बहुत चौकाता है अलीगढ़ में पोखरों का राजनीतिक कनेक्शन 

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RGA न्यूज़

नगर निगम पोखरों को कब्‍जे में लेने का प्रयास कर रहा है लेकिन राजनीतिक दल उसमें अड़चन पैदा कर रहे।

शहर की पोखर अक्सर चर्चाओं में रहती हैं। इससे राजनीतिक दिग्गजों का संबंध गहरा होता जा रहा है। जब भी कुछ अचानक होता है तो उसके पीछे खादी के रंग ढंग दिखते हैैं। सुरेंद्र नगर की पोखर का मामला गर्माया हुआ है।

अलीगढ़, शहर की पोखर अक्सर चर्चाओं में रहती हैं। इससे राजनीतिक दिग्गजों का संबंध गहरा होता जा रहा है। जब भी कुछ अचानक होता है तो उसके पीछे खादी के रंग ढंग दिखते हैैं। सुरेंद्र नगर की पोखर का मामला गर्माया हुआ है। नगर निगम अपनी जगह बता रहा है, जबकि एक समाज के लोग अपना दावा कर रहे हैं। कुछ महीने पहले अन्य पोखरों पर निगम कब्जा ले रहा था, तब इस पोखर पर कोई बात नहीं हुई। अब निगम की सूची में पोखर का नाम जुड़ गया। इसके पीछे ट्रस्ट के लोग तो नेताओं का हाथ मान रहे हैं, जबकि निगम कागजात दिखा रहा है। जिसे समाज के लोग गलत जगह का बता रहे हैं। दर्द कुछ यूं उभरा है, जो काम पिछली सरकारों में नहीं हुआ वो इस सरकार में हो रहा है। खैर, जगह किसकी है, यह तो विवाद है। पर, नेताओं की भूमिका चर्चा में है।

कहीं गुटबाजी ही न रह जाए

कमल वाली पार्टी में इस समय गुटबाजी चरम पर है। ये हालात तब है जब चुनाव एकदम नजदीक है। ऐसे समय में एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। ताकि संगठन मजबूत रहे। लेकिन, यहा तो उलट है। पार्टी में एक-दूसरे को गिराने के प्रयासों में ही नेताजी जुटे हुए हैं। कोई किसी से कम नहीं, सब अपने-अपने अनुसार चाल चल रहे हैं। यही कारण रहा है कि सत्ता में होने के बाद भी माननीय हासिए पर रहे। अधिकारियों पर कभी इनका दबाव नहीं रहा। इसका खामियाजा पार्टी के कार्यकर्ताओं को उठाना पड़ रहा है। नेताजी की गुटबाजी के चलते कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो पा रहे हैं। चार साल बीत जाने के बाद भी सत्ता में हनक कैसी होती है यह पार्टी के पदाधिकारियों ने कभी नहीं जाना। यदि ऐसी ही स्थिति रही तो विधानसभा चुनाव तक कहीं गुटबाजी ही पार्टी में रह जाए, यह चिंता का विषय है।

अब तो ढक्कन तक खोज ले रहे हैं

जहरीली शराब के मामले में एक बात तो है, माफिया की जड़ें खोद डाली गईं। शराब माफिया का जितना साम्राज्य था वो ढहा दिया गया, यह होना भी चाहिए। मगर, सवाल यह उठता है कि जब कोई बड़ी घटना हो जाती हैं तभी आखिर अधिकारियों को सारे सूत्र क्यों मिलते हैं। जहरीली शराब से 100 से अधिक मौतें हुईं तो धड़ाधड़ छापेमारी की गई। मिथाइल-इथाइल, ड्रम, बोतलें, गत्ते तक ढूंढ लिए गए। टीम की तारीफ करनी होगी कि वह अब एक-एक ढक्कन तक खोज रही है। मगर, बड़ा सवाल है कि जब ये घटनाएं हो जाती हैं तब अधिकारी क्यों जड़ों तक पहुंचते हैं। ऐसा तो है नहीं कि माफिया ने एकाएक संपत्ति एकत्र कर ली। अवैध काम अचानक शुरू कर दिया। आखिर ये जांचें पहले क्यों नहीं की जाती हैं। यदि पहले से यह सब जांच होती और कार्रवाई होती रहती तो शायद जिले में इतनी मौतें न होतीं।

अपनी गर्दन बचाने के लिए...

जिले को जहरीली शराब ने दहला दिया। लेकिन, इस मामले में जिस प्रकार ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई, उससे शराब के पुराने कारोबारियों के तो हाथ पैर फूल गए हैं। तमाम ऐसे हैं जो इस कारोबार से तौबा करने की तैयारी में हैं। मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो आबकारी के लिए सारे कारोबारी मानों दुश्मन नजर आने लगे। शराब की दुकानों पर छापेमारी शुरू करा दी गई। कारोबार से जुड़े तमाम लोगों को पूछताछ के बहाने उठा लिया गया। पूछताछ के लिए उन्हेंं कई दिनों तक हिरासत में रखा गया। अब कारोबारियों का यह कहना है कि यही अधिकारी ठेके उठने के समय आगे-पीछे चक्ककर लगाते रहते हैं, आज अपनी गर्दन फंस रही है तो दूसरे को लपेटने की कोशिश कर रहे हैं। जिले के कुछ शराब कारोबारियों का तो यहां तक कहना है कि सरकार को जिले के आबकारी विभाग के अधिकारियों की भी संपत्ति की जांच करानी चाहिए।

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