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RGA न्यूज़ जम्मू
हिन्दू धर्म में नागों को प्राचीन काल से पूजनीय माना गया है। सभी सांप भी हमारे समाज का अभिन्न अंग है। इसीलिए इंसानों को नागों की रक्षा करनी चाहिए और इन्हें अकारण सताना नहीं चाहिए।...
जम्मू : श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाने वाली नागपंचमी शनिवार को पूरी धार्मिक आस्था एवं श्रद्धा के साथ माई गई। लॉकडाउन के चलते लोग मंदिरों में जाकर विशेष पूजा अर्चना या लंगर आदि का आयोजन तो नहीं कर सके लेकिन घरों में नागपंचमी को लेकर विशेष उत्साह बना रहा। लोगों ने नाग देवता की पूजा अर्चना व्रत रखकर नागपंचमी मनाई। माना जाता है कि इस दिन नाग देवता की पूजा करने से भय तथा कालसर्प योग शमन होता है।
हालांकि जम्मू में अधिकतर लोग भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की ऋषि पंचमी के दिन नागपंचमी का पर्व मनाते हैं। जो लोग भाद्रपद मास की नांगपंचमी मनाते हैं। उन्होंने पारंपरिक पूजा अनुष्ठान तो नहीं किए। फिर भी घरों में नागपंचमी का भाव देखने को मिला। यहां संभव हो सकता था लोगों ने नाग देवता की बाम्बी, वर्मी, में श्री फल, दूध, मीठा रोट, फूल, फूल माला चढ़ाई। बहुत से लोगों ने सर्प के प्रकोप से बचने के लिए नाग पंचमी की पूजा की। नाग देवता या शिव जी मंदिर में नागों का जोड़ा चढ़ाया। लोगों ने परिवार के कल्याण के लिए नाग पूजा की।
इस पर्व को जीव जंतुओं को जीव जंतुओं को सम्मान देने के उद्देश्य से भी मनाया जाता है। माना जाता है कि प्रकृति के संतुलन के लिए सभी उत्तरदायी हैं। किसी एक की भी कमी से यह संतुलन बिगड़ जाता हैं। हिन्दू धर्म में नागों को प्राचीन काल से पूजनीय माना गया है। सभी सांप भी हमारे समाज का अभिन्न अंग है। इसीलिए इंसानों को नागों की रक्षा करनी चाहिए और इन्हें अकारण सताना नहीं चाहिए।
जम्मू में नागों का विशेष स्थान, राज्य में नागों के कई स्थान: हमारे इस डुग्गर प्रदेश को नागों की भूमि कहा जाता है। नागलोक के राजा वासुकि जी भगवान शिव के परम भक्त है। भगवान शिव ने वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था और भगवान शिव के साथ हमेशा के लिए हो गये। जम्मू की लोक परम्पराओं में मान्यता है कि वासुकि नाग की वंश परम्परा में से जम्मू कश्मीर के कई स्थानों में नागों ने अपना निवास स्थान बनाया। इस विषय में श्रीकैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि प्रदेश डुग्गर के प्राचीन इतिहास में नागराज वासुकि की वंश परम्परा में काई, भैड़, कैलख, सुरगल, तालान, मानसर, रचिल नामक 22 पुत्र, चौरासी पुत्री पौत्रों का वर्णन मिलता है। इन सब में बड़े पुत्र का नाम है ’काई्र’ देव और छोटे हैं ‘भैड़्र’ देव । यह सब इच्छाधारी नाग देवता हैं। वासुकिवंशी नागों के जम्मू में निवास करने संबंधी एक दंत कथा प्रसिद्ध है।
वासुकि नाग जी का मंदिर भद्रवा गांठा जम्मू कश्मीर में है। वासुकि नाग जी एक बार चर्म रोग से पीड़ित हुए और उन्होंने अपने वैद्य को बुलाया और उन्हें बताया मुझे चर्म रोग हो गया है। मेरा उपचार करें। वैद्य ने वासुकि नाग जी को कहा जो आपके कुल से कैलाश पर्वत से नदी रूप में जल लेकर आयेगा उस नदी में आप स्नान करेगें फिर आप ठीक होंगे। वासुकि नाग जी ने अपने परिवार की सभा बुलाई और कहा मुझे चर्म रोग हो गया है जो कैलाश पर्वत से नदी रूप में जल लेकर आयेगा उस नदी में मै स्नान करूंगा फिर मेरा स्वास्थ्य ठीक होगा और जो कैलाश पर्वत से पहले जल लेकर आयेगा उसे जम्मू का राज्य भेंट स्वरूप दिया जायेगा। यह बात सुनकर सभी कैलाश पर्वत की ओर चल पड़े वासुकि नाग जी को अपने छोटे पुत्र भैड़ देव जी से बहुत प्यार था। वासुकि नाग जी ने अपनी मायाविशक्ति से भैड़ देव जी को तवी नदी पहले बहा कर दे दी। जब काई देव को पता चलता है तो उन्होंने अपने पिता से कहा पिता जी आपने पक्षपात किया है और हम आप से युद्ध करेगें।
वासुकि देव जी ने कहा आपको युद्ध करने की कोई ज़रूरत नहीं है आप जिस स्थान पर अपना पानी बहाओगे वो आपका राज्य होगा। काई देव ने चंद्रभागा अखनूर में बावा कैलख देव ठठर जम्मू में बावा भैड़ देवजी का मंदिर जम्मू से लगभग 15 किलोमीटर दूर नगरोटा और नगरोटा से 5 किलोमीटर एक तरफ कट्टर बटाल नाम के गांव में है। उसके आगे 2 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है। और जम्मू में कुछ बावली, किसी ने तालाब, नदी रूप में जहां जहां अपना जल बहाया वह उनका निवास स्थान हो गया। जब वासुकि के परिवार के साथ-साथ राज्य बटां तो वासुकि को बहुत बड़ा संताप हुआ।