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Angarki Sankashti Chaturthi 2021: आज पूजा के समय जरूर सुनें अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा, मनोकामनाएं होंगी पूरी
Angarki Sankashti Chaturthi 2021 हिन्दी पंचांग के अनुसार आज फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि और मंगलवार दिन है इसलिए आज अंगारकी संकष्टी चतुर्थी है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको बता रहे हैं अंगारकी संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा के बारे में।
Angarki Sankashti Chaturthi 2021: हिन्दी पंचांग के अनुसार आज फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि और मंगलवार दिन है, इसलिए आज अंगारकी संकष्टी चतुर्थी है। मंगलवार के दिन होने के कारण यह अंगारकी संकष्टी चतुर्थी है। आज व्रत रखते हुए विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की विधि विधान से पूजा की जाती है। पूजा के समय अंगारकी संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ जरूर किया जाता है, तभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको बता रहे हैं अंगारकी संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा के बारे में।
अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, पृथ्वी देवी ने भारद्वाज ऋषि के पुत्र अरुण का पालन किया। सात साल बाद उसे भारद्वाज जी को सौंप दिया। पुत्र को देखकर पिता का वात्सल्य उमड़ पड़ा। उन्होंने उसका उपनयन संस्कार कराया और शिक्षा दी। उसके बाद गणेश मंत्र देकर उसे गणेश जी की कृपा प्राप्त करने को कहा। पिता की आज्ञा पाकर पुत्र अरुण गंगातट पर गए और गणपति का ध्यान करके गणेश मंत्र का जाप करने लगे।
वे सहस्र वर्ष तक गणेश मंत्र का जाप करते रहे। उन्होंने अन्न और जल त्याग दिया था। माघ कृष्ण चतुर्थी को चंद्रोदय के बाद विघ्नविनाशक गणपति ने उनको दर्शन दिए। उन्होंने ऋषि पुत्र से कहा कि वे उनके तप से प्रसन्न हैं। तुम जो भी वर मांगोगे, वो मिलेगा। इस पर उस बालक ने कहा कि आपके दर्शन से ही मैं धन्य हो गया। इस तप से मेरा जीवन सफल हो गया। मैं स्वर्ग लोक में स्थान चाहता हूं और अृमतपान करना चाहता हूं। मैं तीनों ही लोकों में मंगल नाम से प्रसिद्ध होना चाहता हूं।
ऋषि कुमार ने गणेश जी से कहा कि हे भगवन! माघ कृष्ण चतुर्थी को आपका दर्शन हुआ है, इसलिए यह चतुर्थी पुण्य देने वाली, सभी संकटों का नाश करने वाली तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाली हो। जो भी व्रत करे, उसे समस्त इच्छाएं आपकी कृपा से पूर्ण हों।
इस गणपति ने उनको वरदान दिया कि तुम्हारा नाम मंगल प्रसिद्ध होगा। तुम्हारा एक नाम अंगारक भी लोकप्रिय होगा। यह तिथि 'अंगारक चतुर्थी' कहलाएगी। जो भी इस व्रत को करेगा, उसे पूरे वर्ष की चतुर्थी व्रत का पुण्य लाभ होगा। उसके सभी कार्य बिना संकट के पूर्ण होंगे। अवंती नगर में तुम परंतप नरपाल होकर सुख भोग करोगे। इतना कहकर गणपति चले गए।
इसके बाद मंगल ने एक मंदिर में 10 भुजाओं वाले गणेश जी की मूर्ति स्थापना कराई। उनका नाम मंगलमूर्ति रखा। मंगल ने मंगलवारी चतुर्थी का व्रत किया और उसके प्रभाव से स्वर्ग लोक चले गए। वहां अमृतपान किया। वह तिथि अंगारक चतुर्थी के नाम से प्रसिद्ध हुई। अंगारक चतुर्थी समस्त कामनाओं की पूर्ति, संतान प्राप्ति आदि के लिए उत्तम होती है