ब्लैक के बाद अब ग्रीन फंगस, जालंधर में देश का दूसरा मरीज रिपोर्ट, इंदौर में मिला था पहला पेशेंट

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RGAन्यूज़

ग्रीन फंगस यानी इंवेसिव एस्परगिलोसिस का देशभर में दूसरा और जालंधर में पहला मामला रिपोर्ट हुआ है।

सेक्रेड हार्ट अस्पताल की प्रबंधन सिस्टर ग्रेस ने बताया कि छह दिन पहले अमृतसर के कस्बा रईया से 62 साल का व्यक्ति गंभीर खांसी और पेट दर्द की वजह से इमरजेंसी में दाखिल हुआ। उसकी गहन पड़ताल करने के बाद उसमें इंवेसिव एस्परगिलोसिस यानी ग्रीन फंगस के लक्षण पाए गए

जालंधर। कोरोना के मरीजों के ठीक होने पर उन पर फंगस इंफेक्शन का खतरा बढ़ता जा रहा है। कोरोना के खिलाफ जंग में पहले ब्लैक फंगस, फिर व्हाइट व येलो फंगस आइ और अब ग्रीन फंगस का केस भी सामने आया है। शनिवार को जालंधर में ग्रीन फंगस यानी इंवेसिव एस्परगिलोसिस का पहला मामला रिपोर्ट हुआ। संभवत: यह देश का दूसरा मरीज है जिसे ग्रीन फंगस इंफेक्शन हुई। इससे पहले पहला मामला मध्यप्रदेश के इंदौर में 34 साल के व्यक्ति में सामने आया था। उसकी हालत गंभीर होने के बाद उसे मुंबई शिफ्ट करना पड़ा था।

सेक्रेड हार्ट अस्पताल की प्रबंधन सिस्टर ग्रेस ने बताया कि छह दिन पहले अमृतसर के कस्बा रईया से 62 साल का व्यक्ति गंभीर खांसी और पेट दर्द की वजह से इमरजेंसी में दाखिल हुआ। उसकी गहन पड़ताल करने के बाद उसमें इंवेसिव एस्परगिलोसिस यानी ग्रीन फंगस के लक्षण पाए गए। उन्होंने राज्य में पहला मामला व देश में दूसरा मामला रिपोर्ट होने का दावा किया। मरीज के इलाज की कमान पल्मोनोलाजिस्ट डा. आशुतोष धनुका को सौंपी गई है।

डा. धनुका ने बताया कि मरीज को 12 मार्च को कोरोना हुआ था। उसकी हालत गंभीर होने पर परिजनों ने उसे लुधियाना के निजी अस्पताल में भर्ती करवाया था। यहां करीब 22 दिन तक उसे आक्सीजन लगी रही। मरीज को शुगर की बीमारी भी है। मरीज की खांसी ठीक नहीं हो रही थी। बलगम भी आ रही थी। रईयां के डाक्टरों ने टीबी होने की बात कही लेकिन रविवार को खांसी और पेट दर्द के बाद उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। सीटी स्कैन व अन्य टेस्टों के अलावा टिशु बायोप्सी में उसके फेफड़े में इंवेसिव एस्परगिलोसिस यानी ग्रीन फंगस होने की पुष्टि हुई। मरीज का इलाज चल रहा है और उसकी हालत पहले से बेहतर है।

संक्रामक रोग नहीं है ग्रीन फंगस...फैलने का ये है कारण

डा. आशुतोष का कहना है कि एस्परगिलोसिस एक से दूसरे व्यक्ति तक नहीं फैलता। ये फंगस पहले से ही हमारे बीच हवा, मिट्टी, एसी व गंदगी वाली जगहों में होता है। इस फंगस से उन लोगों को सतर्क रहना चाहिए, जिनकी इम्युनिटी काफी कमजोर है। बरसात के मौसम में नमी की वजह से इसके पनपने के चांस ज्यादा रहते है। कोरोना के मरीजों के इलाज में आक्सीजन व स्टीरायेड का ज्यादा इस्तेमाल होने से प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है जिसकी वजह से वह इस बीमारी की गिरफ्त में आ जाते है। शुगर के मरीजों में खतरा ज्यादा रहता है।

बीमारी नई नहीं है...केस पहले भी आते थे, अब कोरोना पीड़ित हो रहे शिकार

वेदांता अस्पताल के डायरेक्टर व छाती रोग माहिर डा. अरुण वालिया का कहना है कि एस्परगिलोसिस बहुत पुरानी बीमारी है। किडनी, लिवर व शरीर का कोई अंग प्रत्यारोपण करवाने वाले मरीजों में फंगल इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है। कीमोथेरेपी व डायलिसिस करवाने वाले कैंसर के मरीजों में इस बीमारी के चांस ज्यादा है। सिस्टिक फाइब्रोसिस व अस्थमा के मरीजों में एलर्जी ब्रोंकोपुलमोनरी एस्परगिलोसिस की बीमारी होने का डर है। क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसिज, सारकाइडोसिस, टीबी व फेफड़ों की बीमारियों वाले कई मरीजों में भी बीमारी रिपोर्ट होती है। इसे फंगस बॉल भी कहा जाता है।

लोगों को बीमारी के बारे में जागरूक करेंगे : नोडल अफसर

सेहत विभाग के नोडल अफसर डा. टीपी ङ्क्षसह ने कहा कि यह बीमारी सेहत विभाग की ओर से नोटिफाई नहीं है। निजी अस्पताल अपने स्तर पर इलाज करते है और सेहत विभाग की इस की सूचना देने का प्रावधान नहीं है। लोकहित की सुरक्षा को देखते हुए संबंधित अस्पताल से विवरण लिया जाएगा। लोगों को जागरूक करवाया जाएगा।

इन बातों पर जरूर दें ध्यान

  • कोरोना के मरीज के ठीक होने के बाद ग्रीन फंगस फेफड़ों पर वार करती है। मरीजों को मुंह ढक कर रखना चाहिए।
  • इलाज शुरू करने में देरी न करें।
  • क्सीजन थैरेपी के दौरान उबला हुआ साफ पानी इस्तेमाल करें।
  • डाक्टर की सलाह के बाद ही एंटीबायोटिक और एंटीफंगल दवाओं का प्रयोग करें।

ग्रीन फंगस के लक्षण

  • घबराहट होना।
  • सांस लेने में दिक्कत होना।  
  • भार कम होना।
  • कमजोरी महसूस होना।
  • नाक से खून आना।
  • सीने और पेट में दर्द।
  • बलगम वाली खांसी आना।
  • बुखार होना।
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  • इनको विशेष ध्यान रखने की जरूरत
     

     

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  • मधुमेह के रोगी ज्यादा सावधान रहें। इसे नियंत्रित रखें।
  • कोरोना से स्वस्थ होकर लौटे हैं तो ब्लड शुगर को नियमित तौर पर चेक करते रहें।
  • प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होने पर फंगल इंफेक्शन होने का खतरा अधिक है।
  • धूल वाली जगह पर जाएं तो मास्क का प्रयोग करें।
  • एंबुलेंस, अस्पताल में नया आक्सीजन मास्क लगाएं।
  • किसी का इस्तेमाल किया मास्क दोबारा न पहनें
  • आक्सीजन चैंबर का पानी बदलते रहें।
  • कोरोना से स्वस्थ होने के बाद स्टेरायड दवाएं डाक्टर की सलाह पर ही धीरे-धीरे बंद करें।

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