RGA न्यूज़ पूर्वी चंपारण
Nirbhaya case बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के पहाड़पुर निवासी सर्वेश तिवारी ने निर्भया के अभिभावकों के संघर्ष में हर कदम पर दिया साथ। पीडि़ता को दिया था निर्भया नाम।...
पूर्वी चंपारण:- सात साल, तीन महीने और चार दिन के बाद वह सुबह आ ही गई, जब निर्भया को न्याया मिला। शुक्रवार की सुबह साढ़े पांच बजे उसके सभी दोषियों को एक साथ तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया। 16 दिसंबर 2012 की रात दिल्ली में निर्भया के साथ दरिंदगी करने वाले अपनी मौत से 2 घंटे पहले तक कानून के सामने गिड़गिड़ाते रहे, लेकिन अंत में जीत निर्भया की ही हुई। सात साल लंबे इंतजार के बाद दोषियों को फांसी के तख्ते पर झूलने की खबर से पूरे देश में जश्न का माहौल है। बिहार के लिए यह जश्न और खास हो गया है, क्योंकि निर्भया को न्याय दिलाने के लिए उनके अभिभावकों के साथ जो लोग पिछले सात साल से संघर्ष कर रहे थे उनमें एक प्रमुख नाम बिहार के समाजसेवी सर्वेश तिवारी का भी है। खास बात कि सर्वेश तिवारी ने ही पीडि़ता को 'निर्भया' नाम दिया था।
हर कदम पर रहे साथ
न्याय के लिए लंबी लड़ाई लडऩे वाले निर्भया के अभिभावकों का हर कदम पर हर तरह से साथ देने वाले सर्वेश तिवारी पूर्वी चंपारण जिले के पहाड़पुर प्रखंड के गांव विशुनपुर मटियरिया के रहने वाले हैं। मालूम हो कि, निर्भया को न्याय दिलाने के लिए उनके माता-पिता ने निर्भया ज्योति ट्रस्ट की स्थापना की। ट्रस्ट की अध्यक्ष निर्भया की मां आशा देवी व उपाध्यक्ष पिता बद्रीनाथ सिंह ने ट्रस्ट को आगे ले जाने का जिम्मा संघर्ष के शुरुआती दिनों से उनके साथ रहे सर्वेश तिवारी को सौंपा।
आवाज उठाते रहे
बतौर जेनरल सेक्रेटरी, निर्भया ज्योति ट्रस्ट के जरिए वह लगातार न्याय के लिए आवाज उठाते रहे। यही नहीं, सर्वेश तिवारी ने ही पीडि़ता को 'निर्भया' नाम दिया था। दोषियों को फांसी मिलने के बाद निर्भया की मां आशा देवी ने संघर्ष के दिनों में उनका साथ निभाने के लिए सर्वेश तिवारी का धन्यवाद भी किया। आशा देवी ने कहा कि सात साल पहले मैंने अपनी बेटी को खो दिया। उसे न्याय दिलाने की लड़ाई में कुछ ऐसे लोग हमारे साथ आए जो अब परिवार का हिस्सा बन गए हैं। सर्वेश मुझे दीदी कहते हैं। वह मेरे लिए भी छोटे भाई की तरह हैं और इस संघर्ष में लगातार समय, संसाधन और सभी जरूरी सहयोग देते रहे। सर्वेश तिवारी ने कहा कि बहादुर बेटी निर्भया के लिए पूरा देश एकजुट हुआ, मैं भी उन्हीं में से एक था। लेकिन समय के साथ-साथ संघर्ष की लड़ाई लंबी होती गई और लगातार संपर्क में रहते हुए हमारा भावनात्मक जुड़ाव हो गया।