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RGA न्यूज़ अलीगढ़
यूनिवर्सिटी जमीन के उस नक्शे की तलाश में जुटी है जहां कैप्सूल रखा गया था। कैप्सूल को जमीन में रखने की उस समय की तस्वीर इंतजामिया के पास है।...
अलीगढ़:- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) संस्थापक सर सैयद अहमद खां ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (एमएओ) की स्थापना के समय भी टाइम कैप्सूल जमीन में दफनया था। बॉक्सनुमा कैप्सूल को स्ट्रेची हॉल के पास जमीन में रखा गया। यूनिवर्सिटी जमीन के उस नक्शे की तलाश में जुटी है, जहां कैप्सूल रखा गया था। कैप्सूल को जमीन में रखने की उस समय की तस्वीर इंतजामिया के पास है। कैप्सूल में मदरसा तुल उलूम से लेकर एमएओ कॉलेज की स्थापना तक के संघर्ष के दस्तावेज व अन्य सामान को रखा था। कॉलेज की स्थापना के गवाह बनारस के नरेश शंभू नारायण भी बने थे। वे बनारस से टेंट लाए थे।
दिल्ली में जन्मे सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में नौकरी की थी। पर्यावरण की दृष्टि से अलीगढ़ को बेहतर मानते हुए सर सैयद ने 24 मई 1875 को मदरसा तुल उलूम के रूप में यूनिवॢसटी की नींव रखी थी। सात छात्रों से शुरू हुआ मदरसा आज एएमयू के रूप में ज्ञान की रोशनी फैला रहा है। इसमें 35 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं हैं। ।
कांच की बोतल का इस्तेमाल
एएमयू इतिहास के जानकार डॉ. राहत अबरार ने बताया कि आठ जनवरी 1877 को मोहम्मद एंग्लो कॉलेज की स्थापना के समय बड़ा समारोह हुआ था। उद्घाटन उस समय के वायसराय लार्ड लिटिन ने किया। बनारस के नरेश शंभू नारायण भी शामिल हुए। सौ साल पहले भी सर सैयद ने वायसराय व नरेश की मौजूदगी में टाइम कैप्सूल जमीन में रखा था। इसका जिक्र अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट के 12 जनवरी 1877 को प्रकाशित अंक में मिलता है। कैप्सूल में सोने, चांदी व तांबे के सिक्कों के साथ मदरसा व कॉलेज की स्थापना के लिए किए संघर्ष आदि की दास्तां शामिल हैं। कैप्सूल में सामान को रखने के लिए कांच की बोतलों का इस्तेमाल किया गया था।
आज होगी कमेटी की बैठक
17 दिसंबर 2020 को एएमयू की स्थापना के सौ साल पूरे होने जा रहो हैं। शताब्दी समारोह की खुशी में इंतजामिया कैंपस में टाइम कैप्सूल भी रखेगी। इसके लिए गठित कमेटी की सोमवार को कुलपति प्रो. तारिक मंसूर की अध्यक्षता में बैठक होगी। जिसमें कैप्सूल में रखे जाने वाले दस्तावेज आदि पर मंथन होगा।
जज बनकर आए थे सर सैयद
मुसलमानों को शिक्षित बनाने की खातिर पुरानी दिल्ली के सराय बेहराम बेग में पैदा हुए सर सैयद का अलीगढ़ में आगमन 1864 में हुआ था। ब्रिटिशकाल में यहां वे न्यायालय में जज बनकर आए थे। 1869 तक यहां नौकरी की। इसके बाद बनारस ट्रांसफर हो गया। अलीगढ़ में रहते हुए ही उन्होंने मुसलमानों की हालत को देखते हुए शिक्षण संस्था खोलने का मन बनाया था। सर सैयद जानते थे कि अंग्रेजों से मुकाबले के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। मुसलमानों में इसका अभाव था। इसी सपने को साकार करने के लिए उन्होंने 1869 से 1870 तक इंग्लैंड का दौरा कर कैंब्रिज व ऑक्सफोर्ड यूूनिवॢसटी के बारे में जाना। वहां से लौटकर अलीगढ़ में 24 मई 1875 को मदरसा तुल उलूम की नींव रखी।