तीन बेटियों की मेहनत से गांव में फैला शिक्षा का उजियारा, बुजुर्ग भी ग्रहण कर रहे शिक्षा 

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RGA न्यूज अमरोहा

प्रतिदिन सुबह-शाम गांव के बच्चों व बड़ों को कर रहीं शिक्षित। अमरोहा के गांव जिवाई में प्रत्येक ग्रामीण हो चुका है शिक्षित। ...

अमरोहा :- जोया ब्लाक के गांव जिवाई के मझरा फत्तेहपुर में शिक्षा क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। क्या बूढ़े, क्या बच्चे। घरों की दहलीज न लांघने वाली महिलाएं भी शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। लगभग तीन हजार की आबादी वाले दोनों गांवों में चार साल पहले संस्था से जुडऩे वाली तीनों छात्राएं प्रतिदिन परिवर्तन पाठशाला में तीन घंटे तक ग्रामीणों को पढ़ा रही हैं। गांव में 80 साल का बुजुर्ग भी अब अंगूठा नहीं लगाता।

सुबह छह बजे से शुरू होती है पाठशाला

जिले के जोया ब्लाक क्षेत्र में हाईवे से तीन किमी दूर स्थित गांव मझरा जिवाई में स्थित अंबेडकर भवन प्रांगण में प्रतिदिन सुबह छह बजे से सात बजे, शाम को पांच बजे से सात बजे तक चलने वाली इस पाठशाला को तीन छात्राएं संचालित कर रही हैं। शिक्षा, प्रियंका और शीतल बीएससी की छात्राएं हैं। चार साल पहले वह नई ऊर्जा नए विचार फाउंडेशन से जुड़ी थीं और गांव में परिवर्तन पाठशाला शुरू कर दी। गांव के बच्चों को पढ़ाने लगीं। इसके बाद महिलाओं व बुजुर्गों को भी पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे गांव के लोग छात्राओं के इस प्रयास से प्रभावित हुए तो संख्या बढ़ गई। चार साल के भीतर शिक्षा क्रांति का ऐसा असर दिखा कि अब गांव के 70 वर्षीय रामसरन व भागवती देवी भी कंपकंपाते हाथ से कलम पकड़ कर हस्ताक्षर करते हैं। गृहणी सुषमा, सीमा व रजनी कभी स्कूल नहीं गई थीं, लेकिन परिवर्तन पाठशाला में आकर लिखाई-पढ़ाई सीख गई हैं।

गांव में लाइब्रेरी की स्थापना

अंबेडकर भवन में स्थित इस लाइब्रेरी में गांव के छात्र-छात्राएं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। बीते चार साल में गांव के आठ युवक बिजली विभाग व पुलिस में सरकारी नौकरी प्राप्त कर चुके हैं। इनमें ङ्क्षरकू, पुष्पेंद्र, प्रदीप, शौकीन, नरेंद्र, टिंकू, अशोक कुमार व इशहाक अहमद शामिल हैैं।

300 लोगों को बना

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जिवाई मझरा की तीनों बेटियों ने गांव के 300 लोगों को साक्षर बना दिया। छात्रा प्रियंका बताती हैं कि गांव की युवा पीढ़ी तो शिक्षा से जुड़ी हुई है। परिवर्तन पाठशाला खोलने के पहले एक महीने तक तो लोगों को अजीब लगा था। बच्चों को पढ़ाते देख गांव के लोग देखने के लिए आते थे। बाद में घर-घर जाकर लोगों को समझाया तो उन्हें अच्छा लगा। विशेषकर गांव की महिलाएं तेजी के साथ पाठशाला आने लगीं। प्रियंका बताती हैं कि बीते चार साल में उन्होंने गांव के लगभग 300 लोगों को साक्षर किया है।

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