लखनऊ में एक लाख कारीगरों के हाथों में संवर रही जरी-जरदोजी, अमेरिका-सिंगापुर तक है ड‍िमांड

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RGA न्यूज़

चिकन और जरदोजी के काम काे मिलेगी गति।

चिकन के साथ जरी-जरदोजी की कढ़ाई वाले कपड़ों के लिए राजधानी ही नहीं देश-दुनिया में मशहूर है। यहां बने कपड़ों की देश के विभिन्न राज्यों दिल्ली उड़ीसा कर्नाटक तमिलनाडु आंध्र प्रदेश राजस्थान केरल और महाराष्ट्र में खासा मांग होती है

लखनऊ:- एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल चिकन के साथ कदमताल कर रही जरी-जरजोदी भी लॉकडाउन के बाद उड़ान भरने को बेकरार है। राजधानी व आसपास के इलाको में करीब एक लाख से अधिक कारीगरों के हाथों में फल फूल रही इस विरासत को संजोए रखने की कवायद के बीच सरकारी प्रोत्साहन की भी तैयारी शुरू हो गई है। चिकन के साथ जरी-जरदोजी की कढ़ाई वाले कपड़ों के लिए राजधानी ही नहीं, देश-दुनिया में मशहूर है। यहां बने कपड़ों की देश के विभिन्न राज्यों दिल्ली, उड़ीसा, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल और महाराष्ट्र में खासा मांग होती है। इसके अलावा सऊदी अरब, अमेरिका, सिंगापुर समेत अनेक देशों में इनका निर्यात भी होता है। लखनऊ में इस काम में करीब चार लाख जुड़े हैं। 

बच्चों को समझाने की चुनौती : पुराने लखनऊ में जरी-जरजाेदी का काम करने वाली शबीना बानो ने बताया कि रमजान की कमाई से बच्चों का शौक पूरा होता था। इस बार लॉकडाउन के कारण काम बंद होने से बच्चाें को समझाने की चुनौती भी कम नहीं थी। हम रोजाना जो काम करते थे, उसी से गुजारा होता था। हम चाहते हैं कि प्रवासी मजदूरों की तरह सरकार हमारी भी मदद करे। जरी-जरदोजी कारीगरों की स्थिति भी दयनीय हो गयी है।

रमजान में पूरा होता है कोटा : रमजान पाक महीना कारीगरों के लिए पूरे साल की कमाई का कोटा पूरा करने का होता है। लॉकडाउन की वजह से बाजार ठंडा रहा। कढ़ाई करने वालों के साथ-साथ धोबी, सिलाई करने वाले, काज बनाने वाले और बटन लगाने वाले भी परेशान हैं। ऐसे में लाखों लोगों के कारोबार पर असर पड़ा है। हालांकि लॉकडाउन से राहत मिली है, लेकिन इस साल तो हमें कारोबार भूल ही जाना होगा। सीजन ऑफ है और जो माल है अब वह अगले साल ही बिकेगा। दुकानें तो खुली हैं, लेकिन लोगों के पास पैसा नहीं है। लखनऊ में करीब एक लाख परिवारों के लगभग ढाई लाख लोगों की रोजी-रोटी जरी-जरदोजी के काम पर ही टिकी है।     -फहीम जावेद जरी-जरजोदी कारोबारी  

लॉकडाउन के कारण हुआ नुकसान ​​​​: लखनऊ चिकनकारी व जरी-जरजोदी का उद्योग नवाबों के वक्त से चला आ रहा कारोबार है। इस वक्त इसका आकार करीब एक हजार रुपये सालाना का है। चिकन की कढ़ाई का काम लखनऊ के आसपास 40-50 किलोमीटर के दायरे में बसे गांवों के लोग करते हैं। लॉकडाउन के कारण जबर्दस्त नुकसान भी हुआ है। मार्च में होली से पहले हमारे बाजारों में माल बनकर आ जाता है। मार्च, अप्रैल, मई, जून इसके सीजन के महीने होते हैं। हर तरह से इसकी जबर्दस्त मांग रहती है। कोरोना संक्रमण के चलते सबकुछ ठप है। कारीगर रिक्शा चलाने को मजबूर हैं। सरकार की ओर से राहत मिली है, लेकिन करोबार को आगे बढ़ने में अभी कई महीने लगेंगे। सरकार को छोटे कारोबारियों के लिए कुछ जरूर करना चाहिए। बाजार बढ़ेगा तभी कारोबार भी चलेगा। लाेन लेकर काम करने को प्राेत्साहित करने के साथ बाजार मुहैया कराने पर भी जोर देना चाहिए।    -आशू महेंद्रू, चिकन, व्यापारी

कारीगरों को मिलेगा योजना का लाभ : एक जिला एक उत्पाद में चिकन व जरी-जरजोदी को भी रखा गया है। कारीगरों को अनुदान के साथ ही उनके हुनर को नई तकनीक से जोड़कर मांग के अनुरूप उनके हुनर को तराशा जाएगा। लाॅकडाउन खुलने के साथ सरकार की सभी योजनाओं का लाभ कारीगरों को मिलेगा और एक बार फिर उनकी जिंदगी की दौड़ा शुरू हो जाएगी। 300 बड़े कारोबारियों के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से चार लाख लोग इस कसम से जुड़े हैं।  

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