दिनभर में 20 घंटे आक्सीजन देता है वट वृक्ष, जानिए इस पेड़ के बारे में

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RGA न्यूज़

देहरादून के श्री झंडे जी के पास एसजीआरआर स्‍कूल के पास लगा बरगद का पेड़।

संसार को घनी छाया और स्वस्थ काया देने वाला वट वृक्ष प्राकृतिक आक्सीजन प्लांट है। अन्य पेड़ों की तुलना में यह चार से पांच गुना अधिक आक्सीजन प्रदान करता है। यह वृक्ष अपने आसपास 100 से 500 मीटर तक पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बना देता है।

 देहरादून संसार को घनी छाया और स्वस्थ काया देने वाला वट वृक्ष (बरगद) प्राकृतिक 'आक्सीजन प्लांट' है। अन्य पेड़ों की तुलना में यह चार से पांच गुना अधिक आक्सीजन प्रदान करता है। यही कारण है कि यह वृक्ष अपने आसपास 100 से 500 मीटर तक पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बना देता है। 

वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के वनस्पति विज्ञानी डा. अनूप चंद्रा बताते हैं कि इसका वानस्पतिक नाम फाइकस बेंगालेंसिस है। वह बताते हैं कि वट वृक्ष प्रतिदिन करीब 20 घंटे तक आक्सीजन उत्सर्जन करता है और महज चार घंटे कार्बन डाई आक्साइड छोड़ता है। इन्हीं गुणों के कारण पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता के संतुलन में भी वट वृक्ष श्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही धार्मिक महत्व होने के कारण लोग इसे काटते नहीं हैं। ऐसे में वट वृक्ष की आयु और भी लंबी हो जाती है।

जीवों का 'बंगला' है वट

उत्तराखंड वन विभाग जंगल के खाली स्थानों पर वट, पीपल, गूलर आदि के पौधे लगाने पर जोर दे रहा है। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही ये वृक्ष वन्यजीवों को भी आसरा प्रदान करते हैं। पूर्ण विकसित वट पर पक्षियों की कई प्रजातियां डेरा डालती हैं। बंदर, लंगूर, गिलहरी आदि जीव भी इसमें बसेरा करते हैं। इसकी शाखाएं और विशाल रूप वन्यजीवों के लिए किसी आलीशान घर से कम नहीं। इस पेड़ की घनी छांव भी कई वन्यजीवों की आरामगाह बन जाती है। 

राजीव धीमान (प्रभागीय वनाधिकारी) का कहना है कि देहरादून में वन विभाग की ओर से कई सालों से पौधे लगाने का कार्य किया जा रहा है। इसमें वट और पीपल के पेड़ भी शामिल हैं। शहर से सटे गढ़ी कैंट, सहस्रधारा रोड, राजपुर व आशारोड़ी क्षेत्र में बड़ी संख्या में वट वृक्ष लगाए गए हैं। यह शहर में नहीं लगाए जा सकते। हालांकि, यदि एमडीडीए या नगर निगम अनुमति दे तो तमाम पार्कों में वट वृक्ष लगाए जा सकते हैं।

खुले स्थान में रोपें वट के पौधे

वट वृक्ष की शाखाएं और जड़ें दूर तक फैल जाती हैं। ऐसे में इसे भवनों आदि के पास या सड़क किनारे नहीं लगाया जा सकता। इसके लिए काफी खुला स्थान चाहिए। वैसे तो यह वृक्ष बीज से ही विकसित हो जाता है, लेकिन वन विभाग इसकी छोटी शाखाओं को रोपता है। निजी नर्सरियों में वट के पौधे आसानी से उपलब्ध हैं। किसी खुले स्थान पर दो फीट गहरा गड्ढा खोदकर पौधा लगाएं और गड्ढे को मिट्टी के साथ गोबर की खाद मिलाकर भर दें। करीब एक सप्ताह तक पौधे को थोड़ा-थोड़ा पानी रोज दें।

अखंड सौभाग्य का वरदान वट 

उत्तराखंड विद्वत सभा के प्रवक्ता आचार्य विजेंद्र प्रसाद ममगाईं के अनुसार वट सावित्री व्रत अखंड सौभाग्य के लिए रखा जाता है। अखंड पतिव्रता और दृढ़ प्रतिज्ञा के प्रभाव से सावित्री यमद्वार पर गए पति सत्यवान को सदेह (सशरीर) लौटा लाई थीं। यमराज ने सावित्री को 100 पुत्र होने का वचन देकर सत्यवान को सजीव कर दिया था। वंश वृद्धि के लिए वट की पूजा भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में की जाती है। वट की जड़ को ब्रह्मा, तने को विष्णु और पत्तियों को शिव माना जाता है।

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