आसमान छू रहे तेल के दाम ने बिगड़ा रसोई का बजट, जानिए क्‍या कहती है महिलाएं

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पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं तो अन्य खाद्य सामग्री की कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं।

एक तरफ कोरोना संक्रमण ने आमजन की आर्थिक स्थिति को बिगाड़ कर रख दिया है। वहीं दूसरी तरफ लगातार बढ़ रही महंगाई से लोग त्रस्त हैं। पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं तो अन्य खाद्य सामग्री की कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं।

 देहरादून : एक तरफ कोरोना संक्रमण ने आमजन की आर्थिक स्थिति को बिगाड़ कर रख दिया है। वहीं दूसरी तरफ लगातार बढ़ रही महंगाई से लोग त्रस्त हैं। पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं तो अन्य खाद्य सामग्री की कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं। 

विगत वर्ष लॉकडाउन में सरसों तेल के दाम 110 से 120 रुपये प्रति किलो थे, जो इस बार बढ़कर 185 से 195 रुपये तक पहुंच चुके हैं। इसी तरह रिफाइंड भी 180 से 185 रुपये तक बिक रहा है। जिसका सीधा असर रसोई के बजट पर पड़ रहा है। खाद्य तेल की कीमतों में पिछले दो महीनों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। बीते मार्च में जहां सरसों का तेल 155 से 160 रुपये किलो मिल रहा था, वहीं अब इसमें 30 से 35 रुपये तक बढ़ गए हैं।

द होलसेल डीलर्स एसोसिएशन, आढ़त बाजार के महासचिव विनोद गोयल का कहना है कि सोयाबीन और अन्य तेल विदेश से आयात होता है, जो अंतरराष्ट्रीय दाम में तेजी आने से महंगा हो गया है। वहीं, भारत में बन रहे सरसों के तेल की सप्लाई कम होने से इसके दाम में उछाल आया है।

मूंग दाल भी 'गलने' को तैयार नहीं

कोरोनाकाल में इम्युनिटी मजबूत करने के लिए चिकित्सक प्रोटीनयुक्त मूंग दाल को बेहतर विकल्प मान रहे हैं, इसलिए बीते तीन से चार महीने में इसकी मांग भी बढ़ी है। बीते मार्च में जहां मूंग दाल फुटकर में 100 से 105 रुपये प्रतिकिलो तक बिक रही थी, वहीं अब 120 से 125 रुपये प्रतिकिलो तक पहुंंच गई है।

बोलीं महिलाएं 

कैनाल रोड निवासी सोनिया श्रीवास्‍तव ने बताया कि रोजमर्रा की कोई भी चीज महंगी होने से उसका असर रसोई पर पड़ता है। गैस के दाम लगातार बढऩे और अब तेल व दाल ने पूरी रसोई का बजट बिगाड़ दिया है। 

 गोविंद नगर सहस्रधारा रोड निवासी विजया बिष्‍ट की मानें तो  सरकार को जमाखोरी पर रोक लगानी चाहिए। जमाखोरी से ही महंगाई में इजाफा हो रहा है। इस समय गैस, दाल, तेल के दाम बढऩे से खासतौर पर मध्यमवर्गीय परिवार की गृहणियों को घर चलाना मुश्किल हो रहा है।

कारगी निवासी विद्या देवी बताती हैं कि कोरोनाकाल में खाद्य पदार्थों के दाम बढऩे से मध्य वर्गीय व गरीब परिवारों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाने के भी लाले पड़ गए हैं। पहले तो लोग कहते थे कि मेहनत मजदूरी कर दाल रोटी का जुगाड़ कर लेंगे, लेकिन अब तो इस कहावत से दाल शब्द ही गायब हो गया है।

पटेलनगर निवासी अनु रावत का कहना है कि खाद्य तेल के साथ दाल व रसोई गैस भी काफी महंगी होती जा रही है। कोरोनाकाल में बीते साल की तरह इस बार भी हर चीज के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। इससे रसोई का बजट बिगड़ गया है। सरकार को महंगाई काबू करने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए।

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