शासन की कैद में बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट, पढ़िए पूरी खबर

Praveen Upadhayay's picture

RGA news

आठ माह से बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट की डीपीआर को नहीं मिली मंजूरी।

सरकारी एवं निजी अस्पतालों से निकल रहे खतरनाक जहर बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए बनने वाले प्लांट पर आठ माह से शासन कुंडली मारे बैठा है। कोरोना काल जैसी महासंकट की घड़ी में भी प्लांट की डीपीआर को मंजूरी न देना सवाल खड़ा कर रहा है।

 देहरादून। सरकारी एवं निजी अस्पतालों से निकल रहे 'खतरनाक जहर' बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए बनने वाले प्लांट पर आठ माह से शासन कुंडली मारे बैठा है। कोरोना काल जैसी महासंकट की घड़ी में भी प्लांट की डीपीआर को मंजूरी न देना सवाल खड़ा कर रहा है। दो साल पहले आई एक रिपोर्ट के अनुसार दून जिले में 97 बड़े अस्पतालों का चिकित्सीय कचरा सड़क पर ही डंप हो रहा है। हैरानी की बात यह है कि इनमें 45 अस्पताल शहरी क्षेत्र में हैं। इसके अतिरिक्त छोटे-बड़े ऐसे दर्जनों नर्सिंग होम, क्लीनिक हैं, जो कचरे को नगर निगम के कूड़ेदान या कचरा गाड़ी में डंप कर रहे। इस खतरनाक कचरे के निस्तारण को निगम ने पिछले वर्ष सितंबर में बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़ी फाइनल डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) शासन को भेजी थी, लेकिन शासन इसे 'कैद' किए बैठा है। 

अस्पताल से निकलने वाला कचरा इतना ज्यादा हानिकारक है कि उसे सामान्य कूड़े के साथ डंप नहीं किया जा सकता। मौजूदा समय में उत्तराखंड में दो ही बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट हैं। एक गढ़वाल मंडल के लिए रुड़की में है जबकि दूसरा रुद्रपुर में कुमाऊं मंडल के लिए है। गढ़वाल के सभी जनपदों का चिकित्सीय कचरा रुड़की स्थित मेडिकल पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी के ट्रीटमेंट प्लांट में भेजा जाता है। नियमानुसार समस्त अस्पतालों का कूड़ा नियमित रूप से रुड़की आता रहे, इसके लिए समस्त अस्पताल को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से ऑथराइजेशन (प्राधिकार) लाइसेंस लेना अनिवार्य होता है, लेकिन सच इसके उलट है। 

स्वास्थ्य विभाग की एक जांच रिपोर्ट के अनुसार जिले में कुल 220 अस्पतालों में से 97 के पास ऑथराइजेशन लाइसेंस नहीं है। ऐसे 45 अस्पताल तो शहरी क्षेत्र में हैं। ऐसे में इन अस्पतालों का हानिकारक रासायनिक कचरा कहां डंप हो रहा कुछ पता नहीं। यह कचरा जमीन की उर्वरता, भूजल, वातावरण में घुल रहा है व जनता की सेहत पर खराब असर डाल रहा, मगर सरकारी तंत्र खामोश बना बैठ है। हालात ये है कि ज्यादातर बड़े अस्पताल के साथ ही शहर में जगह-जगह खुले नर्सिंग होम व क्लीनिक बायोमेडिकल वेस्ट को मेडिकल पॉल्यूशन कंट्रोल कमेटी को देने के बजाए नगर निगम के कूड़ेदान में ही गिरा देते हैं। कई दफा अस्पताल प्रबंधन के लोग नगर निगम के कूड़ा वाहन चालकों से सेटिंग कर लेते हैं और अपने रसायनिक कूड़ा को सामान्य कूड़े समेत ट्रेंचिंग ग्राउंड तक पहुंचा देते हैं।

रोजाना निकल रहा दस हजार किलो मेडिकल वेस्ट

शहर में रोजाना करीब साढ़े तीन सौ मीट्रिक टन सामान्य कूड़ा एकत्र होता है। कोरोना से पहले सामान्य दिनों में जिले के अस्पतालों से हर दिन करीब 2500 किलो बायोमेडिकल वेस्ट निकलता था व इसमें से केवल 1200 किलो का ही उठान होता था। वह भी ज्यादातर सरकारी अस्पतालों का होता था। अब कोरोना काल में करीब दस हजार किलो बायोमेडिकल वेस्ट जिले में निकलने का अनुमान है, लेकिन इसमें से उठान केवल 3500 किलो का ही हो रहा। यानी, पूर्व की तरह निजी अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक आदि अपने रासायनिक कूड़े को इधर-उधर ही ठिकाने लगा रहे। 

सख्त कानून के बाद भी नहीं खौफ

बायोमेडिकल वेस्ट के उचित निस्तारण पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के प्रविधानों के तहत किया जाता है। नियमों की अनदेखी पर अधिनियम के सेक्शन 15 में एक लाख तक जुर्माना, पांच साल तक की जेल व दोनों हो सकते हैं। इसी तरह सेक्शन-05 में अस्पताल के बिजली-पानी के कनेक्शन काटने के साथ ही सीलिंग की कार्रवाई भी की जा सकती है। अफसोस है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सरकार की सख्ती के अभाव में अधिकतर अस्पताल संचालकों में कानून का भय ही खत्म हो चुका है।

क्यों जरूरी है बायोमेडिकल वेस्ट का विशेष निस्तारण

बायोमेडिकल वेस्ट इतना खतरनाक होता है कि उसे न तो खुले में छोड़ा जा सकता है, न ही पानी में बहाया जा सकता है और न ही उसे अन्य कचरे की भांति सामान्य तरीके से डंप किया जा सकता है। इसके उठान के लिए अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसके बाद उसके निस्तारण के लिए भी कचरे को 10 श्रेणी में बांटा जाता है। कचरे को अलग ढंग से उपचारित करने के बाद कुछ को जमीन में गाड़ा जाता है, तो कुछ को जला देना अनिवार्य होता है।

कचरे की श्रेणी, उपचार विधि व निस्तारण

  • मानव अंग: जमीन में गाड़ सकते हैं या जला भी सकते हैं।
  • पशु अंग: जमीन में गाड़ सकते हैं या जला भी सकते हैं।
  • माइक्राबायोलाजी वेस्ट: जमीन में गाड़ दिया जाता है।
  • वेस्ट शार्प: उपचार में प्रयुक्त ब्लेड, चाकू जैसे उपकरणों या औजारों को केमिकल में साफ करके जमीन में गाड़ना
  • एक्सपायर दवाएं: जलाना।
  • सॉयल्ड वेस्ट: पीपीई किट, मास्क, ग्लब्स, खून, घावसनी रुई, प्लास्टर आदि जैसे इस वेस्ट को जलाया जाता है। 
  • सॉलिड वेस्ट: यूरिन ट्यूब आदि जैसे उपकरणों को केमिकल ट्रीटमेंट के बाद जमीन में गाड़ने का प्रविधान।
  • लिक्विड वेस्ट: हाइपो सॉल्यूशन के माध्यम से उपचारित कर नाली में भी बहाया जा सकता है।
  • इंसिन्युरेटर ऐश: यह वह राख होती है, जो चिकित्सीय कचरे को जलाने के बाद निकलती है। इसे नगर पालिकाओं की साइट पर डंप किया जा सकता है।
  • केमिकल वेस्ट: केमिकल ट्रीटमेंट के बाद नाली में बहाया जा सकता है। 

अलग रंग के होने चाहिए कूड़ादान

  • पीला: मानव अंग, पशु अंग, माइक्रोबायोलाजी वेस्ट, सॉयल्ड वेस्ट।
  • लाल: माइक्रोबायोलाजी वेस्ट, सॉयल्ड वेस्ट, सॉलिड वेस्ट।
  • नीला/सफेद: वेस्ट शार्प, सॉलिड वेस्ट।
  • काला: एक्सपायरी दवाएं, इंसिन्युरेटर एश, केमिकल वेस्ट। 

डा. केसी पंत (चिकित्सा अधीक्षक, दून मेडिकल कालेज) का कहना है कि बायोमेडिकल वेस्ट का उठान व इसका निस्तारण वैज्ञानिक तरीके से होना चाहिए। कूड़ा अगर खुले में गिर रहा है तो आमजन के लिए बीमारियों का कारण बन सकता है और यह बेहद हानिकारक भी साबित होता है। दून मेडिकल कालेज से बायोमेडिकल वेस्ट निस्तारण के लिए रुड़की स्थित प्लांट में भेजा जाता है।

नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय का कहना है कि बायोमेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए नगर निगम प्लांट लगाना चाहता है। इसकी डीपीआर पिछले साल शासन को भेजी गई थी, लेकिन अभी मंजूरी नहीं मिली है। वहां से मंजूरी मिलते ही निगम इसके टेंडर करने में देरी नहीं करेगा। शहर में अस्पतालों का रासायनिक कूड़ा न फैले, इसके लिए निगम ने फिलहाल अपनी गाडिय़ों में इस कूड़े के उठान की तैयारी की है। जब तक प्लांट का कार्य पूरा नहीं होता, इस कूड़े को रुड़की में बने निस्तारण प्लांट में भेजा जाएगा। इसके बावजूद जो अस्पताल या नर्सिंग होम कूड़े को नगर निगम की गाड़ी में नहीं डालेंगे या बाहर फेंकेंगे, उन्हें चिह्नित किया जाएगा व लाइसेंस निरस्त करने की संस्तुति सरकार से की जाएगी।

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.