![Praveen Upadhayay's picture Praveen Upadhayay's picture](https://bareilly.rganews.com/sites/bareilly.rganews.com/files/styles/thumbnail/public/pictures/picture-4-1546617863.jpg?itok=SmNXTJXo)
![](https://bareilly.rganews.com/sites/bareilly.rganews.com/files/news/08_09_2020-pitrupaksha_20721982_10441469.jpg)
RGA:- न्यूज़
Pitru Paksha पितृपक्ष में शुभ कार्य पर कोई प्रतिबंध नहीं है। तर्पण व पिंडदान से पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं तो यह शुभ के लिए होता है। फिर शुभ कार्य करने में हिचक क्यों? ...
गया-: ढाई सौ किलोमीटर दूर वाराणसी से गयाजी पहुंचने में बेशक पांच-छह घंटे लगते हों, लेकिन उन्नत विचारों का सफर पलक झपकते पूरा होता है। तभी तो स्वस्थ परंपराओं के संवाहक गयाजी के गण्यमान्य सांस्कृतिक चेतना के प्रतिमान वाराणसी के विद्वानों से एकमत हैं। वाराणसी के मूर्धन्य पंडितों की तरह बिहार के विद्वत जन और गयाजी के पंडा समाज का भी मानना है कि पितृपक्ष में किसी शुभ कार्य का निषेध नहीं है। खरीद-बिक्री तो मानव-जीवन का सहज कार्य-व्यवहार है, लिहाजा पितृपक्ष में यह प्रतिबंधित कैसे हो सकता है! अपने वंशजों के घर में सुख-समृद्धि के साधन-संसाधन देख पितर प्रसन्न होते हैं।
विष्णुपद मंदिर में कराई पूजा, बोले- पितर देख सकेंगे समृद्धि
मोक्षनगरी गयाजी में अंत:सलिला फल्गु के तट पर विष्णुपद मंदिर विराजमान है। वहां अपनी नई बाइक की पूजा कराने पहुंचे अंनत कुमार प्रफुल्लित हैं। बताते हैं कि इस मंदिर परिसर में पहुंचकर असीम आनंद मिलता है। यहां पूजा-पाठ का एक उद्देश्य यह भी था कि पितर देख सकें कि हमारे घर में समृद्धि आई है। विष्णुपद मंदिर में पिंड वेदी भी है, जहां कुछ साल पहले अनंत अपने पुरखों को पिंड अर्पित कर चुके हैं।
लोकाचार में भी टूट रहीं पितृपक्ष से जुड़ी भ्रांतियां
दरअसल, सभ्य समाज में जड़ परंपराओं की कतई स्वीकार्यता नहीं होती। हीरो बाइक के डीलर केएल गुप्ता के प्रबंधक राजू का कहना है कि सितंबर के शुरुआती सप्ताह में उनकी एजेंसी से 60 से अधिक बाइक की बिक्री हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि इस साल दो से 17 सितंबर तक पितृपक्ष है। ऐसे में यह प्रमाण है कि पितृपक्ष से जुड़ी भ्रांतियां हमारे लोकाचार में भी टूट रही हैं।
पिंडदान के लिए सर्वोत्तम माना जाता महालय
विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश लाल गुपुत बताते हैं कि जब सूर्य में मीन राशि का प्रवेश होता है और कन्या की संक्रांति होती है, वह काल महालय कहलाता है, जो पिंडदान के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। तर्पण और पिंडदान से पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, तो यह शुभ के लिए होता है। फिर शुभ कार्य करने में हिचक क्यों! पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि को गया में फल्गु के तट और विष्णुपद में पितरों की दीवाली मनाई जाती है। यह भी इस बात का द्योतक है कि हम उनकी खुशी के लिए ही दीपोत्सव मनाते हैं। यह तो शुभ आयोजन हुआ।
पितृपक्ष में केवल गृह प्रवेश और मांगलिक कार्य वर्जित
मंत्रालय वैदिक पाठशाला के आचार्य पंडित रामाचार्य वैदिक बताते हैं कि कृष्णपक्ष पितृ प्रधान पक्ष है और शुक्ल पक्ष देव प्रधान। वैसे में शुभ कार्य के तौर पर खरीदारी आदि करने में कहीं कुछ भी अशुभ नहीं है। सिर्फ गृह प्रवेश और मांगलिक कार्य वर्जित रखा गया है। पितृपक्ष के दौरान अगर सोना-चांदी से लेकर जगह-जमीन कुछ भी खरीदते हैं तो पुरखे नाराज कैसे हो सकते हैं। उन्हें तो इससे खुशी मिलेगी, वे तृप्त ही होंगे। यहां पितृपक्ष में युवा वर्ग से लेकर पुराने लोग भी खरीदारी या शुभ कार्य करते हैं। सिर्फ गृह प्रवेश से लेकर शादी-ब्याह के आयोजन नहीं किए जाते हैं।
पितरों की पूजा शुभ कर्म, शुभ कार्य का निषेध नहीं
दरभंगा स्थित कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में वेद विभाग के अध्यक्ष डॉ. विद्येश्वर झा बताते हैं कि शास्त्र में पितृपक्ष में शुभ कार्य निषेध नहीं है, क्योंकि देवता भी इस पक्ष में पितरों की पूजा करते हैं। इस पक्ष में देवताओं की पूजा की जाती है। पितरों की पूजा भी एक शुभकर्म है। इसमें पहले देवता, फिर ऋषि और तब पितरों की पूजा की जाती है। भ्रांतिवश व्यापारिक व अन्य शुभकर्म से लोग परहेज करते हैं, लेकिन शास्त्र में इसे किसी तरह से निषेध नहीं किया गया है। इसे सीधे तौर पर ऐसा कहें कि पितृपक्ष में देव पूजा होती है तो अन्य कार्य निषेध कैसे हो सकते हैं। पितृपक्ष को भी शुभ पक्ष माना जाना चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान स्वजनों के यहां रहने आते पितर
पटना के ख्यातिलब्ध ज्योतिषाचार्य पीके युग बताते हैं कि मलमास के दौरान भगवान विष्णु निद्रा में होते हैं। इस कारण शास्त्रों में उस दौरान मांगलिक कार्य की मनाही की गई है। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर धरती पर अपने स्वजनों के यहां रहने आते हैं। इस दौरान भले ही मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, मुंडन, यज्ञोपवित आदि की है, लेकिन खरीदारी और दूसरे शुभ कार्य विशेष परिस्थिति के अनुसार कर सकते हैं। इसके लिए शुभ-लाभ की चौघडिय़ां देखी जाती हैं। खरीदारी के लिए अभिजीत मुहूर्त जरूरी होता है, जो पितृपक्ष में भी होता है।