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RGA न्यूज उत्तर प्रदेश
प्रवीण उपाध्याय: प्रधान संपादक
केंद्रीय कैबिनेट ने गन्ने की कीमत 275 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दी है। इस सत्र यानी अक्टूबर से शुरू होने वाले पेराई सत्र के लिए चीनी मिलें किसानों को गन्ने का भुगतान 275 रुपये क्विंटल ज्यादा करेंगी। सीधे गांव और किसान से जुड़ा एक और एलान नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर न्यू इंडिया बनाने की बात करते हैं, इससे कई बार यह आशंका बड़ी हो जाती है कि क्या इस सरकार की प्राथमिकता में भारत के गांव नहीं हैं।
सरकार की प्रमुख योजनाओं की बात करें तो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया आदि से लगभग साबित होने लगता है कि मोदी सरकार की प्राथमिकता में शहरी वाला इंडिया तो है, लेकिन गांव वाला भारत नहीं है।शायद यही सोच और आधार रही होगी, जिसने कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को उकसाया होगा कि नरेंद्र मोदी की सरकार का नामकरण सूटबूट की सरकार कर दिया जाए, लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार का सबसे बड़ा लक्ष्य किसानों की आमदनी दोगुना करना है तो ज्यादातर लोगों का यही मानना था कि ऐसा संभव नहीं है। यह सिर्फ जुमला साबित होने वाला है, लेकिन इस बात पर चर्चा कम ही हुई कि नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने इतना बड़ा खतरा मोल लिया है, क्योंकि गरीबी हटाओ तो जुमले के तौर पर इस्तेमाल करके जनता को समझाया जा सकता है कि इतने गरीब हमने कम कर दिए, लेकिन किसानों की आमदनी दोगुना करने का लक्ष्य 2022 में आंकड़े स्पष्ट तौर पर बता रहे होंगे कि किसानों की आमदनी कितनी बढ़ी।
अभी मोदी सरकार ने कई उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत का डेढ़ गुना करके स्पष्ट कर दिया है, अपने लक्ष्य को लेकर सकार कितनी गंभीर है, क्योंकि इस समय इस तरह से न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा देने का मतलब है कि 2019 के चुनावों के ठीक पहले बढ़ती महंगाई को और बढ़ने का आधार मिल जाएगा। किसान को इस न्यूनतम समर्थन मूल्य का कितना फायदा मिलेगा, इस पर बहस होगी, लेकिन देश में महंगाई बढ़ेगी और खासकर मध्यम वर्ग पर इसकी तगड़ी दिखाई पड़ने वाली चोट पड़ेगी। फिर नरेंद्र मोदी ने इतना बड़ा खतरा क्यों लिया है। उस पर सभी कृषि विशेषज्ञ और किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले किसान नेता एक सुर में कह रहे हैं कि लागत को सही तरीके से सरकार ने नहीं मापा है। यानी किसानों के बीच में पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर खराब संदेश भेजा जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया मौद्रिक नीति में बताए गए पांच सबसे बड़े खतरों में से एक न्यूनतम समर्थन मूल्य का बढ़ना है। इसका सीधा सा मतलब यह भी माना जा सकता है कि एक अगस्त की मौद्रिक नीति में रिजर्व बैंक फिर से दरें बढ़ा दे।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, कमजोर रुपया पहले से ही सरकार के लिए मुश्किल बना हुआ है। इसके बावजूद नरेंद्र मोदी ने न्यूनतम समर्थन मूल्य अभी तक के तय पैमाने पर लागत का डेढ़ गुना करने का फैसला किया है तो यह देश की तरक्की के लिए दूरगामी सोच के साथ राजनीतिक तौर पर एक बड़ा वोटबैंक तैयार करने की रणनीति के तौर पर मैं देखता हूं। खरीफ सत्र के लिए न्यूनतम समर्थ मूल्य अभी के 4 चार प्रतिशत से लेकर 52 प्रतिशत तक बढ़ा है। खासकर ऐसे समय में जब देश की सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर 2019 में नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोक देना चाहती हैं और उत्तर प्रदेश में उन्होंने आसानी से ऐसा करके दिखा भी दिया है।1इसीलिए नरेंद्र मोदी विदेशी निवेश को आकर्षित करने वाले क्षेत्रों के लिए मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसी योजनाएं लाते हैं, लेकिन देश की मजबूती के लिए हर गांव तक बिजली पहुंचाने के बाद अब हर घर तक बिजली पहुंचाने की योजना पर काम कर रहे हैं।
इससे साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे से जानते हैं कि अगर गांव-किसान विकास में पीछे छूटा तो देश का भला नहीं होगा और तरक्की की रफ्तार 10 प्रतिशत ले जाने का भारत का सपना कभी नहीं पूरा होगा। साथ ही यह भी तय है कि विकास में पीछे छूटे गांव-किसान को भावुक नारों से अपने पाले में लाना विपक्षी एकजुटता के लिए ज्यादा आसान होगा। इसीलिए महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना की लाख कमियों के बावूजद इसे बंद नहीं किया गया, बल्कि उसमें सुधार करके उसका लाभ गांव-किसान को देने की कोशिश हो रही है। मोदी सरकार की योजनाओं ने थोड़ा बहुत ही सही पर गांव-किसान को यह अहसास दिलाना शुरू कर दिया है कि दिल्ली में बैठी सरकार उनके लिए सोच रही है और कर भी रही है। अब दो तरह की आशंकाए और सामने आ रही हैं। पहला-इससे सरकारी खजाने पर अतिरिक्त साढ़े तैंतीस हजार करोड़ का बोझ बढ़ेगा और दूसरा-वित्तीय घाटा बढ़ेगा।
सरकार को चिंता इस बात की करनी चाहिए कि कैसे बेचने की इच्छा रखने वाले हर किसान की उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी जा सके। अभी सिर्फ 7 प्रतिशत किसानों को ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिल पाता है और उनमें से ज्यादातर बड़े किसान हैं। अच्छी बात यह है कि छोटे किसानों का समूह अब सीधे तौर पर ई कारोबार और सुपरस्टोर के जरिये मध्यम वर्ग तक पहुंचने लगा है। इससे उसको सरकारी खरीद की तरफ जाने की जरूरत ही नहीं है। ज्यादा से ज्यादा किसानों को सरकारी खरीद का लाभ मिल सके, इसके लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना को दुरुस्त करने की जरूरत है। गांव-किसान को मजबूत करने की मोदी सरकार की योजनाएं काम कर गईं तो 2019 का विपक्षी गठजोड़ के चुनाव जातीय समीकरण पर नहीं नरेंद्र मोदी के तैयार समीकरण गांव-किसान की मजबूती पर लड़ा जाएगा।