हाई कोर्ट ने युवती से 4 साल तक दुष्कर्म करने व धर्मांतरण का दबाव बनाने के आरोपित की जमानत की मंजूर

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवती से दुष्कर्म और जबरन धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने के आरोपी को जमानत दे दी है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता याची के सभी कार्यों में मर्जी से सहभागी रही है। इससे प्रतीत होता है कि वह अपनी इच्छा से साथ रह रही थी और यहां तक कि दूसरे व्यक्ति के साथ शादी होने के बाद भी उसने आरोपित से रिश्ता बनाए रखा

प्रयागराज, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने युवती से चार साल तक दुष्कर्म करने और धर्म परिवर्तन का दबाव डालने के आरोपित की जमानत मंजूर कर ली है। न्यायालय ने कहा कि पीड़िता को चार साल तक आरोपित के साथ रहने के बाद उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी अध्यादेश लागू होते ही अपने अधिकारों की जानकारी हो गई। यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने महोबा निवासी मुन्ना खान की जमानत अर्जी पर दिया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता याची के सभी कार्यों में मर्जी से सक्रिय व सहभागी रही है। इससे प्रतीत होता है कि वह अपनी इच्छा से साथ रह रही थी और यहां तक कि दूसरे व्यक्ति के साथ शादी होने के बाद भी उसने आरोपित से रिश्ता बनाए रखा। याची मुन्ना खान के खिलाफ पीड़िता ने चार मार्च, 2021 को महोबा कोतवाली में आइपीसी की धाराओं के अलावा धर्मांतरण विरोधी अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया गया है कि मुन्ना खान ने अश्लील तस्वीरें और वीडियो बना लिए थे, जिनके आधार पर पीड़िता को ब्लैकमेल कर दुष्कर्म करता रहा।

उत्तर प्रदेश में मतांतरण संबंधी अध्यादेश नवंबर, 2020 में लाया गया मगर सरकार ने इसे मार्च 2021 में गजट में प्रकाशित किया। चार मार्च, 2021 को राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह प्रभावी हुआ। आठ दिसंबर, 2020 को पीड़िता ने दीपक कुशवाहा नाम के व्यक्ति से शादी की और दिल्ली चली गई। पुलिस व मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 के बयान में पीड़िता ने कहा है कि 18 फरवरी, 2021 को वह महोबा वापस लौटी और अपनी बहन के साथ मुन्ना खान के यहां उरई में दो मार्च तक रही। याची मुन्ना खान उस पर मत परिवर्तन के लिए दबाव डालने लगा।

हाई कोर्ट ने कहा कि मेडिकल जांच से स्पष्ट है कि पीड़िता की आयु 19 वर्ष है। वह उसी इलाके में रहती है जहां आरोपित रहता है। आरोपित से पुलिस को जांच में कोई फोटोग्राफ या वीडियो नहीं मिला है। पीड़िता ने बयान में भी कहा है कि वह पिछले चार वर्षों से आरोपित के साथ रिश्ते में थी। ऐसे में अध्यादेश की धारा 12 इस प्रकरण में लागू नहीं होती। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जमानत आदेश में की गई टिप्पणियों का ट्रायल कोर्ट के फैसले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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