमेंट के दौरान पैराशूट से खोजी श्वान दल को भी उतारा जा सकेगा।
एडीआरडीई स्वदेशी तकनीक से विभिन्न तरीके के पैराशूट विकसित कर रहा है। फिर वह चाहे तीसरी पीढ़ी के पैराशूट हों या फिर हैवी ड्रॉप सिस्टम। हैवी ड्रॉप सिस्टम की मदद से किसी भी क्षेत्र में टैंक को भी उतारा जा सकता है। इन सब के बीच एडीआरडीई छोटे पैराशूट विकसित कर रहा है। यह कार्य तीन साल से चल रहा है। स्वदेशी पैराशूट बनाने में कामयाबी मिली है। पहले चरण का ट्रायल पूरा हो चुका है। अब दूसरा चरण जल्द होने की उम्मीद है। अगर यह चरण पूरा हो जाता है तो फिर मलपुरा ड्रॉपिंग जोन में पैराशूट के फाइनल ट्रायल होंगे। पैराशूट को विकसित करने में उन्नत किस्म की नायलान और विशेष तरीके के मैटेरियल का प्रयोग किया गया है।
1250 फीट से कूद सकेंगे
छोटे पैराशूट से एएन-32, हेलीकॉप्टर सहित अन्य विमान से 1250 फीट की ऊंचाई से छलांग लगाई जा सकेगी। विमान से कूदने के बाद यह एक मिनट के करीब जमीन पर आ जाएगा।
20 साल तक चलेगा पैराशूट
सामान्यतौर पर पैराशूट 15 साल में बदलने पड़ते हैं लेकिन छोटे पैराशूट 20 साल तक चलेगा।
13 किग्रा है वजन
छोटे पैराशूट का वजन 13 किग्रा है। अन्य पैराशूट का वजन 16 किग्रा के आसपास होता है। पीटीए-जीटू पैराशूट का वजन 14 किग्रा है।
इसलिए किया जा रहा विकसित
-युद्ध के दौरान छोटे पैराशूट से सामग्री आसानी से भेजी जा सकेगी।
-दुर्गम क्षेत्रों में खोजी श्वान दल को उतारने में मदद मिलेगी।
-पैराजंपिंग का सपना पूरा हो सकेगा।