पड़ोसी देशों के सताए गए अल्पसंख्यकों के पक्ष में है उचित आधार वाला नागरिकता विधेयक

Praveen Upadhayay's picture

RGA न्यूज़

इस दलील की अनदेखी नहीं होनी चाहिए कि नागरिकता विधेयक का मकसद विभाजन के बाद के हालात से निपटना है।...

 नागरिकता संशोधन विधेयक पर संसद के भीतर और बाहर बहस गर्म है। यह बहस मीडिया में भी है और सोशल मीडिया में भी। हर कोई इस या उस पक्ष में अपनी राय रख रहा है। आलोचक इस विधेयक को मुस्लिम विरोधी के तौर पर पेश कर रहे हैं। जो विधेयक के विरोध में नहीं हैंं वे उसका समर्थन इसलिए नहीं कर रहे हैं कि यह कथित तौर पर मुस्लिम विरोधी है। वे तो इसका समर्थन इसलिए कर रहे है, क्योंकि यह पड़ोसी देशों के उन सताए गए अल्पसंख्यकों के पक्ष में है जिनका कहीं ठौर-ठिकाना नहीं।

पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित किया

1947 में जब देश का धार्मिक आधार पर बंटवारा हुआ तब भारत ने अपनी हिंदू मान्यताओं के चलते धर्म आधारित देश बनना पसंद नहीं किया। हिंदू मान्यताएं सेक्युलरिज्म के अनुकूल हैं और उनका किसी भी पंथ के साथ कहीं कोई टकराव भी नहीं। भारतीय इतिहास इस तरह के दृष्टांतों से भरा पड़ा है कि भारत ने विभिन्न पंथों के धार्मिक आधार पर सताए गए लोगों के लिए अपने द्वार किस उदारता के साथ खोले। इस मौके पर देश की पहली मस्जिद का संज्ञान भी लिया जाना चाहिए जो केरल में बनी। अगर भारत ने किसी धर्म को अपना राजकीय धर्म नहीं घोषित किया तो यह किसी विवाद या दुविधा के कारण नहीं, लेकिन भारत से अलग होकर बने पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित किया। उसने ऐसा तब किया जब वहां अच्छी-खासी संख्या में धार्मिक अल्पसंख्यक रह रहे थे

बांग्लादेश ने भी खुद को इस्लामिक देश घोषित किया

इन धार्मिक अल्पसंख्यकों ने इस उम्मीद में भारत की ओर पलायन नहीं किया कि नए देश में उनके अधिकार सुरक्षित रहेंगे। वक्त ने उन्हें गलत साबित किया। जब बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग हुआ तो उसने भी खुद को इस्लामिक देश घोषित किया। समय के साथ इन दोनों देशों में बलात मतांतरण और उत्पीड़न के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों की संख्या घटनी शुरू हो गई। इसके विपरीत भारत में मुसलमानों की संख्या बढ़ती गई। आज यह बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई है।

नागरिकता संशोधन विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश के अलावा जिस तीसरे देश अफगानिस्तान का उल्लेख है वहां भी लगातार चले युद्ध और तालिबान के दमनकारी शासन के चलते सिखों सिखों और हिंदुओं का सफाया हुआ। इस सफाए को दुनिया ने भी देखा। वास्तव में इसी कारण नागरिकता विधेयक में अफगानिस्तान को शामिल किया गया है। नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोधी यह तर्क दे रहे हैं कि इन तीनों देशों के साथ-साथ म्यांमार में भी मुसलमानों का उत्पीड़न हो रहा है। नि:संदेह अनदेखी नहीं की जा सकती।

पाक के बलूचिस्तान में लोगों का उत्पीड़न

पाकिस्तान में अहमदिया और शिया सताए जा रहे हैं। यह तब है जब इस्लाम वहां का राजकीय धर्म है। चूंकि ये समुदाय पाकिस्तान के निर्माण में सहायक बने और उसकी आंतरिक संरचना का अंग हैं इसलिए उनकी देख-रेख करना पाकिस्तान सरकार की जिम्मेदारी बनती है। इस जिम्मेदारी के लिए उसे जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके में लोगों का उत्पीड़न इसलिए हो रहा है, क्योंकि वहां के लोग आत्मनिर्णय का अधिकार मांग रहे हैं। वहां की समस्या को धार्मिक आधार पर किए जाने वाले उत्पीड़न की संज्ञा नहीं दी जा सकती।

म्यांमार के अराकान इलाके में र्रोंहग्या उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं। उनके उत्पीड़न पर आंग सान सू को अंतरराष्ट्रीय अदालत के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ रही है। अराकान में रह रर्हे ंहदू भी र्रोंहग्या आतंकियों के हाथों प्रताड़ित हो रहे हैं। बहुत दिन नहीं हुए जब वहां एक कब्र में दफनाए गए करीब सौर् ंहदुओं के शव मिले थे।

म्यांमार सरकार ने रोहिंग्याओं से देश लौटने को भी कहा

चूंकि नागरिकता संशोधन विधेयक में श्रीलंका के तमिल हिंदुओं और मुसलमानों को भी शामिल नहीं किया गया है इसलिए सरकार की इस दलील में दम है कि इस विधेयक का मकसद विभाजन के पहले और बाद के हालात से निपटना है। अफगानिस्तान इस विधेयक का हिस्सा है तो वहां के युद्ध जैसे असामान्य हालात के कारण। अफगानिस्तान के विपरीत म्यांमार एक लोकतांत्रिक देश है और वहां एक विधिवत सरकार है। यह सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर अपने लोगों और साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के प्रति जवाबदेह है। म्यांमार सरकार ने रोहिंग्याओं से देश लौटने को कहा भी है। इसकी संभावना है कि उनकी वापसी को सुनिश्चित किया जाएगा।

एक आदर्श विश्व में हमें किसी सीमा की जरूरत नहीं, लेकिन आज के खतरनाक माहौल में देशों को अपनी सीमाओं को न सिर्फ सुरक्षा के दृष्टिकोण से, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी गंभीरता से लेना पड़ रहा है। भारत जैसे विकासशील देश में विशाल आबादी की अपनी चुनौतियां हैं। ऐसे में हमें यह सोचना पड़ेगा कि आखिर हम और कितने शरणार्थियों को स्वीकार कर सकते हैं।

राजनीति को चमकाने के लिए घुसपैठ को बढ़ावा

आज तो यूरोप के समृद्ध देश भी इसके प्रति कड़ा रुख अपनाए हुए हैं। ब्रिटेन में इस पर बहस छिड़ी है कि खुली सीमा उनके हित में नहीं है। ब्रेक्जिट इसी की देन है। हमारी सीमा बांग्लादेश से लगती है। दशकों से वहां से लोग बेहतर जीवन की उम्मीद में भारत में प्रवेश कर रहे हैं। वे उस क्षेत्र की आबादी के साथ घुलमिल गए हैं। इससे वहां की आबादी का संतुलन बिगड़ गया है। संसाधनों पर उनका कब्जा हो गया है। इसके अलावा वे असम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से में कानून व्यवस्था के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं। दोष बेहतर जीवन की चाह रखने वाले गरीबों का नहीं, बल्कि स्वार्थी नेताओं का है जो वोट बैंक की राजनीतिक चमकाने के लिए घुसपैठ को बढ़ावा देते रहे।

नागरिकता विधेयक का विरोध भावनात्मक मसला 

बेलगाम घुसपैठ से देश की सुरक्षा के लिए पैदा हो रहे खतरे की भी अनदेखी नहीं की जा सकती। तब तो बिल्कुल भी नहीं जब खुफिया एजेंसियां यह कह रही हों कि हूजी सरीखे आतंकी संगठन घुसपैठ को बढ़ावा देने के साथ ही घुसपैठियों के बीच पैठ भी बना रहे हैं। इन संगठनों का मकसद भारत में हिंसा और आतंक फैलाना ही है। इसका कोई मतलब नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल की चिंता करने में संकोच बरता जाए। चूंकि विपक्षी दलों की ओर से नागरिकता विधेयक का विरोध किया जा रहा है इसलिए वह एक भावनात्मक मसला भी बन रहा है।

हैरत नहीं कि भारतीय मुस्लिम इस विधेयक को भेदभाव करना वाला समझें, जबकि सच यह है कि इससे उनका कोई लेना-देना नहीं। चूंकि धारणा का महत्व होता है इसलिए सत्ताधारी दल और सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह लोगों तक पहुंच बढ़ाए और यह स्पष्ट करे कि इस विधेयक को ऐसा स्वरूप क्यों दिया गया? इस विधेयक पर संसद की मुहर लगने के आसार हैं, लेकिन लोकतंत्र में जनता को उन मुद्दों से परिचित होना चाहिए जिनके बारे में उसका यह मानना हो कि वे उस पर असर डाल सकते हैं। पारदर्शिता और खुला संवाद भरोसे को बढ़ाने में सहायक ही बनता है।

News Category: 
Place: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.