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मुक्तिधाम के लिए अर्थियों को गंदगी से होकर निकालना पड़ रहा है।
ये कैसी विडंबना है। मुक्तिधाम के लिए अर्थियों को गंदगी से होकर निकालना पड़ रहा है। छावनी में भुर्जी मरघट के बाहर यही स्थिति बनी हुई है। बारिश हुई तो हालात और बिगड़ेंगे। इस पर अंकुश लग सकता था अगर मरघट के सामने नाला बन जाता।
अलीगढ़, ये कैसी विडंबना है। मुक्तिधाम के लिए अर्थियों को गंदगी से होकर निकालना पड़ रहा है। छावनी में भुर्जी मरघट के बाहर यही स्थिति बनी हुई है। बारिश हुई तो हालात और बिगड़ेंगे। इस पर अंकुश लग सकता था, अगर मरघट के सामने नाला बन जाता। टेंडर हुआ था, निर्माण कार्य भी शुरू हो गया। लेकिन, ऐन वक्त पर काम रोक दिया गया। नगर निगम कर्मचारी सरिया व निर्माण सामग्री उठा ले गए। अफसरों ने कहा कि इस हिस्से में नाला निर्माण की अब आवश्यकता नहीं है। इसको लेकर शासन तक शिकायत की गई है।
नगर निगम की अनदेखी का नतीजा
मानसून से पहले बारिश के बेहिसाब पानी की निकासी के जतन कर रहा नगर निगम उन नालों की अनदेखी कर रहा है, जो पूरे न हो सके। गांधीपार्क क्षेत्र में छर्रा अड्डे से रेलवे लाइन के सहारे 2017 में 255 मीटर नाले की नींव रखी गई थी। निर्माण कार्य शुरू हुआ तो रेलवे ने अपनी संपत्ति बताकर आपत्ति कर दी। नगर निगम पर संपत्ति पर अतिक्रमण का आरोप लगाया। तब मुकदमा भी दर्ज हुआ था। बताते हैं कि एक कर्मचारी को जेल जाना पड़ा था। इसके बाद नगर निगम ने रेलवे से सामंजस्य बनाने के प्रयास शुरू कर दिए। सफलता मिली तो 2020 में 230 मीटर नाले का निर्माण निगम ने करा दिया। भुर्जी मरघट की दीवार के सहारे 25 मीटर का हिस्सा शेष था। निर्माण विभाग ने यहां भी खोदाई कराकर सरिया का जाल बिछा दिया। तभी कुछ क्षेत्रीय लोगों ने यह कहते हुए आपत्ति कर दी कि नाला बनने से सड़क की चौड़ाई कम हो जाएगी। मरघट की दीवार छह मीटर पीछे कर नाला बनाने की मांग होने लगी। इसके लिए मरघट की देखरेख कर रहे कायस्थ भुर्जियान बगीची एवं मरघट ट्रस्ट के सदस्य तैयार नहीं हुए। विवाद शुरू हो गया। कर्मचारियों को डराया-धमकाया। नवंबर में निर्माण कार्य बंद कर दिया गया। ट्रस्ट के सदस्याें का कहना है कि मरघट के बाहर गंदा पानी, कीचड़ जमा है। अर्थियां लाना भी भारी पड़ जाता है। आसपास क्षेत्र का पानी यहीं भरता है।
इनका कहना है
नगर निगम द्वारा नाला निर्माण कराया जा रहा था, जिसे कुछ लोगों के दवाब में आकर अधूरा छोड़ दिया। मरघट के बाहर 25 मीटर का हिस्सा शेष है। गंदगी, जलभराव से बुरा हाल है। बारिश में हालत और बदहाल हो जाएंगे।
अशोक कुमार कोषाध्यक्ष, कायस्थ भुर्जियान बगीची एवं मरघट ट्रस्ट
जब टेंडर हुआ है तो पूरा नाला बनना चाहिए। कुछ लाेगों के कहने पर नाला अधूरा छोड़ दिया है। बारिश में पूरे इलाके का पानी वहीं भरेगा। मरघट के बाहर नाला बनना ही चाहिए।