कोरोना काल के दौरान लोक कलाकारों की व्यथा काे आवाज देगी शार्ट फिल्म हुड़का

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हल्द्वानी निवासी रंगकर्मी शंभू दत्त साहिल लिखित व निर्देशित शॉट फिल्म हुड़का कोरोना काल में लोक कलाकारों की व्यथा बयां करती है। रंगकर्मी हरीश पांडे हर्षित पंत घनश्याम भट्ट जगदीश जोशी चंदन मेहरा हेम शर्मा ने शानदार अभिनय से 17 मिनट की लघु फिल्म को जीवंत बनाया है।

 हल्द्वानी : लोक गीतों के शौकीन दीवान जी की हवेली पर एक शाम गीतों की महफिल सजी है। चंदन के साथ आए नए कलाकार के हुड़के पर थाप देने के अंदाज से दीवान साहब काफी प्रभावित हुए। लोक कला के प्रति उनकी जिजीविषा भांपने के लिए पुचकारते हुए पूछा- क्या नाम है बेटा? किशन लाल। वाह किशन, बड़ा ही सुंदर हुड़का है। जरा दिखा। किशन ने हुड़का दीवान जी की तरफ बढ़ाया। तेरा ये हुड़का मुझे पसंद आ गया। इसे मुझे दे दे।

दीवान जी के मुंह से ये सुनकर किशन असहज हो गया। तभी पास बैठे ठाकुर साहब बोल पड़े- हां हां देदे, इतना सोच मत। दीवान साहब का दिल जो आ गया ठहरा इस पर। दीवान जी क्या करेंगे इसका? किशन से ये सुन ठाकुर बोला- दीवान साहब इसे घर की दीवार पर सजाएंगे। दीवार पर टंगी कुछ पुरानी दुर्लभ वस्तुओं की तरफ इशारा करते हुए बोला- देख, दीवान जी कितने शौकीन हैं। तभी दीवान जी आफर करते हुए कहते हैं बता कितने रुपये दे दूं? नहीं नहीं..। हुड़का न मैंने बेचने के लिए बनाया है और न दीवार पर सजाने। अबके किशन की आवाज में कड़कपन था। दीवान जी बोले, तो फिर? ये हुड़का मैंने अपनी लोक संस्कृति व लोक कला को आगे बढ़ाने के लिए बनाया है

दीवान जी की बात से नाराज किशन घर तो लौट आया, लेकिन यहां बाबू की कड़वी बातों से साक्षात्कार हुआ। पांच महीने से घर पर बैठा है, अब तेरा हुड़का नहीं बज रहा बेटा? मैं पहले ही कह रहा था कुछ और काम-धंधा कर। नहीं, तुझे तो हुड़का बजाने की धुन ठैरी। जा बेच आ इसको। धैर्य बंधाने के अंदाज में किशन कहता है- बाबू मैं ही घर पर नहीं बैठा हूं। मेरे जैसे हजारों कलाकार महामारी की वजह से बेरोजगार बैठे हैं। बाबू ने फिर तंज किया, तेजी मां जिंदा होती तो वही समझाती। मैं तो समझाकर थक गया। पिता की बेवशी देख किशन पूछता है- बाबू हुआ क्या है? आज तो आप पीछे ही पड़ गए। होता क्या है, घर में जो बचा-खुचा था खत्म हो गया, तू है बस..। पिता की बेवशी ने किशन का मन बदल दिया।

न चाहते हुए उसके कदम दीवान जी के घर की तरफ बढ़ गए। दीवान जी मैं किशन हूं। आप उस दिन मेरा हुड़का खरीदना चाहते थे। मैं इसे बेचने आया हूं। लोक संस्कृति के कद्रदान दीवान जी किशन की व्यथा समझ गए। घर के अंदर से लिफाफा लाकर किशन के हाथ में धरते हुए बोले- बेटा इस हुड़के को अपने हाथ से अलग मत करना। ये तेरे हाथों पर ही जमता है।

हल्द्वानी निवासी रंगकर्मी शंभू दत्त साहिल लिखित व निर्देशित शॉट फिल्म हुड़का कोरोना काल में लोक कलाकारों की व्यथा बयां करती है। रंगकर्मी हरीश पांडे, हर्षित पंत, घनश्याम भट्ट, जगदीश जोशी, चंदन मेहरा, हेम शर्मा ने शानदार अभिनय से 17 मिनट की लघु फिल्म को जीवंत बनाया है। संगीत हनुमंत पंत व साहिल ने दिया है। यूट्यूब पर प्रसारित फिल्म को खूब सराहना मिल रही

सरकारी योजनाओं व नीतियों के प्रसार के लिए सरकार कलाकारों का सहारा लेती है। आज संकट की घड़ी में उन्हीं कलाकारों को सरकार बेसहारा छोड़ रही है। सरकार को हमारे परिवारों की सुध लेनी चाहिए।

कलाकारों के सामने रोजी-रोटी का संकट मंडरा रहा है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान समेत कई राज्यों ने लोक कलाकारों के लिए राहत पैकेज का एलान किया। दुर्भाय की बात है कि उत्तराखंड में हमारी बात तक नहीं हुई।

सांस्कृतिक दलों से जुड़े कई कलाकार पूरी तरह अपने पेशे पर निर्भर होते हैं। पिछले 15 माह से मेले, महोत्सव बंद हैं। ऐसे कलाकार किस हाल हैं, उनके घर कैसे चल रहे हैं, सरकार को इसकी सुध लेनी चाहिए।

 

कलाकारों की कद्र नहीं होगी तो कला व संस्कृति की बेकद्री हो जाएगी। अपनी कला, अभिनय के भरोसे जिंदा लोक कलाकारों के लिए कोरोना काल सबसे बड़ी त्रासदी है। सरकार को संज्ञान लेना चाहिए

मेले, महोत्सव व रंगमंच पर निर्भर कलाकार बड़ी मुश्किल में हैं। कलाकार सीधे तौर पर अपनी व्यथा बता नहीं सकता। सरकार है कि दर्द समझने के लिए तैयार नहीं है। दूसरे राज्यों से सबक लेना चाहिए।

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