मेरठ में कोरोना का कहर : अर्धांगिनी ने दी मुखाग्नि तो मानो श्मशान रो पड़ा, पुरोहित की भी आंखें हुईं नम

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RGA न्यूज़

मेरठ में ससुर की चिता ठंडी भी नहीं हुई, चार दिन बाद ही पति भी चल बसे।

मेरठ में महिला चिकित्सक पूजा के परिवार को कोरोना एक हफ्ते में उजाड़ दिया। संक्रमण ने पहले ससुर की जान ली उसके चार दिन बाद ही पति ने भी दम तोड़ दिया। जिस पति के साथ दो साल पहले ही सात फेरे लिए थेमोक्षधाम में उसे खुद मुखाग्नि देनी पड़ी। 

मेरठ। कोरोना से मचे हाहाकार का कहर अब थमता सा जरूर नजर आ रहा है लेकिन इससे कुछ परिवारों को मिले जख्म ताउम्र नहीं भर सकेंगे। ऐसी ही दुखद कहानी है महिला चिकित्सक पूजा की। एक सप्ताह के अंदर ही महिला चिकित्सक के परिवार को कोरोना ने उजाड़ दिया। संक्रमण ने पहले ससुर की जान ली, उसके चार दिन बाद ही पति ने भी दम तोड़ दिया। जिस पति के साथ दो साल पहले ही सात फेरे लिए थे, शुक्रवार को मोक्षधाम में उसे खुद मुखाग्नि देनी पड़ी।

पहले था हल्‍का बुखार

मूलरूप से ब्रह्मपुरी स्थित शास्त्री की कोठी निवासी राकेश रस्तोगी हिमाचल प्रदेश स्थित नांगल डैम से सेवानिवृत्त होने के बाद बेटे और बहू के साथ कंकरखेड़ा के सैनिक विहार में रहने लगे थे। उनके पुत्र मयंक रस्तोगी रोहटा रोड के ग्राम खड़ौली स्थित प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे, जबकि बहू पूजा सरधना सीएचसी में चिकित्सक हैं। मयंक रस्तोगी ग्राम में बीएलओ का भी कार्यभार देख रहे थे। 

उपचार के दौरान मौत

जांच रिपोर्ट पाजिटिव आने पर चिकित्सक से परामर्श के बाद दंपती ने घर पर ही उपचार शुरू कर दिया था। इसी बीच राकेश रस्तोगी भी संक्रमित हो गए। परिवार के तीनों लोगों के संक्रमित होने के बाद भी महिला ने हिम्मत नहीं हारी। इसी बीच पिता-पुत्र की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। महिला ने अपने भाई के साथ मिलकर ससुर को मेडिकल कालेज व पति को सुभारती में भर्ती करा दिया। एक जून को उपचार के दौरान राकेश की मौत हो गई। ससुर को मुखाग्नि देने के बाद संक्रमित हालत में पूजा को पति की चिंता सताने लगी लेकिन चार दिन बाद पति मयंक भी जिंदगी की जंग हार गए। बेबसी में ससुर के बाद पूजा ने पति को भी मुखाग्नि दी

भर आईं पुरोहित की भी आंखें

चार दिन पहले चिकित्सक पूजा ने ससुर को मुखाग्नि दी थी। उसके बाद शुक्रवार को पति को मुखाग्नि देने मोक्षधाम पहुंचीं। मोक्षधाम में यह दारुण दृश्य देख मयंक का दाह संस्कार करा रहे पुरोहित की आंखें भी छलक पड़ीं।

चूडियां तोड़ते हुए हाथ में घुसा कांच

अंतिम समय में परिवार की अन्य महिलाएं मयंक की चिता पर पूजा से चूडिय़ां तुड़वा रही थीं। उसी दौरान कांच का टुकड़ा पूजा के हाथ में घुस गया। आनन-फानन में हाथ पर कपड़ा बांधकर खून का बहाव रोका गया। इसके बाद मयंक को अंतिम विदाई दी।

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