RGA न्यूज़ संवादाता डॉक्टर मुदित प्रताप सिंह
रहने को घर नहीं, सोने को विस्तर नहीं, अपना खुदा है रखवाला
जनपद बरेली तहसील मीरगंज में गरीब लोगों की टूटी फूटी झोपड़ी और उनकी तंगहाली की दशा देखकर गुज़रे ज़माने का एक गीत याद आ गया रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं, अपना खुदा है रखवाला, अब तक उसी ने है पाला। आज इसकी एक झलक देखने को भी मिली। आज जहाँ एक ओर गरीब लोगों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मकान बनाये जा रहे है, वही दूसरे ओर आज भी कई ऐसे परिवार है जिनके पास न तों रहने को घर है और न खाने कि भोजन। उन्हें तों दो जून की रोटी के लिये संघर्ष करना पड़ता है। RGA आर जी ए न्यूज़ चैनल के संवादाता डॉक्टर मुदित प्रताप सिंह के माध्यम से आज हम आपको कुछ ऐसे लोगों से परिचय कराते है जिनके पास न तों घर है न पेट भर भोजन।दूसरों के कपडे मांगकर पहनना ही इनका नसीव बन गया है। फटे पुराने हाल में रहने को मज़बूर है बेचारे।आज हम बात कर रहे है तहसील मीरगंज मोहल्ला खानपुरा में रहने वाले दो ऐसे परिवारों की जिनकी दशा देख आसमान भी रो पड़े, पर जमीन पर बैठे कुछ अधिकारी को ऐसे लोग दिखाई ही नहीं देते। RGA न्यूज़ के संवादाता मुदित प्रताप सिंह की नजर सदीना पत्नी तैय्यब और चंदा पत्नी समर की टूटी फूटी झोपड़े पर पड़ी तों जो देखा देखकर दंग रह गये। दो परिवार फटेहाल, नंगे भूके। न तों किसी के पाँव में चप्पल थी न ढंग के कपडे। मेहनत मज़दूरी कर बस किसी प्रकार घर का गुज़ारा हो रहा था। जब हमारे संवाददाता डॉक्टर मुदित प्रताप सिंह ज़ब पहली झोपडी में घुसे तों देखा कि वारिश के मौसम में झोपडी के अंदर और बाहर कोई खास अंतर नहीं क्योंकि टूटी फूटी झोपड़ी से पानी हर वक्त टपकता रहता होगा। झोपड़ी के अंदर कुछ फटे पुराने कपडे और चंद बर्तन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया। माँ अपने बच्चों के साथ ज़मीन पर बैठी आसमान को निहार रहीं थी ऐसा लग रहा था मानो ऊपर वाले से कोई शिकायत कर रही हो और ऊपर वाला भी मुँह घुमा कर बैठा हो। दूसरी झोपडी ठीक इसके सामने थी। एक छोटा से बन्दर जो इस परिवार की आय का एक मात्र साधन था, खूंटे से बंधा अपने मालिक की ओर देख रहा रहा। ऐसा लग रहा था मानो मालिक और बन्दर एक दूसरे से कह रहे हो कि हमारा अच्छा वक्त कब आयेगा।