नियमों को दरकिनार कर कानपुर पुलिस ने नष्ट कर दी भाजयुमो नेता की हिस्ट्रीशीट, अब उठ रहे सवाल

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RGA news

सामने आई कानपुर पुलिस की मनमानी ।

कानपुर में भाजयुमो नेता पर ड्रग्स माफिया को फर्जी लेटर से लालबत्ती दिलाने का आरोप लगा था। इसके बादवजूद सरकारी आदेश की आड़ में नियमों को ताख पर रखकर पुलिस ने हिस्ट्रीशीट नष्ट करने की कार्रवाई की थी। कोर्ट में मामले ट्रायल में होने के बाद सवाल उठे थे।

कानपुर, हिस्ट्रीशीटर को पुलिस अभिरक्षा से फरार कराने के बाद भी कार्रवाई से बचे भाजयुमो नेता संदीप ठाकुर पर पुलिस हमेशा मेहरबान रही। भाजयुमो नेता से जुड़ा एक और पुराना मामला सामने आया है, जिसमें पुलिस ने सभी नियम कायदों को ताख पर रखकर डेढ़ साल पहले उसकी हिस्ट्रीशीट बंद करा दी और उससे जुड़े सारे दस्तावेज नष्ट कर दिए थे। संदीप के खिलाफ कोर्ट में हत्या जैसा मुकदमा विचाराधीन होने के बावजूद पुलिस का यह करम अब सवालों के घेरे में है। पुलिस आयुक्त असीम अरुण के मुताबिक मामले में जांच कराई जा रही है।

अब नहीं थाने में कोई रिकॉर्ड

भाजयुमो नेता के खिलाफ थाना बर्रा में मई 2008 में ए1299 नंबर से हिस्ट्रीशीट खुली थी। चूंकि हिस्ट्रीशीट नष्ट होने के चलते कोई रिकार्ड अब थाने में नहीं है, लेकिन दो दिन पहले शासन में संदीप के खिलाफ जो शिकायत की गई है, उसमें उसके खिलाफ लगभग 40 मुकदमे दर्ज होने का जिक्र है। सबसे गंभीर मुकदमा वर्ष 2002 में डीबीएस कालेज के छात्र संघ चुनाव के दौरान टोनी यादव नाम के एक युवक की गोली मारकर हत्या करने के आरोप में दर्ज है। इस प्रकरण में मुकदमा न्यायालय में विचाराधीन है और जल्द ही इसमें कोई फैसला भी आ सकता है।

फर्जी लाल बत्ती मामले में चर्चा में आए संदीप

वर्ष 2008 में संदीप उस वक्त भी चर्चा में आए थे, जब वस्त्र मंत्रालय का सदस्य बताकर गाड़ी में लालबत्ती लगाकर घूमने लगे। आरोप है कि संदीप ने ही ड्रग्स माफिया बृजेंद्र सोनकर को फर्जी तरीके से लेटर जारी करके लालबत्ती दिलाई थी। हालांकि शिकायत के बाद सभी की लालबत्ती उतार दी गई और मुकदमा भी दर्ज हुआ था। इस मामले में बिहार के किसी गैंग का नाम सामने आया था, जो कि फर्जी तरीके से लालबत्ती बांट रहा था। इस एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में तत्कालीन एसएसपी ने नवंबर 2019 में संदीप की हिस्ट्रीशीट बंद करने का आदेश दे दिया। यह खेल पुलिस ने सरकारी आदेश का दावा करते हुए किया।

सरकारी आदेश की आड़ में कार्रवाई

सरकार ने निष्क्रिय अपराधियों की हिस्ट्रीशीट बंद करने को कहा था, जिसके मुताबिक केवल निगरानी बंद होनी थी, लेकिन आदेश की आड़ में अफसरों ने कई अपराधियों के रिकार्ड ही समाप्त करा दिए। अमूमन ऐसे अपराधी जो अपराध करना बंद कर देते हैं, उनके खिलाफ हिस्ट्रीशीट खत्म होने का मतलब निगरानी बंद करना होता है, मगर संदीप के प्रकरण में पुलिस ने हिस्ट्रीशीट को बंद ही नहीं किया, बल्कि पूरे रिकार्ड को नष्ट कर दिया।

हिस्ट्रीशीट नष्ट करना नहीं है आसान

पुलिस रेगुलेशन के मुताबिक सामान्य परिस्थितियों में हिस्ट्रीशीट बंद नहीं की जा सकती। अगर कोई अपराधी अपराध का रास्ता छोड़ दे तो हिस्ट्रीशीट में यह तथ्य अंकित करके केवल निगरानी बंद कर दी जानी चाहिए। कहा गया है कि हिस्ट्रीशीट सूचनाओं का एक अभिलेख है, इसलिए उसे नष्ट करने का विचार नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि इसके साथ ही यह भी लिखा हुआ कि अपराधी की प्रमाणित मृत्यु के बाद हिस्ट्रीशीट बंद या नष्ट की जा सकती है। इसके अलावा पुलिस कप्तान अगर यह राय रखता है कि इसका आगे बनाए रखना महत्वहीन है तो इस स्थिति में भी हिस्ट्रीशीट नष्ट की जा सकती है। कप्तान यह राय तभी बना सकता है जब हिस्ट्रीशीटर ने अपराध से नाता तोड़ लिया हो।

हिस्ट्रीशीट बंद करने में मनमानी नहीं कर सकती पुलिस

वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र वर्मा का कहना है कि पुलिस मनमाने तरीके से हिस्ट्रीशीट बंद नहीं कर सकती। उनके मुताबिक जांच होनी चाहिए की शासन की ओर से क्या निर्देश आए थे और क्या हुआ। नियमानुसार अगर किसी अपराधी पर दर्ज सभी मामले छूट गए हों तो ही पुलिस हाईकोर्ट के संज्ञान में डालकर हिस्ट्रीशीट को बंद कर सकती है।

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