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मार्च 2020 में संयुक्त संचालक (उद्यान) जबलपुर संभाग मनोज मेश्राम ने जांच शुरू की। छह माह की जांच के बाद उन्होंने रिपोर्ट उद्यानिकी संचालनालय को सौंप दी है।...
भोपाल:- मध्य प्रदेश के उद्यानिकी विभाग की यंत्रीकरण योजना में घोटाले के बाद इसी विभाग की एक और योजना में दो करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है। यह नमामि देवी नर्मदे योजना-2016 से संबंधित है। यह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पिछले कार्यकाल की महत्वाकांक्षी योजना रही है। उद्यानिकी विभाग के ही एक अधिकारी ने दिसंबर 2019 में इसमें अनियमितता को लेकर राजभवन को शिकायत की थी। मार्च 2020 में संयुक्त संचालक (उद्यान), जबलपुर संभाग मनोज मेश्राम ने जांच शुरू की। छह माह की जांच के बाद उन्होंने रिपोर्ट उद्यानिकी संचालनालय को सौंप दी है। इसमें सामने आया है कि निजी नर्सरी संचालकों को अधिकारियों ने उन पौधों के लिए भी भुगतान कर दिया है, जिसकी आपूर्ति ही नहीं की गई। केवल कागजों पर आपूर्ति दिखा दी गई। करीब ढाई लाख पौधे नर्सरी से लिए गए ही नहीं। इसके एवज में दो करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया गया।
पौधारोपण के लिए थी योजना
इसके तहत पूरे प्रदेश में जिन क्षेत्रों से नर्मदा नदी गुजरी है, वहां दोनों किनारों पर एक किमी के दायरे में पौधारोपण किया जाना था। इसके लिए 550 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था। इसमें से 41 करोड़ रुपये से पौधों की खरीदी होनी थी। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस योजना के तहत ही सर्वाधिक पौधे लगाने का दावा गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने के लिए किया था।
ऐसे सामने आया घोटाला
भोपाल उद्यानिकी संचालनालय में पदस्थ योजना के प्रभारी राजेंद्र कुमार राजौरिया पर आरोप है कि उन्होंने इस मामले में गलत भुगतान के लिए वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी केपी मेहता पर दबाव डाला। मेहता ने भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट आए बिना भुगतान से मना किया तो उनका तीन बार तबादला किया गया। परेशान मेहता ने इसकी शिकायत राजभवन में कर दी। राजभवन ने उद्यानिकी विभाग को जांच कराने के आदेश दिए।
रिपोर्ट के मुताबिक ये हैं जिम्मेदार
राजेंद्र कुमार राजौरिया - योजना के प्रभारी के नाते क्रय से लेकर भुगतान के सभी आदेश इन्होंने ही जारी किए। आरोपों के मुताबिक पहले केपी मेहता पर नर्सरी संचालकों को गलत भुगतान करने के लिए दबाव बनाया। जब वे नहीं माने तो उन्हें निलंबित करने की धमकी दी। फिर एक बाबू से बिलों का सत्यापन करवाकर, वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी एसबी सिंह को सीधे नियम विरुद्ध तरीके से उपसंचालक, उद्यान बनाकर उसका भुगतान करवा दिया। भौतिक सत्यापन की प्रक्रिया भी नहीं देखी।
रामबाबू राजोदिया - तत्कालीन संयुक्त संचालक, उद्यान के पद पर जबलपुर में तैनात थे। इसी योजना में भुगतान करने के बदले रिश्वत लेते हुए लोकायुक्त पुलिस ने उन्हें पकड़ा भी था। हालांकि उनके साथ राजौरिया भी पकड़े गए थे लेकिन उन्हें आरोपित नहीं बनाया गया। भौतिक सत्यापन से लेकर पूरी प्रक्रिया की देखरेख राजोदिया को करनी थी। आरोप है कि उन्होंने फील्ड से रिपोर्ट आए बिना केवल निजी नर्सरी संचालकों के सत्यापन के आधार पर भुगतान कर दिया।
उद्यानिकी विभाग के संचालक पुष्कर सिंह ने बताया कि एसबी सिंह - बतौर उप संचालक इन्हें ग्रामीण उद्यान अधिकारियों से सत्यापन रिपोर्ट लेनी चाहिए थी लेकिन सिंह ने निजी नर्सरी संचालकों की रिपोर्ट के आधार पर बिलों का भुगतान करने का प्रस्ताव संयुक्त संचालक, उद्यान को भेज दिया। यह जांच छह महीने पहले सौंपी गई थी। इसकी रिपोर्ट बुधवार शाम को मिल गई है। इसका परीक्षण करवाकर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।