आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों के क्रम में पार्टी को मजबूत करने में जुटी थींं नेता प्रतिपक्ष डाॅॅ. इंदिरा हृदयेश, जानिए उनका राजनीतिक सफर

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इंदिरा हृदयेश, नेता प्रतिपक्ष, उत्तराखंड। 

उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता डा इंदिरा हृदयेश का रविवार सुबह नई दिल्ली में निधन हो गया। उनकी उम्र 80 वर्ष थी। वह कांग्रेस की शनिवार को हुई बैठक में शामिल होने के दिल्ली गई थीं

 देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता डा इंदिरा हृदयेश का रविवार सुबह नई दिल्ली में निधन हो गया। अविभाजित उत्तर प्रदेश में वह चार बार विधान परिषद की सदस्य रहीं। नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड के अलग राज्य बनने पर 30 सदस्यीय अंतरिम विधानसभा का गठन किया गया था, इसमें भी इंदिरा हृदयेश सदस्य थीं।

वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में आने पर नारायण दत्त तिवारी सरकार में उन्हें नंबर दो की हैसियत हासिल थी। तिवारी सरकार में उन्होंने लोक निर्माण विभाग, सूचना आदि विभागों का दायित्व संभाला। वर्ष 2012 में कांग्रेस के फिर सत्ता में आने पर इंदिरा हृदयेश विजय बहुगुणा और फिर हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहीं। इसके बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता से बाहर हो जाने पर उन्होंने नेता प्रतिपक्ष का पद संभाला।

वरिष्ठ राजनेता और उत्तराखंड में नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश  का सियासी सफर

-जन्म :- सात अप्रैल 1941

-1974 :- पहली बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए निर्वाचित

-1986-से 2000 तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य रहीं

-2000 :- उत्तराखंड की अंतरिम विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष

-2002 :-हल्द्वानी से विधायक चुनी गईं। पहली कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं

-2012 :- कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री

-2017 :- विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष

मुख्यमंत्री ने जताया गहरा दुख

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने वरिष्ठ राजनेता और उत्तराखंड में नेता प्रतिपक्ष डा इंदिरा हृदयेश के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत की आत्मा की शांति व शोक संतप्त स्वजन को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इंदिरा हृदयेश ने पिछले चार दशक से उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाई। वे एक कुशल प्रशासक, वरिष्ठ राजनेता व संसदीय ज्ञान की जानकार थीं। वे अपनी बात को सदैव बेबाकी से सभी के समक्ष रखती थीं।

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