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स्कूल फीस की मनमानी को लेकर बरेली में अब निजी स्कूल संचालक और अभिभावक आमने सामने आ गए है। जिसके चलतेपैरेंटस फोरम ने उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में याचिका दायर की है।...
बरेली:- स्कूल फीस की मनमानी को लेकर बरेली में अब निजी स्कूल संचालक और अभिभावक आमने सामने आ गए है। जिसके चलते इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन के खिलाफ पैरेंटस फोरम ने उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में याचिका दायर की है। पैरेंटस फोरम के संयोजक खालिद जिलानी ने एसोसिएशन के अध्यक्ष पारुष अरोडा को मुख्य प्रतिवादी बनाया है। उन्होनें कहा है कि एसोसिएश से जुडे़ स्कूल अप्रैल से बंद चल रहे है। जिनमें आंशिक रुप से ही ऑनलाइन कक्षाओ का संचालन हो रहा है। बावजूद भी इसके अभिभावकों पर पूरी फीस लेने का दवाब बनाया जा रहा है। जबकि अभिभावकों का खर्च ऑनलाइन पढ़ाई के चलते पहले ही बढ़ चुका है।
फोरम की ओर से याचिका की पैरवी के लिए पांच अधिवक्ताओं का पैनल बनाया गया है। इसमें खालिद जीलानी, टीडी भास्कर, यशेंद्र सिंह, दीपक पांडे और हिन्नान उल्ला शामिल हैं। उनका कहना है कि स्कूल अक्सर इंटरनेट न होने के कारण ऑनलाइन शिक्षा बंद रहने के मैसेज भेजते हैं, जो की सेवा की विफलता और सेवा में कमी है। इसलिए बिना सेवा शुक्ल क्यों दिया जाए। शासनादेशों के खिलाफ स्कूलों ने 20 सितंबर तक फीस जमा न होने पर छात्रों का नाम काटने की चेतावनी दी है। उन्होंने याचिका में स्कूलों से सिर्फ मासिक आधार पर ट्यूशन फीस लेने, मार्च 2021 तक फीस जमा करने का विकल्प देने और हर अभिभावक को मानसिक कष्ट की क्षति पूर्ति के लिए पांच-पांच हजार रुपये देने की मांग की गई है। उन्होंने बताया कि सुनवाई के बाद उपभोक्ता आयोग ने अगली तारीख 13 अक्टूबर तय की है।
उपभोक्ता आयोग में स्कूल पर मामला दर्ज
पूर्व मंत्री अताउर्रहमान के भाई बहेड़ी निवासी नसीमउर्रहमान ने अपने बेटे को शहर के एक निजी स्कूल में कक्षा 11 में दाखिला दिलाया था। स्कूल ने 26150 रुपये फीस जमा कराई और छात्र ने 3972 रुपये की किताबें भी खरीद ली। फिर उसे ऑनलाइन ग्रुप में जोड़ लिया गया। आरोप है कि अचानक ही उसे ग्रुप से हटा दिया गया। संपर्क करने पर बताया गया कि विद्यार्थियों की संख्या अधिक होने व अन्य प्रशासनिक कारणों से छात्र का एडमिशन खारिज कर दिया गया है। सत्र के पांच महीने बीतने के कारण उसका किसी अन्य स्कूल में एडमिशन होना मुश्किल हो गया। एडवोकेट खालिद जीलानी ने विपक्षी पक्षकार से जमा की गई फीस, किताबों की कीमत मय ब्याज के वापस लौटाने की मांग की है। इसके साथ ही अवैध तरीके से एडमिशन निरस्त करने के कारण बर्बाद हुए साल की क्षतिपूर्ति के रूप में 10 लाख रुपये, मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति के लिए पांच लाख और वकील की फीस के रूप में 25 हजार रुपये दिलाने की मांग की गई है।