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गोरखपुर में बिक रही लीची का ka Drishya
एक तरफ बाग में फल निकलने शुरू हो गए हैं तो दूसरी तरफ कोरोना कर्फ्यू की वजह से बाजार बंद है। इसलिए फल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। लीची की बागवानी करने वालों को कारोबार में फायदा तो दूर लागत भी निकली मुश्किल जान पड़ रही है।
गोरखपुर कोरोना महामारी से न केवल आम जनजीवन प्रभावित हुआ है बल्कि खेती-बारी भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है। खासकर लीची की बागवानी करने वाले लोग इस बीमारी के चलते पूरी फसल बर्बाद होने की आशंका से परेशान हैं। एक तरफ बाग में फल निकलने शुरू हो गए हैं तो दूसरी तरफ कोरोना कर्फ्यू की वजह से बाजार बंद है। इसलिए फल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। लीची की बागवानी करने वालों को कारोबार में फायदा तो दूर लागत भी निकली मुश्किल जान पड़ रही है।
कोरोना ने लीची के कारोबार की तोड़ी कमर
भटहट इलाके में बरगदही गांव के रहने वाले बेगू निषाद उर्फ भगत लंबे समय से लीची के बाग का ठीका लेते हैं। बरगदही और जंगल माफी गांव में स्थित लीची के बाग का ठीका लेने के साथ ही पड़ोसी जिले महराजगंज में भी उन्होंने लीची के कई बाग का ठीका ले रखा है। वह बताते हैं कि हर साल पेड़ पर पके आम के बाजार में आने से पहले लीची की धूम रहती है। अप्रैल से जून तक तीन माह का सीजन होता है। हर साल तीन महीने के कारोबार में अच्छी आय हो जाती थी, लेकिन इस साल बागवानी में लगाई गई पूंजी निकलनी भी मुश्किल लग रही ह
नहीं आ पा रहे बाहरी कारोबारी
सीजन शुरू होने पर लीची के कारोबारी बाग में पहुंचकर फल की खरीदारी करते थे। इस साल कोरोना कर्फ्यू होने की वजह से फल के बाहर के थोक कारोबारी खरीदारी करने के लिए नहीं आ पा रहे हैं। बाजार बंद होने की वजह से स्थानीय कारोबारियों को इस बात का डर सता रहा है कि यदि उन्होंने खरीदारी कर भी ली तो बेचेंगे कहां। बेगू निषाद बताते हैं कि ठेले पर दुकान लगाने वाले कुछ दुकानदार ही खरीदारी करने बाग में पहुंच रहे हैं लेकिन वे उतना ही खरीद रहे हैं जितना एक से दो दिन के अंदर बेच सकें। इससे बागवानी में आई लागत नहीं निकल सकती। भटहट बाजार में ठेले पर लीची बेच रहे संजय कुमार ने बताया कि सामान्य दिनों में बाग से 40-50 रुपये प्रति किग्रा की दर से लीची खरीद कर बाजार में 80-90 रुपये में बेचते थे। अच्छी आय हो जाती थी, लेकिन इस बार 30-40 रुपये किलो की बिक्री भी मुश्किल से ही हो पा रही है। बाजार बंद होने की वजह से खरीदार नहीं मिल रहे हैं। इसलिए काफी फल खराब भी हो जा रहा है।