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RGA news
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि छह जून को अपरा या अचला एकादशी है।
अचला एकादशी छ जून 2021 को अचला एकादशी है। इस व्रत के करने वालों श्रद्धालु पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। यह व्रत काफी महत्व का है। हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। व्रत करने पर पापों से मुक्ति मिलती है।
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि छह जून को अपरा या अचला एकादशी व्रत किया जाएगा। इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा किया जाता है। सृष्टि के पालनहार की कृपा से अपार धन संपत्ति की प्राप्ति होती है। पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम में भक्त श्रीहरि नारायण की पूजा करते हैं। व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को किया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी पर व्रत रखने से भक्तों को अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह मकर संक्रांति पर गंगा स्नान , शिवरात्रि के समय काशी में स्नान , तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान, गंगा तट पर पितरों को पिंडदान से जो पुण्य प्राप्त होता है वही अपरा एकादशी का व्रत करने से मिलता है।
विद्वानों के अनुसार अपरा एकादशी व्रत के नियमों का पालन व्रतियों को दशमी तिथि से करना शुरू कर देना चाहिए। एकादशी के दिन सुबह ब्रह्मकाल में उठकर, नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नान करें। अब भगवान विष्णु के सामने व्रत का संकल्प लें और उनकी अराधना करें। उन्हें चंदन, तुलसी पत्ता, गंगाजल एवं मौसमी फलों का चढ़ावा लगाएं। साथ ही विष्णुसहस्त्रानम् का पाठ करने का विधान है इससे सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है।
अचला एकादशी की पौराणिक कथा
भागलपुर के पंडित बाबा अंजनी शर्मा कहते हैं कि पुराने समय में महीध्वज नामक एक राजा थे। जिन्हें बेहद धर्मात्मा माना जाता था। लेकिन उनके छोटे भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन रात के समय उस पापी ने अपने बड़े भाई की हत्या करके उसके मृत शरीर को किसी जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।
एक दिन वहां से ऋषि धौम्य गुजर रहे थे, उस प्रेत को देखकर अपने तपोबल से उन्होंने उसका अतीत जान लिया। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने हेतु ऋषि ने अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया।
इस बार यह एकादशी 6 जून को है। इस एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी, अचला एकादशी, अपरा एकादशी और भद्रकाली एकादशी नाम से भी जाना जाता है।