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सकैड़ों परिवारों के सपने में आ रहा सिर्फ कोरोना वायरस।
डाक्टर साहब मैं महीनेभर पहले कोरोना संक्रमित था। ठीक हो गया लेकिन सपने में सिर्फ कोरोना नजर आता है। मेरा बच्चा सपने में परछाई देखता है। पत्नी सहमी रहती है। यह एक दो नहीं सैकड़ों परिवारों में पनपने वाला संकट है। जानिए न्यूरोसाइकेटिस्ट ने क्या बताया..
मेरठ। डाक्टर साहब मैं महीनेभर पहले कोरोना संक्रमित था। ठीक हो गया, लेकिन सपने में सिर्फ कोरोना नजर आता है। मेरा बच्चा सपने में परछाई देखता है। पत्नी सहमी रहती है। यूं तो हम सब ठीक हैं, लेकिन खुशियां गायब जैसे हो गई हैं..। यह एक दो नहीं, सैकड़ों परिवारों में पनपने वाला संकट है। न्यूरोसाइकेटिस्टों की रिपोर्ट बताती है कि पहली लहर की तुलना में दूसरी लहर में मनोरोगों की सुनामी आ गई है। ज्यादातर मरीज एक्यूट स्ट्रेस रिएक्शन से ग्रसित मिले हैं। बच्चे रात में उठकर बैठ जा रहे हैं। उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है।
बिगड़ रहा सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम
एक्यूट स्ट्रेस रिएक्शन में आदमी मरने या अनहोनी घटने के भय में डूबने लगता है। सांस फूल सकती है। हर खबर को मरीज सदमे की खबर की तरह लेने लगता है। लेकिन शरीर इसे 24-72 घंटे में संभाल लेता है। डाक्टर कहते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर भयावह रही। दूसरी लहर के साथ ही जहां ब्लैक फंगस ने भयभीत कर दिया, वहीं तीसरी लहर की आहट से मां बाप डरे हुए हैं। साथ ही वैक्सीन लगवाने के बावजूद संक्रमित होने से मन में अनिश्चितता छा गई है। चौतरफा डर का वातावरण बनने से सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम फेल होने लगा है।
पोस्ट ट्रामा स्ट्रेस: तकरीबन हर परिवार या उसके जानने वालों में कोरोना ने कहर बरपाया है। बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है। कई परिवार उजड़ गए, और बच्चे अकेले रह गए। ऐसी स्थिति में बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिले, जो अतीत के डर से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। वहीं, यह लक्षण वरिष्ठों में भी देखा जा रहा है।
मेडिकल कालेज न्यूरोसाइकेटिस्ट डा. तरुणपाल ने कहा- इस बार मरीजों में ज्यादा डर मिला। वो पूछते थे..डाक्टर साहब हम बच तो जाएंगे ना? मेडिकल कालेज में रोजाना मरीजों की काउंसलिंग की गई। उन्हें तनाव से बाहर निकालने के लिए सकारात्मक तथ्यों को बताया गया। मरीजों ने सपनों में भी डाक्टर, कोविड वार्ड, दवाएं और मौत देखने की शिकायत की। सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम लोगों को तनाव से बाहर निकालने में मदद करता है, लेकिन चौतरफा डर की वजह से नर्वस सिस्टम में यह ज्यादा एक्टिव हो रहा, जिससे मानसिक सेहत को क्षति पहुंची है।
न्यरोसाइकेटिस्ट डा. रवि राणा ने बताया- कोरोना काल मानसिक सेहत के लिए चुनौती का काल है। हमें तनाव से बचाने वाला सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम ओवर एक्टिव होकर मानसिक स्वास्थ्य बिगाड़ रहा है। डर व गुस्से में निकलने वाला एडिलिन व कार्टिसोल हार्मोन्स ज्यादा रिलीज हो रहे, जबकि मनोबल और प्रसन्नता बढ़ाने वाले सीरोटोनिन व अन्य शरीर में कम बन रहे हैं। यह खतरनाक है। पोस्ट कोविड मरीजों में से 50-60 फीसद में तनाव, अनिद्रा, एंग्जायटी है। सपनों में सिर्फ कोरोना है। बच्चे सोते समय डर जाते हैं। मनोबल बनाकर रखें। इस पर ध्यान लगाएं कि ज्यादातर ठीक हो गए।