अच्छे दिनों के इंतजार में गांव के लोग अंधेरे में गुजार रहे रातें

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(कुप्पी की रोशनी में पढता बच्चा) 

यह ऐसे गांव की तस्वीर है, जिसके पास से एचटी लाइन तो गुजर रही है लेकिन इस गांव को बिजली नहीं मिली।

RGA न्यूज ब्यूरो चीफ बदायूं

बदायूं: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से देश के हर गांव में बिजली पहुंचने का दावा किया, तब ग्रामीणों के मन में एक ही बात आई कि उनके गांव में तो बिजली अभी तक नहीं आई फिर ऐसी बात क्यों। हम बात कर रहे हैं विकास क्षेत्र सालारपुर के गांव बाबट का मजरा हरिनगला की। जो कहने को तो मजरा है, लेकिन यहां 107 परिवारों में तकरीबन डेढ़ हजार लोग निवास करते हैं। सटकर बिजली की लाइन जाने पर इस गांव के लोग गांव में भी बिजली आने के इंतजार में हैं। रात होते ही देश का उज्जवल भविष्य कहे जाने वाले बच्चे ढिबरी लेकर पढ़ने बैठ जाते हैं। हां, चौराहों पर जरूर सपा सरकार में सोलर लाइटें लगवाई गई हैं। जो अभी तक लगी हैं।

 लगभग दस किलोमीटर दूर स्थित गांव हरिनगला में प्रवेश करते समय बिजली के खंभों को देखकर नहीं लगता कि यहां बिजली नहीं होगी। भीतर जाने पर झोपड़ियों पर नजर पड़ते ही सरकारी योजनाओं की हकीकत की पोल खुल जाती है। चुनाव के समय तो जनप्रतिनिधियों के वादों से लगता है कि इस गांव को भी नई ऊर्जा मिलेगी। अव्यवस्थाएं सुधर जाएंगी, लेकिन चुनाव के बाद ऐसा नहीं होता। शायद की कोई सरकारी योजना हो जिससे यहां के ग्रामीण पूरी तरह से अच्छादित हुए हो। सफाई कर्मचारी न होने की वजह से गांव में जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे हैं। सरकारी हैंडपंप खराब हैं। खेती व पशुपालन करने वाले किसानों के इस गांव के बच्चों को लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर के गांव के सरकारी स्कूल में जाना पड़ता है। गांव के अनुसूचित जाति के 40 व पिछड़ा वर्ग के 67 परिवार योजनाओं से दूर हैं।

उज्जवला योजना, फिर भी चूल्हे पर खाना

माताओं की समस्या को देखते हुए प्रधानमंत्री ने उज्जवला योजना की शुरूआत की है कि घर पर खाना बनाते समय उन्हें आंखें खराब न हों और सेहत सही रहे, लेकिन मजरा हरिनगला में बहुत से घर हैं जहां आज भी माताएं चूल्हा फूंकते नजर आती हैं।

छत से टपकता पानी, मजबूरी को कोसते ग्रामीण

गरीब परिवार को पक्की छत देने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना का संचालन किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत प्रशासन की ओर से चयनित परिवारों को मकान दिया जाता है। इस गांव में आज भी कई परिवार झोपड़ी में रहते हैं। छत से पानी टपकता है तो मजबूरी को ही कोसते रहते हैं। कई बार आवेदन किए जाने के बाद भी सुविधा का लाभ नहीं मिल पाया है। खराब हो रहे हैं इलेक्ट्रानिक उपकरण

गांव में किसी की शादी हो तो उपहार के तौर पर इलेक्ट्रानिक उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज, वॉ¨शग मशीन आदि मिलते हैं, लेकिन बिजली के इंतजार में सभी उपकरण घर पर ही जंग जा जाते हैं या सस्ते दामों पर बेच दिए जाते हैं।

ग्रामीणों से बात - गांव से सटकर बिजली की लाइन जाने की वजह से कई वर्षों से आस बंधी है कि लाइट आ सकती है, लेकिन हर सरकार में निराशा ही हाथ लगती है।

- उमेश चुनाव के समय तो वादे किए जाते है, लेकिन बाद में कोई झांकने तक नहीं आता। गांव की स्थिति खराब है। सरकार को इस ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।

- झंडू ¨सह गांव के कई घरों में गैस का कनेक्शन नहीं दिया गया है। जिसकी वजह से चूल्हे पर ही खाना बनाया जाता है। महिलाओं के आंखों की रोशनी हो रही है और सेहत भी।

- देव ¨सह छात्र-छात्रा से बात -

दिन में तो घर के बाहर बैठक पढ़ाई कर लेते हैं, लेकिन रात के समय दिक्कत होती है। ढिबरी की रोशनी में आंखें खराब होती जा रही हैं। पता नहीं कब लाइट आएगी।

- विमलेश पढ़ाई करते समय बहुत समस्या होती है। घर का काम निपटने के बाद ही ढिबरी मिलती है। तब पढ़ने बैठते हैं। ज्यादा समय होने की वजह से नींद आती और पढ़ाई नहीं हो पाती।

- अनुज पढ़ने के लिए दूर गांव के कॉलेज में जाते हैं। अब तक तो ढिबरी की रोशनी में थोड़ी-थोड़ी देर पढ़ाई कर ली, लेकिन इस बार इंटर के बोर्ड हैं तो आंखें की समस्या का डर है।

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