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राम जन्मोत्सव से पूर्व भक्ति के अनेक रंगों में ढली रामनगरी
कोरोना संकट के बावजूद शिखर पर आस्था. रामकथा के गायन के साथ मार्मिक प्रसंगों का विवेचन
अयोध्या : कोरोना संकट के बावजूद रामनगरी राम जन्मोत्सव में लीन नजर आ रही है। इस पावन अवसर पर बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को निषिद्ध कर दिया गया है। स्थानीय साधु-संत भी कोरोना की गाइड लाइन का पूरी जिम्मेदारी से अनुपालन कर रहे हैं। इसके बावजूद राम जन्मोत्सव के अवसर पर रामनगरी भक्ति के अनेक रंगों मे ढली नजर आ रही है। प्रथम बेला में रामकथा के प्रतिनिधि ग्रंथ रामचरितमानस का नवाह्न पाठ सातवें दिन पूरी रौ में आगे बढ़ रहा होता है। यह प्रक्रिया मंदिर-मंदिर प्रवाहमान होती है। सरयू के जिस राजघाट को रामचरितमानस में खूब प्रशंसित किया गया है, उस तट पर रामकथा मर्मज्ञ डॉ. सुनीता शास्त्री ने श्री विद्यापीठ विकसित कर रखा है। यहां भी रामचरित का गान परवान चढ़ा होता है। डॉ. सुनीता यूं तो कथा की व्याख्याता हैं, पर वे गान में भी बखूबी हाथ दिखा रही होती हैं। विद्यापीठ के मनोरम प्रांगण में ही दुर्गा सप्तशती का नौ दिवसीय पाठ और सायंकालीन सत्र में बधाई गान भी संयोजित है। डॉ. सुनीता कहती हैं, श्रीराम हम वैष्णवों-हम अयोध्यावासियों के प्राणाधार हैं और उनका जन्मोत्सव प्राणपण से जुड़ी निष्ठा से प्रेरित है। कोरोना से बचाव के साथ भी हम अपनी आस्था को अच्छी तरह से निभा सकते हैं औैर निभा भी रहे हैं। आस्था की सरयू से अशर्फीभवन का माधवभवन सभागार भी आप्लावित होता है। व्यासपीठ पर विराजे अशर्फीभवन पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य सात दिवसीय क्रम में भागवतकथा के मार्मिक प्रसंगों की मीमांसा कर रहे होते हैं। वे बताते हैं, जगतजननी लक्ष्मी स्वरूपा रुक्मिणी के द्वारिका आ जाने पर द्वारिका नगरी की शोभा और बढ़ जाती है। श्रीकृष्ण द्वारिका में अनेक लीलाएं करते हैं। जगद्गुरु भगवान की भक्तवत्सलता की कथा सुनाकर विभोर भी करते हैं। कथा के गान से आचार्य पीठ दशरथमहल का प्रांगण भी गुंजायमान होता है। कथाव्यास जगद्गुरु रत्नेशप्रपन्नाचार्य श्रीराम के धीरोदात्त चरित्र का मनोहारी विवेचन कर रहे होते हैं। कहते हैं, विपत्ति में ही हमारी वास्तविक परीक्षा होती है। समस्याओं को देखकर कायर अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं और धर्मज्ञ संघर्ष करते हैं। श्रीराम का चरित्र हमें अवसाद से बचने की शिक्षा देता है। वाल्मीकि रामायण का उद्धरण देते हुए जगद्गुरु कहते हैं, श्रीराम स्वधर्म की तो रक्षा करते ही हैं, स्वजन के धर्म की भी रक्षा करते हैं।