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सरसों के रकबे में कमी के कारण चढ़ा सरसों का दाम। सांकेतिक फोटो
Mustard Oil Price इस बार सरसों की खेती करने वालों किसानों की बल्ले-बल्ले रही लेकिन बढ़ी कीमत का खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। दरअसल कम रकबे में सरसों की खेती व आयात नीति के कारण इसके दाम में उछाल
चंडीगढ़: सरसों जो पिछले साल 3200 रुपये प्रति क्विंटल था इस साल सात हजार रुपये पार करने से किसानों की जेब में तो पिछले साल की तुलना में दोगुणा से ज्यादा पैसा आ गया है, लेकिन इसका सबसे बुरा असर अगर किसी पर पड़ा है तो वह है आम उपभोक्ता। सरसों का तेल दो साै रुपये प्रति लीटर को छूने लगा है।
कृषि नीतियों के विशेषज्ञ मानते हैं कि इस साल पॉम ऑयल के आयात पर बढ़ाए गए शुल्क के कारण ऐसा हुआ है। इस बार तेल का आयात कम होने के कारण सभी तिलहन की फसलों का रेट अच्छा रहा है, चूंकि सरसों का तेल आमतौर पर सबसे ज्यादा उपयोग में आता है, इसलिए उपभोक्ताओं को इसकी कीमतें चुभ रही हैं।
दरअसल, भारत अपनी जरूरत का आधे से ज्यादा तिलहन का हिस्सा आयात करता है और इसकी सरकारी खरीद की कोई गारंटी न होने के कारण किसान इसके अधीन अपना रकबा बढ़ाने में ज्यादा रूचि नहीं दिखाते। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में ही यह ज्यादा होता है। पंजाब तो अपनी जरूरत का हिस्सा भी पूरा नहीं करता।
कृषि विभाग के कमिश्नर डा. बलविंदर सिंह सिद्धू बताते हैं कि इस बार सरसों की कीमतों ने हमें गेहूं का रकबा कम करने की एक राह दिखाई है। अगर केंद्र सरकार तिलहन का आयात कम करने की अपनी नीति को आगे बढ़ाती है तो निश्चित तौर पर किसान इस फसल की ओर उत्साहित होंगे और रकबा बढ़ने से इसके रेट भी आम उपभोक्ताओं की पहुंच में आ जाएंगे
उन्होंने पंजाब का उदाहरण देते हुए बताया, पंजाब में केवल 32 हजार हेक्टेयर में ही सरसों उगाई जाती है, जबकि अन्य तिलहन की फसलें जिनमें मूंगफली, सूरजमुखी आदि भी शामिल हैं की पैदावार अब राज्य में बहुत ही कम हो गई है। अगर हमारे पास पैदावार ही नहीं है तो इसका असर कीमतों पर आना निश्चित है। अगर हमें पंजाब की तिलहन की जरूरत को ही पूरा करना हो तो हमें दो लाख हेक्टेयर पर इसकी पैदवार बढ़ानी चाहिए, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि केंद्र सरकार की आयात नीति क्या रहती है।
बता दें, सस्ता पॉम ऑयल आयात होने से सरसों का तेल बेचने वाली कंपनियां इस तेल में मिलावट कर देती हैं जिससे इसके दाम में कमी आ जाती है। खेती माहिरों का मानना है कि अगर सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी बिके तो भी आम उपभोक्ताओं को 150 रुपये प्रति लीटर से कम नहीं मिलेगा, लेकिन वह इससे संतुष्ट हो सकते हैं कि उनके तेल में किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं होगी।
हर साल अपने 14 एकड़ में मात्र एक एकड़ में अवतार सिंह संधू का कहना है कि हम सिर्फ अपनी या अपने कुछ मित्रों की जरूरत को पूरा करने के लिए ही सरसों लगाते हैं। मंडी में न तो सरकार इसे एमएसपी पर खरीदती है और न ही व्यापारी एमएसपी देने को तैयार है। इस बार यह महंगा होने का कारण मुझे नहीं पता, लेकिन मैं तो इतना मानता हूं कि अगर हमें एमएसपी भी दी जाए तो भी यह गेहूं से ज्यादा फायदा दे जाती है, किसान सौ फीसद इसका रकबा बढ़ाने को तैयार हो जाएंगे । कम से कम खरीद सुनिश्चित तो हो। पिछले साल मंडियों में हमारे गांव के किसानों को सरसों का 3200 रुपये प्रति क्विंटल नहीं मिला।