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यूएन के खाद्य एवं कृषि संगठन ने उच्च हिमालयी क्षेत्र की खाद्य प्रणाली को पुस्तक में किया शामिल
उच्च हिमालयी क्षेत्र की पारंपरिक खाद्य प्रणाली से अब दुनिया के लोग रूबरू होंगे। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र नामिक की खाद्य प्रणाली को हाल ही में प्रकाशित अपनी पुस्तक में शामिल किया है
नैनीताल : उच्च हिमालयी क्षेत्र की पारंपरिक खाद्य प्रणाली से अब दुनिया के लोग रूबरू होंगे। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र नामिक की खाद्य प्रणाली को हाल ही में प्रकाशित अपनी पुस्तक में शामिल किया है।
एफएओ ने एशिया, अमेरिका, अफ्रीका व दो महासागरों प्रशांत व आर्कटिक के द्वीपों के निवासी आठ समुदायों की खाद्य प्रणाली का अध्ययन कराया था। इसमें भारत से पूर्वोत्तर की खासी जनजाति और उत्तराखंड की भोटिया जनजाति के अनवाल समुदाय को भी शामिल किया गया था, जिसके बाद सेंट्रल हिमालयन इंस्टीट्यूट फॉर नेचर एंड अप्लाइड रिसर्च (चिनार) संस्था ने नामिक क्षेत्र के अनवाल समुदाय की पारंपरिक खाद्य प्रणाली और उस पर हो रहे बदलाव को लेकर अध्ययन किया, जिसकी रिपोर्ट को एफएओ ने अब प्रकाशित की है।
विशिष्ट है अनवाल की खाद्य प्रणाली
चिनार के निदेशक डा. प्रदीप मेहता ने बताया कि भोटिया जनजाति का अनवाल समुदाय भेड़ बकरी पालन करता है। यह चरवाहे पूरे हिमालय क्षेत्र में वर्षभर घुमंतु की तरह जीवनयापन करते थे। समुदाय में से कुछ लोग पिथौरागढ़ के नामिक क्षेत्र में भी बस गए, जो आज भी भेड़-बकरी पालन करते हैं। यह समुदाय बेहद नजदीकी से प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इनकी खाद्य प्रणाली, रहन-सहन, संस्कृति विशिष्ट है। यह आज भी पारंपरिक तरीके अपनाकर विशिष्ट प्रजाति की फसलें उगाते हंै, जिसमें पोषक तत्वों की मात्रा अन्य अनाजों से कहीं अधिक है।
आज भी वस्तु विनिमय प्रणाली का चलन
डा. मेहता ने बताया कि सड़क और बाजार क्षेत्र से दूर होने के कारण इस समुदाय में आज भी वस्तु विनिमय प्रणाली का चलन है। यह क्षेत्र विशेष प्रकार के राजमा के उत्पादन के लिए पहचाना जाता है, जो चावल और अन्य खाद्य पदार्थों के साथ इसका विनिमय करते है।
कैंसर रोधी छाल से बनाते हैं चाय
डा. मेहता ने बताया कि अनवाल समुदाय के लोगों को प्रकृति और वन्य जड़ी बूटियों की खासी पहचान है। जंगल में पाए जाने वाले टेक्सस बाकाटा (स्थानीय भाषा में थुनेर) के पेड़ की छाल को यह समुदाय के लोग वर्षों से चाय बनाने में प्रयोग करते आ रहे है। यह छाल एंटी कैंसरस यानी कैंसर रोधी है।
अब करने लगे हैं नौकर
डा. मेहता के अनुसार, अब क्षेत्र के कई लोग बकरी पालन छोड़ अन्यत्र व्यवसाय और नौकरी भी लगने लगे हैं, जिससे उनकी निर्भरता बाजारों पर अधिक हो गई है। समुदाय किसी समय में क्षेत्र में उगाई जाने वाली फांफर के आटे का प्रयोग करता था। धीरे-धीरे अब लोग इसकी खेती कम करने लगे। नई पीढ़ी में औषधीय पौधों की जानकारी भी कम होने लगी है।
वर्चुअल हुआ पुस्तक को विमोचन
चिनार के कार्यक्रम संयोजक घनश्याम पांडे ने बताया कि संस्था ने 2018 में नामिक क्षेत्र का सर्वे किया था। रिपोर्ट के आधार पर एलायंस ऑफ बायोवर्सिटी इंटरनेशनल एंड सीआईएटी और एफएओ की ओर से 'इंडिजिनस पीपल्स फूड सिस्टम : इनसाइट्स ऑन सस्टेनेबिलिटी एंड रेजीलिएशन फ्रॉम फं्रटलाइन क्लाइमेट चेंजÓ पुस्तक का प्रकाशन किया गया था। शुक्रवार को वर्चुअल माध्यम से एफएओ महानिदेशक डा. क्यू यू डोंग्यु ने पुस्तक का विमोचन किया