मध्यप्रदेश से प्रशांत कुमार सोनी
मानव और विज्ञान विवश
कराह रही मानवता हैं।,
कुदरत से खेलने वालों का नतीजा यही निकलता हैं।,
घर के दरवाजे बंद करो,दिल के दरवाजे खोलो अब,
पैसा हुआ बेबस बच्चों के साथ कुछ खेलों अब।स्वार्थ औऱ अहंकार को सबक सीखने आया हैं।निरीह जीवों को कोरोना अब न्याय दिलाने आया हैं।आधुनिकता के अंधे युग मैं संस्कृति का जो हाल हुआ है।अनैतिक खानपान से देखो जीवन भी बेहाल हुआ।युगों से सहती कुदरत ने आज नतीजा दिखलाया।बेबस करके आज दिलो को कोरोना ने दहलाया हैं।सन्नाटे पसरे सड़को पर कुदरत का हैं।वार बड़ा।छिपे सब घर के अंदर जैसे कोई लिए तलवार खड़ा।जुल्म करते इंसानो पर छाई ऐसी महामारी हैं।शक्ति प्रदर्शन करने वालों की ये कैसी लाचारी हैं।पछियों को कैद करने वालों को खुद कैद देखकर राहत मिली होगी उन्हें खुद को स्वतंत्र देखकर।मुद्दतों से जो चीत्कार रही मानवता हैं।
अत्याचारों का कहर ऐसे ही बरसता हैं।अमीर गरीब उच नीच का भेद मिटाने आया हैं।इंसान को उसकी गलतियों की सजा दिलाने आया हैं।आज जिसके कारण सबको पड़ रहा है रोना।देखो कैसे कहर बरसा रहा है कोरोना।।