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Bihar Assembly Election बिहार के विपक्षी महागठबंधन में सीटों के बंटवारे का मामला अटका हुआ है। चुनाव के नजदीक आते जाने के साथ घटक दलों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। ...
पटना:-राजद और कांग्रेस में सीट बंटवारे की सहमति लगभग बन चुकी है। वाम दलों से दोस्ती के लिए भी राजद पूरी तरह तैयार है। अड़चन सिर्फ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) को लेकर आ रही है। दोनों की बड़ी-बड़ी अपेक्षाओं से राजद-कांग्रेस असहज हैं। अलगाव का हाल यह है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद दोनों से मिलना-जुलना भी जरूरी नहीं समझ रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी महागठबंधन में कांग्रेस को छोड़कर अन्य घटक दलों के नेताओं से दूरी बना रखी है। जाहिर है, सीट बंटवारे का रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है। चुनाव के दिन नजदीक आते जा रहे हैं। साथी दलों के लिए आज भी सबकुछ वहीं पर स्थिर है, जहां से शुरू हुआ था। पार्टी प्रमुखों की बेचैनी बढऩा लाजिमी है।
कुशवाहा व सहनी से साफ दिख रही राजद की दूरी
लोक सभा चुनाव के पहले प्रत्येक 15-20 दिनों पर रांची जा-जाकर लालू प्रसाद से मिलने वाले रालोसपा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और वीआइपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी की राजद से दूरी अब साफ दिख रही है। कुशवाहा ने पिछली बार एक साल पहले सात सितंबर को रांची जाकर लालू से मुलाकात की थी। उसके बाद दोनों की दोबारा मुलाकात नहीं हुई। मुकेश सहनी का भी लालू से मिले करीब साल भर बीतने जा रहा है।
शरद ने की थी एकता की पहल, नहीं बनी बात
राज्यसभा चुनाव से पहले वरिष्ठ समाजवादी नेता शरद यादव ने अपने हित के लिए एकता की एक पहल जरूर की थी। पटना में शरद यादव ने जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और मुकेश सहनी से गहन मंत्रणा के बाद 14 फरवरी को रांची में लालू से मुलाकात की थी, लेकिन उसका मायने-मकसद कुछ और था। शरद यादव अपने लिए लालू प्रसाद की सहमति से राज्यसभा जाने की संभावना तलाश रहे थे। बात नहीं बनी और घटक दलों का मकसद भी भटक गया।
वाम दलों की बढ़ी पूछ, अधर में पुराने साथी
महागठबंधन में वामदलों की बढ़ती पूछ के बीच पुराने साथी खुद को अधर में महसूस कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में राजद-कांग्रेस ने अन्य घटक दलों को उदार दिल से सीटें बांटकर आजमा लिया है। चुनाव के पहले तो सारे दल बड़े-बड़े दावे कर रहे थे। अपनी उपयोगिता बता रहे थे। वक्त आया तो सबका समीकरण फेल कर गया। हालांकि, जीत तो राजद को भी नसीब नहीं हुई, किंतु घटक दलों को सीटें देने का फायदा भी नहीं दिखा।
सबाें की बड़ी मांंगे, स्वीकारने को तैयार नहीं लालू
इस बार भी सबकी बड़ी-बड़ी मांगें थीं, जिसे लालू स्वीकार करने को बिल्कुल तैयार नहीं हैं। जीतन राम मांझी ने समय रहते अपना रास्ता अलग कर लिया। इधर, राजद-कांग्रेस से भरोसा टूटने के बाद कुशवाहा ने अपना दर्द भी साझा किया है। हैरान-परेशान कुशवाहा अब गठबंधन में खुद के हिस्से में विष आते महसूस कर रहे हैं। सब्र भी खो रहे हैं। सबसे बड़े दल का वास्ता देकर लालू से महागठबंधन बचाने की गुहार लगाई है। मुकेश सहनी की भी चुप्पी बता रही है कि महागठबंधन में उनके लिए जगह बना पाना बहुत मुश्किल है।