एमपी में भाजपा के लिए असंतुष्टों को मनाना और कांग्रेस के लिए विधायकों को रोक पाना चुनौती

Praveen Upadhayay's picture

RGA न्यूज़ मध्यप्रदेश भोपाल प्रशांत सोनी

भोपाल मध्य प्रदेश:- मध्य प्रदेश में 16 सालों में 30 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए, लेकिन 15 वीं विधानसभा का यह साल ऐसा होगा, जब प्रदेश में पहली बार एक साथ 27 सीटों पर उपचुनाव होंगे। हो सकता है चुनावी सीटों का आंकड़ा और बढ़ जाए। कुछ महीनों बाद होने वाले उपचुनाव से जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी का भविष्य तय होगा, वहीं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी कद भी। सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों के लिए ये उपचुनाव आसान नहीं है। असंतुष्टों को मनाना भाजपा के लिए, तो अपने विधायकों को रोक पाना कांग्रेस के लिए चुनौती है।

कमल नाथ उपचुनाव में सत्ता वापसी का रास्ता देख रहे हैं

कांग्रेस उन पूर्व विधायकों को सबक सिखाना चाहती है, तो पूर्व सीएम कमल नाथ उपचुनाव में सत्ता वापसी का रास्ता देख रहे हैं, उधर दिग्विजय सिंह भी खुद को नाथ सरकार के लिए संकट बनने के आरोप से मुक्त करना चाहते हैं, लेकिन आंकड़े कुछ और बयां करते हैं।

कांग्रेस के लिए मुश्किल है उपचुनावों में भाजपा को हराना

30 सीटों के उपचुनावों में 19 पर भाजपा जीती थी। मप्र में शिवराज सिंह चौहान के सत्ता संभालने के बाद से अब तक हुए उपचुनावों का विश्लेषण करें तो कांग्रेस के लिए मुश्किलों का अंदाजा सहज लगता है। 15वीं विधानसभा में उपचुनाव झाबुआ में हुआ। जीएस डामोर ने सांसद बनने के बाद इस्तीफा दिया, तो ये सीट कांग्रेस के खाते में चली गई।

उपचुनावों में सत्तारूढ़ दल को मिलती रही सफलता

उपचुनावों के परिणाम बताते हैं कि सफलता सत्तारूढ़ दलों के साथ रही है, तो सहानुभूति वाली सीटों पर राजनीतिक समीकरण असर नहीं दिखा पाते। आगामी उपचुनाव में कांग्रेस को चुनौती है, तो भाजपा को सरकार बचाने के लिए ए़़ेडी-चोटी का जोर लगाना ही होगा।

News Category: 
Place: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.