क्योलडिया स्वतंत्रता सेनानियों का गांव के ग्रामीण लोग   नदी पर पुल निर्माण बनबाने  की मांग

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RGA न्यूज़ बरेली रिपोर्टर शाहिद अली

बरेली:- क्योलडिया स्वतंत्रता सेनानियों का गांव के ग्रामीण लोग   नदी पर पुल निर्माण बनबाने  की मांग कर रहे  देश को  आजादी मिले 74  वर्ष बीत चुके हैं लेकिन   भदपुरा ब्लाक के गांव अमीन नगर के रहने वाले लोगों के चेहरे पर उदासी और गम है यहां के लोग गांव के चारों ओर बह रही देवाह नदी से आजादी की गुहार कई वर्षों से लगा रहे हैं लेकिन उन्हें अभी तक देवाह नदी से आजादी नहीं मिल पा रही है जिसका उन्हें बेहद अफसोस है अमीन नगर गांव तक आने जाने का कोई रास्ता नहीं है एक दशक पूर्व गांव तक आने-जाने का एकमात्र रास्ता देवाह नदी अपने साथ बहा ले गई जिसके बाद से ही गांव के लोगों को मुसीबतों के दिन शुरू हो गए हर साल बरसात शुरू होते ही गांव के लोग नदी से चारों ओर से घिर जाते हैं और फिर बरसात के मौसम में नदी हर साल गांव के लोगों की कीमती जमीनों को निगल जाती है यह सिलसिला बरसों से चला रहा है इससे निजात पाने को चार चार स्वतंत्रता सेनानी वाले इस गांव के लोगों ने तमाम जतन किए यहां तक कि उन्होंने इस बार लोकसभा चुनाव का भी बहिष्कार कर दिया लेकिन इसके बावजूद भी सरकारी सिस्टम ने  गांव की ओर झांक कर भी नहीं देखा गांव के स्वतंत्रता सेनानी नत्थू लाल कपूर की पुत्र वधू सरोज कुमारी ने बताया उनका गांव आज तक बदहाली के आंसू बहा रहा है उनके पिता समेत गांव के चार स्वतंत्रता सेनानी ने देश की आजादी दिलाने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया मगर अफसोस स्वतंत्रता सेनानियों के गांव अमीन नगर के लोगों की और अब तक किसी भी अधिकारी जनप्रतिनिधि का ध्यान नहीं गया उनको भी तमाम आवेदनों के बावजूद पेंशन तक नहीं मिल पा रही है गांव के लोग अनदेखी किए जाने से काफी आहत और परेशान हैं गांव के चार  स्वतंत्रतासेनानियों आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई गांव के ही रहने वाले नत्थू लाल कपूर राजेंद्र प्रसाद नत्थू लाल शर्मा गिरधारी लाल ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई और वह कई बार जेल भी गए लेकिन आज उनके गांव को  अधिकारियों ने भुला दिया गया है जब अंग्रेजों ने देश में लोगों पर जुल्म ज्यादती की तो अमीर नगर गांव के रहने वाले चारों अमर स्वतंत्रता सेनानियों ने जेल जाने के साथ ही अंग्रेजों के आगे बिल्कुल नहीं झुके आजादी की जंग में भी कूदे पड़े और देश को आजाद करा कर ही दम लिया भदपुरा ब्लॉक परिसर में अमीन नगर के सभी चारों स्वतंत्रता सेनानियों के नाम अशोक चिन्ह पर दर्ज हैं जिस पर स्वतंत्रता दिवस को ब्लाक प्रमुख पुरुषोत्तम गंगवार समेत अनेक लोगों ने पुष्प अर्पित कर  स्वतंत्रता सेनानियों को हर साल श्रद्धांजलि देते है   गांव के लोगों की मुसीबतें कम नहीं हुई है लगभग एक दशक पहले क्षेत्रीय सांसद और केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार द्वारा गांव की सुरक्षा को बनाए गया तटबंध देवाह नदी में आई भयंकर बाढ़ में समा गया तो गांव तक आने-जाने का रास्ता जब बंद हुआ  तो गांव भी नदी के चारों ओर से घिर गया  और टापू बन गया जिसके बाद से आज तक लगभग पांच हजार की आबादी वाला अमीनगर और गुलडाई  गांव  देवहा नदी के कहर से जूझ रहा है बरसात होते ही जब नदी में पानी का जलस्तर बढ़ता है तो गांव के लोग मुसीबतों से घिर जाते हैं लेकिन उस दौरान गांव के लोग जब जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को पुकारते हैं तो दूर से ही अफसर गांव को  मुयायना  कर चले जाते हैं जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की अनदेखी से  इस बार लोकसभा चुनाव में पूरा गांव एकजुट हो गया और चुनाव का बहिष्कार कर दिया लेकिन उसका नतीजा कुछ नहीं गांव के लोग अभी भी पीलीभीत के गाजीपुर होते हुए तहसील और जिला मुख्यालय आते हैं लेकिन जब पहाड़ी और मैदानी इलाके में बारिश होती है तो नदी का जलस्तर बढ़ने से गांव टापू बन कर रह जाता है और गांव वाले अपने घरों में कैद होकर देवाह नदी की लहरों की आवाज सुनकर डर जाते हैं देवाह नदी गांव के लोगों की हजारों बीघा जमीन को निगल कर सैकड़ों लोगों को भूमिहीन और गरीब मजदूर बना चुकी है ग्रामीण आज भी गांव तक आने जाने को एक पुल की मांग कर रहे है जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से पुल की गुहारलगाए हैं लेकिन अभी तक ग्रामीणों की यह मांग पूरी नहीं हो सकी  गांव वालों ने नदी पार करने के लिए लकड़ी का पुल बनाया लेकिन वह  बरसात के मौसम में वह  गया  प्रशासन  ने गांव के लोगों को एक नाव दी लेकिन आज तक गांव के चार लोगों को उन का  तीन महीने का मेहनताना तक नहीं दिया कुछ साल पहले गांव के लोगों ने चंदा कर  एक नाव खरीदकर नदी पार करना शुरू कर दिया लेकिन नाव जब जर्जर हुई तो आज तक दोबारा गांव वाले नाव के लिए चंदा नहीं कर पाए कई साल से गांव के लोगों ने नदी पर लकड़ी की पटरी का पुल भी बनाया लेकिन बरसात में पटरी भी वह गई अब जब नदी का जलस्तर कम होता है तो गांव के लोग पीलीभीत जिले के गाजीपुर के रास्ते नदी में घुस कर निकलते हैं

 

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