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इसी के चलते न्यायिक कार्य न कर विरोध का खाका खींचा गया है
तय हुआ कि नौ और दस जून को अधिवक्ता न्यायिक कार्य नहीं करेंगे। इसके पीछे जो वजह बतायी गई वह वाकई हतप्रभ करने वाली थी। दरअसल वकीलों का आरोप था कि अधिकारी विधिक प्रक्रिया से इतर जाकर अधिवक्ता विरोधी कार्य कर रहे हैं
कानपुर पुलिस व प्रशासन के खिलाफ वकीलों का विरोध अक्सर होता है। ऐसे में बुधवार व गुरुवार को होने वाला न्यायिक कार्य विरोध सामान्य सी बात है, लेकिन ऐसा पहली बार है जब वकीलों ने पुलिस और प्रशासन से इतर न्यायिक अधिकारियों और उनके विधिक कार्य प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा करते हुए न्यायिक कार्य विरोध का झंडा ऊंचा कर दिया, जबकि यह शाश्वत सत्य है कि जब भी कभी पुलिस या प्रशासन से वकीलों ने मोर्चा लिया तो ज्यूडिशियरी के हस्तक्षेप के आगे पुलिस और प्रशासन को पीछे हटना पड़ा।
बार और लॉयर्स एसोसिएशन ने मंगलवार को संयुक्त बैठक की। तय हुआ कि नौ और दस जून को अधिवक्ता न्यायिक कार्य नहीं करेंगे। इसके पीछे जो वजह बतायी गई वह वाकई हतप्रभ करने वाली थी। दरअसल वकीलों का आरोप था कि अधिकारी विधिक प्रक्रिया से इतर जाकर अधिवक्ता विरोधी कार्य कर रहे हैं। अधिवक्ताओं के खिलाफ विद्वेष पूर्ण भावना से काम किया जा रहा है। वकीलों के इस आरोप के पीछे पिछले दिनों घटी कुछ घटनाएं हैं जिन पर वकीलों के मन की नहीं हुई। इसमें ताजा मामला नारायण सिंह भदौरिया और अधिवक्ता गोपाल शरण सिंह चौहान का है। अधिवक्ता चाहते थे कि रिमांड के साथ ही उनको जमानत मिल जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पुलिस ने देर शाम आरोपितों को कोर्ट के सामने पेश किया। फिर सोमवार को जमानत पर सुनवाई हुई तो वकीलों को उम्मीद थी कि निचली कोर्ट से ही जमानत हो जाएगी। उन्हेंं एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। काफी दबाव और प्रयास के बाद मंगलवार को दोनों की रिहाई संभव हो सकी। ऐसे में अब अधिवक्ताओं को लग रहा है कि उनकी अनदेखी की गई। इसी के चलते न्यायिक कार्य न कर विरोध का खाका खींचा गया है।