वर्षों से अघोषित सेल्फ क्वारंटाइन का पालन करती है उत्तराखंड की एकमात्र आदिम जनजाति

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पिथौरागढ़ जिले में जंगल किनारे स्थित वनराजियों की बस्ती में और उनके कच्चे घर।

सीमांत पिथौरागढ़ जिले में रहने वाली प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति वनराजिÓ के लिए यह नई बात नहीं है। जिले की धारचूला और डीडीहाट तहसीलों के नौ गांवों में निवास करने वाले वनराजियों (स्थानीय बोलचाल में वनरावत) के गांव कोरोना संक्रमण से कोसों दूर हैं।

 पिथौरागढ़ : कोरोना ने भले ही आमजन को पिछले साल से क्वारंटाइन, सेल्फ आइसोलेशन, शारीरिक दूरी जैसे तमाम नए शब्दों से रूबरू कराया हो, लेकिन सीमांत पिथौरागढ़ जिले में रहने वाली प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति 'वनराजिÓ के लिए यह नई बात नहीं है। जिले की धारचूला और डीडीहाट तहसीलों के नौ गांवों में निवास करने वाले वनराजियों (स्थानीय बोलचाल में वनरावत) के गांव कोरोना संक्रमण से कोसों दूर हैं। इसका कारण गांवों का जंगलों के निकट प्रकृति के करीब स्थित होना और पूरी तरह प्रकृति के अनुसार आचार-व्यवहार है। हकीकत यह भी है कि यह समाज वर्षों से स्वाभाविक सामाजिक दूरी के नियम से बंधे हुए हैं। जंगल और अपने खेतों में उत्पादित होने वाला खाद्यान्न, फल, सब्जी आदि पर ही यह समाज जीवनयापन करता है। सीमित आबादी एवं दूर-दूर घर भी इन्हें शारीरिक दूरी के नियम का पालन करने की प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था देते हैंैैं

सरक्षित जनजाति है वनराजि

सीमांत के नौ गांवों में रहने वाली आदिम जनजाति वनराजि संरक्षित श्रेणी में रखी गई है। वनराजि की 2015-16 में एक संस्था ने जनगणना कराई तो आबादी 697 थी। समाज के बीच जाना इन्हेंं रास नहीं आता है। वनराजि समाज की महिलाएं जंगलों से लकड़ी लाकर समीप के जौलजीबी व अस्कोट के होटलों में बेच कर आजीविका चलाती हैं। वनराजि समाज के पुरुष भी जब मजदूरी करने जाते हैं तो अन्य लोगों से दूरी बनाए रखते हैं और बोली में कुछ हद तक अंतर के चलते बातचीत भी कम ही करते हैं।

सेल्फ क्वारंटाइन जैसी ही स्थिति में रहता है समाज  

वनराजि गांवों में कार्यरत पैरालीगल वालिंटियर खीमा जेठी बताती हैं कि अभी तक वनराजियों में कोई भी कोरोना संक्रमित नहीं मिला है। कुछ वनराजि बुखार से पीडि़त रहे परंतु स्वयं ही उपचार से ठीक हो चुके हैं। हालांकि अभी वनराजियों की कोविड सैंपलिंग भी नहीं की गई है। वनराजियों को यह पता है कि कोरोना नाम की एक बीमारी फैली है। जिसमें बुखार, खांसी और जुकाम होता है। जागरूकता के बाद वह इससे बचने का पूरा प्रयास कर रहे हैं

इन गांवों में रहते हैं वनराजि

तहसील धारचूला के किमखोला, भकतिरवा, गाना गाड़, चिफलतरा। तहसील डीडीहाट के कूटा, जमतड़ी, मदनपुरी, औलतड़ी(सल्याड़ी) और च्युरानी ।

जमतड़ी के कुछ वनराजियों का हुआ वैक्सीनेशन

वैक्सीनेशन को लेकर वनराजि ऊहापोह की स्थिति में हैं। वहीं जमतड़ी के 45 वर्ष से अधिक आयु के चार लोग वैक्सीन लगा भी चुके हैं। अन्य गांवों की स्थिति अलग है। इसकी वजह यह है कि एक तो टीकाकरण केंद्र काफी दूर हैं। दूसरा कोविड कफ्र्यू के चलते वाहन नहीं चल पा रहे हैं। केंद्र दूर होने के कारण वाहनों से आना-जाना और उसका किराया वहन करना वनराजियों के वश में नहीं है। ग्राम प्रधान च्युरानी महेश कन्याल ने बताया कि च्युरानी के वनराजियों को टीका लगाने के लिए डीडीहाट जाना पड़ रहा था। वाहन से एक तरफ का किराया चालीस रुपए था। इस परेशानी को देखते हुए च्युरानी में मकान उनके टीकाकरण के लिए दिया गया है। एसडीएम केएन गोस्वामी ने इसकी मंजूरी भी दे दी है।

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