कृषि कानूनों की खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन अब पार्टी विरोध पर हुआ केंद्रित, वक्ताओं के बोल भी बदल रहे

harshita's picture

RGAन्यूज़

कृषि कानूनों के विरोध से ज्यादा अब आगामी चुनावों को लेकर भाषण ज्यादा दिए जा रहे हैं।

आंदोलन शुरू तो तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुआ था मगर उसके बाद सरकार के सीधे विरोध और अब यह पार्टी विशेष के विरोध पर केंद्रित हो चुका है। इसी के साथ मंच से वक्ताओं के बोल भी बदल रहे हैं।

बहादुरगढ़:- नवंबर 2020 में दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन शुरू तो तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुआ था, मगर उसके बाद सरकार के सीधे विरोध और अब यह पार्टी विशेष के विरोध पर केंद्रित हो चुका है। इसी के साथ मंच से वक्ताओं के बोल भी बदल रहे हैं। कृषि कानूनों से ज्यादा अब आगामी चुनावों को लेकर भाषण ज्यादा दिए जा रहे हैं। आंदोलन में अब गैर कृषि संगठनों की भागीदारी तो न के बराबर है। ऐसे में मंच पर पहुुंचने वाले किसान संगठनों के नेता पार्टी विशेष का नाम लेकर ही उसके नेताओं, मंत्रियों और विधायकों काे सबक सिखाने का प्रचार करते दिखते हैं।

ज्यादातर वक्ता अब तो एक ही बात पर जोर देते हैं कि फलां राज्य में सत्ता पक्ष को नाकाम कर दिया और अब आगे फलां राज्य में करेंगे। यह अलग बात है कि जब आंदोलन शुरू हुआ तो इसमें किसी भी दल के नेताओं को मंच के आसपास जगह नहीं मिलती थी और पार्टी विशेष के विरोध की बात नहीं होती थी। उस समय पंजाब के किसान नेताअों को यह भी आह्वान करते सुना जा सकता था कि नारे लगाने में किसी की मर्यादा भंग न की जाए। विरोध हो, मगर सम्मानित तरीके से हो।

लेकिन यह सब धीरे-धीरे बदल गया। बाद में आंदोलन के बीच ऐसी भाषा का भी प्रयोग किया जाने लगा जो सीधे तौर पर गाली-गलौच है। अब यह आंदोलन सात माह पूरे करने जा रहा है। शुरूआत में किसी को भी यह अंदाजा नहीं था कि यह इतना लंबा चलेगा। अभी यह और कितना लंबा चल जाए, इसकी भी कोई सीमा नहीं दिख रही है। सरकार ने जो आखिरी मीटिंग में प्रस्ताव दिया था वह तो आंदोलनकारियों ने ठुकरा दिया था। वे अपनी मांग पर टस से मस तक नहीं हो रहे हैं। इतना लंंबा आंदोलन बहादुरगढ़ के व्यापार और उद्योग को बड़ा नुकसान पहुंचा चुका है।

News Category: 

Scholarly Lite is a free theme, contributed to the Drupal Community by More than Themes.