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खीजान नदी की निर्मल धारा बहती थी।
अररिया के फारबिसगंज से कुरसेला तक जाने वाली स्टेट हाइवे के समांतर सरसी के आगे से मीरगंज तक कभी लखीजान नदी की निर्मल धारा बहती थी। चौड़ा पाट स्वच्छ पानी के चलते यह नदी एक बड़े परिक्षेत्र के लोगों की जीवन धारा हुआ करती थी
पूर्णिया( बिहार )अररिया के फारबिसगंज से कुरसेला तक जाने वाली स्टेट हाइवे के समांतर सरसी के आगे से मीरगंज तक कभी लखीजान नदी की निर्मल धारा बहती थी। चौड़ा पाट, स्वच्छ पानी के चलते यह नदी एक बड़े परिक्षेत्र के लोगों की जीवन धारा हुआ करती थी। यह नदी कहने भर को अब जीवित है। धारा कुंद हो चुकी है और पेटी सिमट कर नाले का रुप ले चुका है। कहीं-कहीं इसका अस्तित्व मिट चुका है और नदी की कोख में खेती हो रही है। यह बानगी भर है। प्रमंडल में लिबरी, कारी कोसी, कमला, भसना, कुंडी, चंपा जैसी दो दर्जन नदियों का अस्तित्व पर पूरी तरह मिट चुका है। कभी इन नदियों में सालोभर पानी की कल-कल धारा बहती थी। बाढ़ के दौरान इस परिक्षेत्र में कोसी, महानंदा, परमान, कनकई, बकरा, मेची आदि नदियों में उफान आने पर त्रासदी से बचाव में यह नदियां संजीवनी साबित होती थी। इन नदियों से बाढ़ का पानी सहजता से आगे निकल जाती थी। इन छाेटी नदियों का लगातार अस्तित्व समाप्त होने बाढ़ की तबाही बढ़ता जा रहा है। छोटी नदियों की कब्र से तबाही की धारा फूट रही है।
कई नदियों के नाम
पूर्णिया के भउआ परवल के रास्ते कुरसेला में गंगा से संगम करने वाली हिरण्यधार का कोई अब अस्तित्व नहीं है. युवा वर्ग के जेहन से यह नाम भी विस्मृत होने लगा है. इसी तरह गुलेला धार, दुद्धिधार आदि समेत कई छोटी नदियां आज अस्तित्व विहीन हो गई है. इसे बाढ़ से बढ़ती तबाही का अहम कारण माना जाता है. इसी तरह ब्रह्म ज्ञानी चौर, धमदाहा चौर,
रघुवंशनगर चौर, बरेढा चौर, विशुनपुर चौर, शासनबंध चौर, मुट्ठा चौर, मटबारा चौर, रमजानी चौर, दुधीनगर धार, खुरहरी धार, कजरा धार, सुरसर धार जैसी कई छोटी नदियों का अस्तित्व अब बुजुर्गों के जेहन में ही शेष है।
ग्रमीण अर्थव्यवस्था का आधार भी थी छोटी नदियां
बनमनखी के 85 वर्षीय रामानंद चौधरी बताते हैं कि उनके गांव से गुजरने वाली छोटी नदी भी अब विलुप्त हो चुकी है। इस नदी के पानी से वे लोग न केवल फसलों की सिचाई करते थे बल्कि पशुपालकों के लिए यह संजीवनी साबित होता था। नदी में मछली पकड़ कई लोग अब जीविका चलाते थे। धीरे धीरे अतिक्रमण के कारण धारा कुंद हो गई और और नदी पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है।
छोटी नदियां सदा से बाढ़ से बचाव का प्राकृतिक स्त्रोत हुआ करती थी। हिमालय की तलहटी से सटे इस परिक्षेत्र में बाढ़ की स्थिति नई नहीं है, लेकिन तबाही का मंजर गहराया है। इसका अहम कारण लगातार छोटी नदियों का अस्तित्वहीन होना है। अगर शासन-प्रशासन के साथ आम लोगों की तंद्रा अब भी भंग नहीं हुई तो आने वाले समय में तमाम उपायों के बावजूद बाढ़ का कहर बढ़ता ही जाएगा। -