CBSE की 12वीं की परीक्षा के आयोजन के संदर्भ में विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए प्रारूप को अपनाना चाहिए

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12वीं की परीक्षा का आयोजन संभव बनाने के लिए व्यावहारिक समाधान तलाशना आवश्यक है। फाइल

CBSE Class 12 Board Exams 2021 संक्रमण से बचाव के लिए सुरक्षा उपायों को अपनाते हुए सीबीएसई की 12वीं की परीक्षा के आयोजन के संदर्भ में विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए प्रारूप को अपनाना चाहिए ताकि बच्चों के भविष्य के सपनों को साकार करने में उनकी मदद की जा सके। CBSE Class 12 Board Exams 2021  बड़े होकर क्या बनना है? यह सवाल आजकल दूध के दांत टूटते ही बच्चे के जेहन में कुंडली मारकर बैठ जाता है। प्ले स्कूल का बैग जब कंधे पर टंगता है तब यह उपजता है और बारहवीं तक पहुंचकर एक आकार ले लेता है। कह सकते हैं, छात्र तब तक भविष्य के लक्ष्य को निर्धारित कर चुका होता है। लेकिन सोचिए आज लाखों छात्र कैसे दौर से गुजर रहे हैं, उनकी परीक्षाओं को लेकर तारीख पर तारीख दी जा रही हैं। बाहरवीं का छात्र 17-18 उम्र आयु वर्ग का होता है। यह उम्र विचारों की उठा-पटक को और बलवती करती है। अच्छे और बुरे दोनों ही विचार उसे तेजी से घेरते हैं। और आज की पीढ़ी तो सब कुछ बहुत जल्दी हासिल करना चाहती है। तेजी से आगे बढ़ना चाहती है। उसके जीवन में ऐसा ठहराव बहुत विचलित करने वाला है।

मानसिक दबाव करियर को पीछे घसीट रहा है। शिक्षक इसे बेहतर समझते हैं कि लगभग 85 फीसद बच्चों के अंदर परीक्षा को लेकर हमेशा ही डर बना रहता है। लेकिन एक बार परीक्षा में जब बैठ जाते हैं तो सब ठीक हो जाता है। सोचिए कितने दिन से आपका बच्चा इस स्थिति से गुजर रहा है। अभिभावक हैं कि परीक्षा नहीं कराने की बात कर रहे हैं। हालांकि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षा रद करने वालों की याचिका भी रद कर दी है। हो सकता है यह बात उन माता-पिता को विचलित करे जो कह रहे हैं कि परीक्षा नहीं होनी चाहिए, हम अपने बच्चों की जान जोखिम में नहीं डाल सकते। निश्चित ही छात्र हमारे देश का भविष्य हैं, थिंक टैंक हैं, इन पर कोई संकट नहीं आना चाहिए। लेकिन परीक्षा तो होनी ही चाहिए। आप सोचेंगे कि हम तो बच्चे के माता-पिता हैं, हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा बच्चे को। दरअसल बच्चों की इस स्थिति को शिक्षक से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता।

अभिभावकों को तो आगे आकर सुरक्षित माहौल में परीक्षा के लिए प्रेरित करना चाहिए। जल्द से जल्द ऐसी योजना और व्यवस्था की आवाज उठानी चाहिए, बनिस्पत यह कहने के कि परीक्षा नहीं होनी चाहिए। एक बच्चा परीक्षा देकर जो परिणाम हासिल करता है उसकी खुशी भला आपसे बढ़कर और कौन समझ सकता है। परीक्षा नहीं लेकर हम बच्चों के भविष्य पर ही संकट खड़ा कर रहे हैं। उनके लिए नई राहें कमजोर कर रहे हैं।अभी परीक्षा नहीं होने देने की पुरजोर पैरवी करने वाले बच्चों के कल को नहीं देख रहे। सबसे पहले हम एक तारीख तय करें, बच्चे तारीख तय नहीं होने से ज्यादा परेशान हैं। उनकी मनोदशा को समझने में यदि हम सक्षम हैं तो सुरक्षित तरीके से परीक्षा करने की दिशा में आगे बढ़ते। एक माडल के साथ आते, बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाते। परीक्षा नहीं देने वाले बैच का ठप्पा आपके आकलन को कम-ज्यादा कर सकता है, लेकिन परीक्षा देकर पास होना एक अलग गौरव की अनुभूति होती है।

12वीं के छात्र पर सिर्फ उसी कक्षा की पढ़ाई का जिम्मा नहीं है वह तो आगे की तैयारियों में खुद को झोंके हुए है। उसका हौसला परीक्षा के लिए मिली तारीख पर तारीख से पहले ही टूटा है। आज हम बच्चों को घर से बाहर भेजने तक से सब सहमे हैं, लेकिन जिंदगी थमी नहीं है। जीवन के अन्य कामों की भांति सुरक्षित, व्यवस्थित माहौल में परीक्षा भी उतनी ही जरूरी है। अभी स्वजन को छात्रों की काउंसलिंग के लिए परामर्श लेना पड़ रहा है। सीबीएसई ने भी इसके लिए एक ‘दोस्त फार लाइफ’ की जरूरत को समझा है। यह सब क्यों करना पड़ा ताकि जो प्रतिकूल माहौल इस उम्र में बच्चे को मिल रहा है उससे महफूज रख सकें।

अब बात अभिभावकों से इतर बाकी वर्ग की करते हैं जो परीक्षाओं को लेकर कयासबाजी कर रहे हैं। राजनीतिक तबका भी तरह-तरह से परीक्षा कराने के तरीके सुझा रहा है। इसी में एक वर्ग ऐसा भी है जो मांग कर रहा है परीक्षा हो भी तो कुछ ही विषयों की। क्या वो जानते और समझते हैं कि अभी प्रमोट होकर 12वीं का र्सिटफिकेट तो मिल जाएगा, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए कितना बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। नजीर के तौर अभी तो छात्र के हाथ में 92 फीसद का र्सिटफिकेट रहेगा। लेकिन क्या जब वो कहीं दाखिला लेने जाएगा, विशेषकर विदेश में तो क्या सिर्फ जिन विषयों की परीक्षा दी है उनसे अन्य विषयों का आकलन मान लिया जाएगा। अंग्रेजी, हिंदी की परीक्षा छोड़कर बाकी परीक्षा लेने की बात कहने वालों को भी सोचना चाहिए क्या इन विषयों का महत्व कम है। और जब बच्चे कुछ विषयों की परीक्षा देने के लिए बाहर निकल रहे हैं तो फिर सभी की क्यों नहीं? यह कहां का तर्क है?

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान (एनआइओएस) के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सीबी शर्मा कहते हैं कि इस वक्त किसी की सलाह लेने की जरूरत नहीं है। संवैधानिक तौर पर विशेषज्ञों की एक कमिटी गठित कर देनी चाहिए जो परीक्षा की योजना तैयार करके दे, जिसके आधार पर परीक्षा का आयोजन किया जा सके। यह कमिटी जिन राज्यों में संक्रमण के कारण ज्यादा स्थिति खराब है वहां के लिए एक अलग माडल बनाकर देगी। लेकिन जब सबकुछ तय ही राजनीतिक स्तर पर हो रहा है, तो छात्रों के भविष्य पर हर आदमी मनमुताबिक सलाह दे रहा है

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